ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Doha / दोहा
दो. तब गनपति सिव सुमिरि प्रभु नाइ सुरसरिहि माथ। सखा अनुज सिया सहित बन गवनु कीन्ह रधुनाथ ॥ १०४ ॥
Chaupai / चोपाई
तेहि दिन भयउ बिटप तर बासू। लखन सखाँ सब कीन्ह सुपासू ॥ प्रात प्रातकृत करि रधुसाई। तीरथराजु दीख प्रभु जाई ॥
सचिव सत्य श्रध्दा प्रिय नारी। माधव सरिस मीतु हितकारी ॥ चारि पदारथ भरा भँडारु। पुन्य प्रदेस देस अति चारु ॥
छेत्र अगम गढ़ु गाढ़ सुहावा। सपनेहुँ नहिं प्रतिपच्छिन्ह पावा ॥ सेन सकल तीरथ बर बीरा। कलुष अनीक दलन रनधीरा ॥
संगमु सिंहासनु सुठि सोहा। छत्रु अखयबटु मुनि मनु मोहा ॥ चवँर जमुन अरु गंग तरंगा। देखि होहिं दुख दारिद भंगा ॥
Doha / दोहा
दो. सेवहिं सुकृति साधु सुचि पावहिं सब मनकाम। बंदी बेद पुरान गन कहहिं बिमल गुन ग्राम ॥ १०५ ॥
Chaupai / चोपाई
को कहि सकइ प्रयाग प्रभाऊ। कलुष पुंज कुंजर मृगराऊ ॥ अस तीरथपति देखि सुहावा। सुख सागर रघुबर सुखु पावा ॥
कहि सिय लखनहि सखहि सुनाई। श्रीमुख तीरथराज बड़ाई ॥ करि प्रनामु देखत बन बागा। कहत महातम अति अनुरागा ॥
एहि बिधि आइ बिलोकी बेनी। सुमिरत सकल सुमंगल देनी ॥ मुदित नहाइ कीन्हि सिव सेवा। पुजि जथाबिधि तीरथ देवा ॥
तब प्रभु भरद्वाज पहिं आए। करत दंडवत मुनि उर लाए ॥ मुनि मन मोद न कछु कहि जाइ। ब्रह्मानंद रासि जनु पाई ॥
Doha / दोहा
दो. दीन्हि असीस मुनीस उर अति अनंदु अस जानि। लोचन गोचर सुकृत फल मनहुँ किए बिधि आनि ॥ १०६ ॥
Chaupai / चोपाई
कुसल प्रस्न करि आसन दीन्हे। पूजि प्रेम परिपूरन कीन्हे ॥ कंद मूल फल अंकुर नीके। दिए आनि मुनि मनहुँ अमी के ॥
सीय लखन जन सहित सुहाए। अति रुचि राम मूल फल खाए ॥ भए बिगतश्रम रामु सुखारे। भरव्दाज मृदु बचन उचारे ॥
आजु सुफल तपु तीरथ त्यागू। आजु सुफल जप जोग बिरागू ॥ सफल सकल सुभ साधन साजू। राम तुम्हहि अवलोकत आजू ॥
लाभ अवधि सुख अवधि न दूजी। तुम्हारें दरस आस सब पूजी ॥ अब करि कृपा देहु बर एहू। निज पद सरसिज सहज सनेहू ॥
Doha / दोहा
दो. करम बचन मन छाड़ि छलु जब लगि जनु न तुम्हार। तब लगि सुखु सपनेहुँ नहीं किएँ कोटि उपचार ॥
Chaupai / चोपाई
सुनि मुनि बचन रामु सकुचाने। भाव भगति आनंद अघाने ॥ तब रघुबर मुनि सुजसु सुहावा। कोटि भाँति कहि सबहि सुनावा ॥
सो बड सो सब गुन गन गेहू। जेहि मुनीस तुम्ह आदर देहू ॥ मुनि रघुबीर परसपर नवहीं। बचन अगोचर सुखु अनुभवहीं ॥
यह सुधि पाइ प्रयाग निवासी। बटु तापस मुनि सिद्ध उदासी ॥ भरद्वाज आश्रम सब आए। देखन दसरथ सुअन सुहाए ॥
राम प्रनाम कीन्ह सब काहू। मुदित भए लहि लोयन लाहू ॥ देहिं असीस परम सुखु पाई। फिरे सराहत सुंदरताई ॥
Doha / दोहा
दो. राम कीन्ह बिश्राम निसि प्रात प्रयाग नहाइ। चले सहित सिय लखन जन मुददित मुनिहि सिरु नाइ ॥ १०८ ॥
Chaupai / चोपाई
राम सप्रेम कहेउ मुनि पाहीं। नाथ कहिअ हम केहि मग जाहीं ॥ मुनि मन बिहसि राम सन कहहीं। सुगम सकल मग तुम्ह कहुँ अहहीं ॥
साथ लागि मुनि सिष्य बोलाए। सुनि मन मुदित पचासक आए ॥ सबन्हि राम पर प्रेम अपारा। सकल कहहि मगु दीख हमारा ॥
मुनि बटु चारि संग तब दीन्हे। जिन्ह बहु जनम सुकृत सब कीन्हे ॥ करि प्रनामु रिषि आयसु पाई। प्रमुदित हृदयँ चले रघुराई ॥
ग्राम निकट जब निकसहि जाई। देखहि दरसु नारि नर धाई ॥ होहि सनाथ जनम फलु पाई। फिरहि दुखित मनु संग पठाई ॥
Doha / दोहा
दो. बिदा किए बटु बिनय करि फिरे पाइ मन काम। उतरि नहाए जमुन जल जो सरीर सम स्याम ॥ १०९ ॥
Chaupai / चोपाई
सुनत तीरवासी नर नारी। धाए निज निज काज बिसारी ॥ लखन राम सिय सुन्दरताई। देखि करहिं निज भाग्य बड़ाई ॥
अति लालसा बसहिं मन माहीं। नाउँ गाउँ बूझत सकुचाहीं ॥ जे तिन्ह महुँ बयबिरिध सयाने। तिन्ह करि जुगुति रामु पहिचाने ॥
सकल कथा तिन्ह सबहि सुनाई। बनहि चले पितु आयसु पाई ॥ सुनि सबिषाद सकल पछिताहीं। रानी रायँ कीन्ह भल नाहीं ॥
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