Ram Charita Manas

Ayodhya-Kanda

Conversation between Janak and Sunayana, Glory of Bharata.

ॐ श्री परमात्मने नमः


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ॐ श्री गणेशाय नमः

Doha / दोहा

दो. बार बार मिलि भेंट सिय बिदा कीन्ह सनमानि। कही समय सिर भरत गति रानि सुबानि सयानि ॥ २८७ ॥

Chapter : 44 Number : 301

Chaupai / चोपाई

सुनि भूपाल भरत ब्यवहारू। सोन सुगंध सुधा ससि सारू ॥ मूदे सजल नयन पुलके तन। सुजसु सराहन लगे मुदित मन ॥

Chapter : 44 Number : 301

सावधान सुनु सुमुखि सुलोचनि। भरत कथा भव बंध बिमोचनि ॥ धरम राजनय ब्रह्मबिचारू। इहाँ जथामति मोर प्रचारू ॥

Chapter : 44 Number : 301

सो मति मोरि भरत महिमाही। कहै काह छलि छुअति न छाँही ॥ बिधि गनपति अहिपति सिव सारद। कबि कोबिद बुध बुद्धि बिसारद ॥

Chapter : 44 Number : 301

भरत चरित कीरति करतूती। धरम सील गुन बिमल बिभूती ॥ समुझत सुनत सुखद सब काहू। सुचि सुरसरि रुचि निदर सुधाहू ॥

Chapter : 44 Number : 301

Doha / दोहा

दो. निरवधि गुन निरुपम पुरुषु भरतु भरत सम जानि। कहिअ सुमेरु कि सेर सम कबिकुल मति सकुचानि ॥ २८८ ॥

Chapter : 44 Number : 302

Chaupai / चोपाई

अगम सबहि बरनत बरबरनी। जिमि जलहीन मीन गमु धरनी ॥ भरत अमित महिमा सुनु रानी। जानहिं रामु न सकहिं बखानी ॥

Chapter : 44 Number : 302

बरनि सप्रेम भरत अनुभाऊ। तिय जिय की रुचि लखि कह राऊ ॥ बहुरहिं लखनु भरतु बन जाहीं। सब कर भल सब के मन माहीं ॥

Chapter : 44 Number : 302

देबि परंतु भरत रघुबर की। प्रीति प्रतीति जाइ नहिं तरकी ॥ भरतु अवधि सनेह ममता की। जद्यपि रामु सीम समता की ॥

Chapter : 44 Number : 302

परमारथ स्वारथ सुख सारे। भरत न सपनेहुँ मनहुँ निहारे ॥ साधन सिद्ध राम पग नेहू ॥ मोहि लखि परत भरत मत एहू ॥

Chapter : 44 Number : 302

Doha / दोहा

दो. भोरेहुँ भरत न पेलिहहिं मनसहुँ राम रजाइ। करिअ न सोचु सनेह बस कहेउ भूप बिलखाइ ॥ २८९ ॥

Chapter : 44 Number : 303

Chaupai / चोपाई

राम भरत गुन गनत सप्रीती। निसि दंपतिहि पलक सम बीती ॥ राज समाज प्रात जुग जागे। न्हाइ न्हाइ सुर पूजन लागे ॥

Chapter : 44 Number : 303

गे नहाइ गुर पहीं रघुराई। बंदि चरन बोले रुख पाई ॥ नाथ भरतु पुरजन महतारी। सोक बिकल बनबास दुखारी ॥

Chapter : 44 Number : 303

सहित समाज राउ मिथिलेसू। बहुत दिवस भए सहत कलेसू ॥ उचित होइ सोइ कीजिअ नाथा। हित सबही कर रौरें हाथा ॥

Chapter : 44 Number : 303

अस कहि अति सकुचे रघुराऊ। मुनि पुलके लखि सीलु सुभाऊ ॥ तुम्ह बिनु राम सकल सुख साजा। नरक सरिस दुहु राज समाजा ॥

Chapter : 44 Number : 303

Doha / दोहा

दो. प्रान प्रान के जीव के जिव सुख के सुख राम। तुम्ह तजि तात सोहात गृह जिन्हहि तिन्हहिं बिधि बाम ॥ २९० ॥

Chapter : 44 Number : 304

Chaupai / चोपाई

सो सुखु करमु धरमु जरि जाऊ। जहँ न राम पद पंकज भाऊ ॥ जोगु कुजोगु ग्यानु अग्यानू। जहँ नहिं राम पेम परधानू ॥

Chapter : 44 Number : 304

तुम्ह बिनु दुखी सुखी तुम्ह तेहीं। तुम्ह जानहु जिय जो जेहि केहीं ॥ राउर आयसु सिर सबही कें। बिदित कृपालहि गति सब नीकें ॥

Chapter : 44 Number : 304

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