ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Doha / दोहा
दो. गुर पद कमल प्रनामु करि बैठे आयसु पाइ। बिप्र महाजन सचिव सब जुरे सभासद आइ ॥ २५३ ॥
Chaupai / चोपाई
बोले मुनिबरु समय समाना। सुनहु सभासद भरत सुजाना ॥ धरम धुरीन भानुकुल भानू। राजा रामु स्वबस भगवानू ॥
सत्यसंध पालक श्रुति सेतू। राम जनमु जग मंगल हेतू ॥ गुर पितु मातु बचन अनुसारी। खल दलु दलन देव हितकारी ॥
नीति प्रीति परमारथ स्वारथु। कोउ न राम सम जान जथारथु ॥ बिधि हरि हरु ससि रबि दिसिपाला। माया जीव करम कुलि काला ॥
अहिप महिप जहँ लगि प्रभुताई। जोग सिद्धि निगमागम गाई ॥ करि बिचार जिँयँ देखहु नीकें। राम रजाइ सीस सबही कें ॥
Doha / दोहा
दो. राखें राम रजाइ रुख हम सब कर हित होइ। समुझि सयाने करहु अब सब मिलि संमत सोइ ॥ २५४ ॥
Chaupai / चोपाई
सब कहुँ सुखद राम अभिषेकू। मंगल मोद मूल मग एकू ॥ केहि बिधि अवध चलहिं रघुराऊ। कहहु समुझि सोइ करिअ उपाऊ ॥
सब सादर सुनि मुनिबर बानी। नय परमारथ स्वारथ सानी ॥ उतरु न आव लोग भए भोरे। तब सिरु नाइ भरत कर जोरे ॥
भानुबंस भए भूप घनेरे। अधिक एक तें एक बड़ेरे ॥ जनमु हेतु सब कहँ पितु माता। करम सुभासुभ देइ बिधाता ॥
दलि दुख सजइ सकल कल्याना। अस असीस राउरि जगु जाना ॥ सो गोसाइँ बिधि गति जेहिं छेंकी। सकइ को टारि टेक जो टेकी ॥
Doha / दोहा
दो. बूझिअ मोहि उपाउ अब सो सब मोर अभागु। सुनि सनेहमय बचन गुर उर उमगा अनुरागु ॥ २५५ ॥
Chaupai / चोपाई
तात बात फुरि राम कृपाहीं। राम बिमुख सिधि सपनेहुँ नाहीं ॥ सकुचउँ तात कहत एक बाता। अरध तजहिं बुध सरबस जाता ॥
तुम्ह कानन गवनहु दोउ भाई। फेरिअहिं लखन सीय रघुराई ॥ सुनि सुबचन हरषे दोउ भ्राता। भे प्रमोद परिपूरन गाता ॥
मन प्रसन्न तन तेजु बिराजा। जनु जिय राउ रामु भए राजा ॥ बहुत लाभ लोगन्ह लघु हानी। सम दुख सुख सब रोवहिं रानी ॥
कहहिं भरतु मुनि कहा सो कीन्हे। फलु जग जीवन्ह अभिमत दीन्हे ॥ कानन करउँ जनम भरि बासू। एहिं तें अधिक न मोर सुपासू ॥
Doha / दोहा
दो. अँतरजामी रामु सिय तुम्ह सरबग्य सुजान। जो फुर कहहु त नाथ निज कीजिअ बचनु प्रवान ॥ २५६ ॥
Chaupai / चोपाई
भरत बचन सुनि देखि सनेहू। सभा सहित मुनि भए बिदेहू ॥ भरत महा महिमा जलरासी। मुनि मति ठाढ़ि तीर अबला सी ॥
गा चह पार जतनु हियँ हेरा। पावति नाव न बोहितु बेरा ॥ औरु करिहि को भरत बड़ाई। सरसी सीपि कि सिंधु समाई ॥
भरतु मुनिहि मन भीतर भाए। सहित समाज राम पहिँ आए ॥ प्रभु प्रनामु करि दीन्ह सुआसनु। बैठे सब सुनि मुनि अनुसासनु ॥
बोले मुनिबरु बचन बिचारी। देस काल अवसर अनुहारी ॥ सुनहु राम सरबग्य सुजाना। धरम नीति गुन ग्यान निधाना ॥
Doha / दोहा
दो. सब के उर अंतर बसहु जानहु भाउ कुभाउ। पुरजन जननी भरत हित होइ सो कहिअ उपाउ ॥ २५७ ॥
Chaupai / चोपाई
आरत कहहिं बिचारि न काऊ। सूझ जूआरिहि आपन दाऊ ॥ सुनि मुनि बचन कहत रघुराऊ। नाथ तुम्हारेहि हाथ उपाऊ ॥
सब कर हित रुख राउरि राखेँ। आयसु किएँ मुदित फुर भाषें ॥ प्रथम जो आयसु मो कहुँ होई। माथेँ मानि करौ सिख सोई ॥
पुनि जेहि कहँ जस कहब गोसाईँ। सो सब भाँति घटिहि सेवकाईँ ॥ कह मुनि राम सत्य तुम्ह भाषा। भरत सनेहँ बिचारु न राखा ॥
तेहि तें कहउँ बहोरि बहोरी। भरत भगति बस भइ मति मोरी ॥ मोरेँ जान भरत रुचि राखि। जो कीजिअ सो सुभ सिव साखी ॥
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