ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Chaupai / चोपाई
बोले लखन मधुर मृदु बानी। ग्यान बिराग भगति रस सानी ॥ काहु न कोउ सुख दुख कर दाता। निज कृत करम भोग सबु भ्राता ॥
जोग बियोग भोग भल मंदा। हित अनहित मध्यम भ्रम फंदा ॥ जनमु मरनु जहँ लगि जग जालू। संपती बिपति करमु अरु कालू ॥
धरनि धामु धनु पुर परिवारू। सरगु नरकु जहँ लगि ब्यवहारू ॥ देखिअ सुनिअ गुनिअ मन माहीं। मोह मूल परमारथु नाहीं ॥
Doha / दोहा
दो. सपनें होइ भिखारि नृप रंकु नाकपति होइ। जागें लाभु न हानि कछु तिमि प्रपंच जियँ जोइ ॥ ९२ ॥
Chaupai / चोपाई
अस बिचारि नहिं कीजा रोसू। काहुहि बादि न देइअ दोसू ॥ मोह निसाँ सबु सोवनिहारा। देखिअ सपन अनेक प्रकारा ॥
एहिं जग जामिनि जागहिं जोगी। परमारथी प्रपंच बियोगी ॥ जानिअ तबहिं जीव जग जागा। जब जब बिषय बिलास बिरागा ॥
होइ बिबेकु मोह भ्रम भागा। तब रघुनाथ चरन अनुरागा ॥ सखा परम परमारथु एहू। मन क्रम बचन राम पद नेहू ॥
राम ब्रह्म परमारथ रूपा। अबिगत अलख अनादि अनूपा ॥ सकल बिकार रहित गतभेदा। कहि नित नेति निरूपहिं बेदा।
Doha / दोहा
दो. भगत भूमि भूसुर सुरभि सुर हित लागि कृपाल। करत चरित धरि मनुज तनु सुनत मिटहि जग जाल ॥ ९३ ॥
Chaupai / चोपाई
सखा समुझि अस परिहरि मोहु। सिय रघुबीर चरन रत होहू ॥ कहत राम गुन भा भिनुसारा। जागे जग मंगल सुखदारा ॥
सकल सोच करि राम नहावा। सुचि सुजान बट छीर मगावा ॥ अनुज सहित सिर जटा बनाए। देखि सुमंत्र नयन जल छाए ॥
हृदयँ दाहु अति बदन मलीना। कह कर जोरि बचन अति दीना ॥ नाथ कहेउ अस कोसलनाथा। लै रथु जाहु राम कें साथा ॥
बनु देखाइ सुरसरि अन्हवाई। आनेहु फेरि बेगि दोउ भाई ॥ लखनु रामु सिय आनेहु फेरी। संसय सकल सँकोच निबेरी ॥
Doha / दोहा
दो. नृप अस कहेउ गोसाईँ जस कहइ करौं बलि सोइ। करि बिनती पायन्ह परेउ दीन्ह बाल जिमि रोइ ॥ ९४ ॥
Chaupai / चोपाई
तात कृपा करि कीजिअ सोई। जातें अवध अनाथ न होई ॥ मंत्रहि राम उठाइ प्रबोधा। तात धरम मतु तुम्ह सबु सोधा ॥
सिबि दधीचि हरिचंद नरेसा। सहे धरम हित कोटि कलेसा ॥ रंतिदेव बलि भूप सुजाना। धरमु धरेउ सहि संकट नाना ॥
धरमु न दूसर सत्य समाना। आगम निगम पुरान बखाना ॥ मैं सोइ धरमु सुलभ करि पावा। तजें तिहूँ पुर अपजसु छावा ॥
संभावित कहुँ अपजस लाहू। मरन कोटि सम दारुन दाहू ॥ तुम्ह सन तात बहुत का कहऊँ। दिएँ उतरु फिरि पातकु लहऊँ ॥
Doha / दोहा
दो. पितु पद गहि कहि कोटि नति बिनय करब कर जोरि। चिंता कवनिहु बात कै तात करिअ जनि मोरि ॥ ९५ ॥
Chaupai / चोपाई
तुम्ह पुनि पितु सम अति हित मोरें। बिनती करउँ तात कर जोरें ॥ सब बिधि सोइ करतब्य तुम्हारें। दुख न पाव पितु सोच हमारें ॥
