ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Chaupai / चोपाई
हरषित ह्दयँ मातु पहिं आए। मनहुँ अंध फिरि लोचन पाए।जाइ जननि पग नायउ माथा। मनु रघुनंदन जानकि साथा ॥
पूँछे मातु मलिन मन देखी। लखन कही सब कथा बिसेषी ॥ गई सहमि सुनि बचन कठोरा। मृगी देखि दव जनु चहु ओरा ॥
लखन लखेउ भा अनरथ आजू। एहिं सनेह बस करब अकाजू ॥ मागत बिदा सभय सकुचाहीं। जाइ संग बिधि कहिहि कि नाही ॥
Doha / दोहा
दो. समुझि सुमित्राँ राम सिय रूप सुसीलु सुभाउ। नृप सनेहु लखि धुनेउ सिरु पापिनि दीन्ह कुदाउ ॥ ७३ ॥
Chaupai / चोपाई
धीरजु धरेउ कुअवसर जानी। सहज सुह्द बोली मृदु बानी ॥ तात तुम्हारि मातु बैदेही। पिता रामु सब भाँति सनेही ॥
अवध तहाँ जहँ राम निवासू। तहँइँ दिवसु जहँ भानु प्रकासू ॥ जौ पै सीय रामु बन जाहीं। अवध तुम्हार काजु कछु नाहिं ॥
गुर पितु मातु बंधु सुर साई। सेइअहिं सकल प्रान की नाईं ॥ रामु प्रानप्रिय जीवन जी के। स्वारथ रहित सखा सबही कै ॥
पूजनीय प्रिय परम जहाँ तें। सब मानिअहिं राम के नातें ॥ अस जियँ जानि संग बन जाहू। लेहु तात जग जीवन लाहू ॥
Doha / दोहा
दो. भूरि भाग भाजनु भयहु मोहि समेत बलि जाउँ। जौम तुम्हरें मन छाड़ि छलु कीन्ह राम पद ठाउँ ॥ ७४ ॥
Chaupai / चोपाई
पुत्रवती जुबती जग सोई। रघुपति भगतु जासु सुतु होई ॥ नतरु बाँझ भलि बादि बिआनी। राम बिमुख सुत तें हित जानी ॥
तुम्हरेहिं भाग रामु बन जाहीं। दूसर हेतु तात कछु नाहीं ॥ सकल सुकृत कर बड़ फलु एहू। राम सीय पद सहज सनेहू ॥
राग रोषु इरिषा मदु मोहू। जनि सपनेहुँ इन्ह के बस होहू ॥ सकल प्रकार बिकार बिहाई। मन क्रम बचन करेहु सेवकाई ॥
तुम्ह कहुँ बन सब भाँति सुपासू। सँग पितु मातु रामु सिय जासू ॥ जेहिं न रामु बन लहहिं कलेसू। सुत सोइ करेहु इहइ उपदेसू ॥
Chanda / छन्द
छं. उपदेसु यहु जेहिं तात तुम्हरे राम सिय सुख पावहीं। पितु मातु प्रिय परिवार पुर सुख सुरति बन बिसरावहीं। तुलसी प्रभुहि सिख देइ आयसु दीन्ह पुनि आसिष दई। रति होउ अबिरल अमल सिय रघुबीर पद नित नित नई ॥
Sortha / सोरठा
सो. मातु चरन सिरु नाइ चले तुरत संकित हृदयँ। बागुर बिषम तोराइ मनहुँ भाग मृगु भाग बस ॥ ७५ ॥
Chaupai / चोपाई
गए लखनु जहँ जानकिनाथू। भे मन मुदित पाइ प्रिय साथू ॥ बंदि राम सिय चरन सुहाए। चले संग नृपमंदिर आए ॥
कहहिं परसपर पुर नर नारी। भलि बनाइ बिधि बात बिगारी ॥ तन कृस दुखु बदन मलीने। बिकल मनहुँ माखी मधु छीने ॥
कर मीजहिं सिरु धुनि पछिताहीं। जनु बिन पंख बिहग अकुलाहीं ॥ भइ बड़ि भीर भूप दरबारा। बरनि न जाइ बिषादु अपारा ॥
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