सुनि रघुनाथ सचिव संबादू। भयउ सपरिजन बिकल निषादू ॥ पुनि कछु लखन कही कटु बानी। प्रभु बरजे बड़ अनुचित जानी ॥
सकुचि राम निज सपथ देवाई। लखन सँदेसु कहिअ जनि जाई ॥ कह सुमंत्रु पुनि भूप सँदेसू। सहि न सकिहि सिय बिपिन कलेसू ॥
जेहि बिधि अवध आव फिरि सीया। सोइ रघुबरहि तुम्हहि करनीया ॥ नतरु निपट अवलंब बिहीना। मैं न जिअब जिमि जल बिनु मीना ॥
Doha / दोहा
दो. मइकें ससरें सकल सुख जबहिं जहाँ मनु मान ॥ तँह तब रहिहि सुखेन सिय जब लगि बिपति बिहान ॥ ९६ ॥
Chaupai / चोपाई
बिनती भूप कीन्ह जेहि भाँती। आरति प्रीति न सो कहि जाती ॥ पितु सँदेसु सुनि कृपानिधाना। सियहि दीन्ह सिख कोटि बिधाना ॥
सासु ससुर गुर प्रिय परिवारू। फिरतु त सब कर मिटै खभारू ॥ सुनि पति बचन कहति बैदेही। सुनहु प्रानपति परम सनेही ॥
प्रभु करुनामय परम बिबेकी। तनु तजि रहति छाँह किमि छेंकी ॥ प्रभा जाइ कहँ भानु बिहाई। कहँ चंद्रिका चंदु तजि जाई ॥
पतिहि प्रेममय बिनय सुनाई। कहति सचिव सन गिरा सुहाई ॥ तुम्ह पितु ससुर सरिस हितकारी। उतरु देउँ फिरि अनुचित भारी ॥
Doha / दोहा
दो. आरति बस सनमुख भइउँ बिलगु न मानब तात। आरजसुत पद कमल बिनु बादि जहाँ लगि नात ॥ ९७ ॥
Chaupai / चोपाई
पितु बैभव बिलास मैं डीठा। नृप मनि मुकुट मिलित पद पीठा ॥ सुखनिधान अस पितु गृह मोरें। पिय बिहीन मन भाव न भोरें ॥
ससुर चक्कवइ कोसलराऊ। भुवन चारिदस प्रगट प्रभाऊ ॥ आगें होइ जेहि सुरपति लेई। अरध सिंघासन आसनु देई ॥
ससुरु एतादृस अवध निवासू। प्रिय परिवारु मातु सम सासू ॥ बिनु रघुपति पद पदुम परागा। मोहि केउ सपनेहुँ सुखद न लागा ॥
अगम पंथ बनभूमि पहारा। करि केहरि सर सरित अपारा ॥ कोल किरात कुरंग बिहंगा। मोहि सब सुखद प्रानपति संगा ॥
Doha / दोहा
दो. सासु ससुर सन मोरि हुँति बिनय करबि परि पायँ ॥ मोर सोचु जनि करिअ कछु मैं बन सुखी सुभायँ ॥ ९८ ॥
Chaupai / चोपाई
प्राननाथ प्रिय देवर साथा। बीर धुरीन धरें धनु भाथा ॥ नहिं मग श्रमु भ्रमु दुख मन मोरें। मोहि लगि सोचु करिअ जनि भोरें ॥
सुनि सुमंत्रु सिय सीतलि बानी। भयउ बिकल जनु फनि मनि हानी ॥ नयन सूझ नहिं सुनइ न काना। कहि न सकइ कछु अति अकुलाना ॥
राम प्रबोधु कीन्ह बहु भाँति। तदपि होति नहिं सीतलि छाती ॥ जतन अनेक साथ हित कीन्हे। उचित उतर रघुनंदन दीन्हे ॥
मेटि जाइ नहिं राम रजाई। कठिन करम गति कछु न बसाई ॥ राम लखन सिय पद सिरु नाई। फिरेउ बनिक जिमि मूर गवाँई ॥
Doha / दोहा
दो. -रथ हाँकेउ हय राम तन हेरि हेरि हिहिनाहिं। देखि निषाद बिषादबस धुनहिं सीस पछिताहिं ॥ ९९ ॥
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