ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Doha / दोहा
दो. दच्छ लिए मुनि बोलि सब करन लगे बड़ जाग । नेवते सादर सकल सुर जे पावत मख भाग ॥ ६० ॥
Chaupai / चोपाई
किंनर नाग सिद्ध गंधर्बा । बधुन्ह समेत चले सुर सर्बा ॥ बिष्नु बिरंचि महेसु बिहाई । चले सकल सुर जान बनाई ॥
सतीं बिलोके ब्योम बिमाना । जात चले सुंदर बिधि नाना ॥ सुर सुंदरी करहिं कल गाना । सुनत श्रवन छूटहिं मुनि ध्याना ॥
पूछेउ तब सिवँ कहेउ बखानी । पिता जग्य सुनि कछु हरषानी ॥ जौं महेसु मोहि आयसु देहीं । कुछ दिन जाइ रहौं मिस एहीं ॥
पति परित्याग हृदय दुखु भारी । कहइ न निज अपराध बिचारी ॥ बोली सती मनोहर बानी । भय संकोच प्रेम रस सानी ॥
Doha / दोहा
दो. पिता भवन उत्सव परम जौं प्रभु आयसु होइ । तौ मै जाउँ कृपायतन सादर देखन सोइ ॥ ६१ ॥
Chaupai / चोपाई
कहेहु नीक मोरेहुँ मन भावा । यह अनुचित नहिं नेवत पठावा ॥ दच्छ सकल निज सुता बोलाई । हमरें बयर तुम्हउ बिसराई ॥
ब्रह्मसभाँ हम सन दुखु माना । तेहि तें अजहुँ करहिं अपमाना ॥ जौं बिनु बोलें जाहु भवानी । रहइ न सीलु सनेहु न कानी ॥
जदपि मित्र प्रभु पितु गुर गेहा । जाइअ बिनु बोलेहुँ न सँदेहा ॥ तदपि बिरोध मान जहँ कोई । तहाँ गएँ कल्यानु न होई ॥
भाँति अनेक संभु समुझावा । भावी बस न ग्यानु उर आवा ॥ कह प्रभु जाहु जो बिनहिं बोलाएँ । नहिं भलि बात हमारे भाएँ ॥
Doha / दोहा
दो. कहि देखा हर जतन बहु रहइ न दच्छकुमारि । दिए मुख्य गन संग तब बिदा कीन्ह त्रिपुरारि ॥ ६२ ॥
Chaupai / चोपाई
पिता भवन जब गई भवानी । दच्छ त्रास काहुँ न सनमानी ॥ सादर भलेहिं मिली एक माता । भगिनीं मिलीं बहुत मुसुकाता ॥
दच्छ न कछु पूछी कुसलाता । सतिहि बिलोकि जरे सब गाता ॥ सतीं जाइ देखेउ तब जागा । कतहुँ न दीख संभु कर भागा ॥
तब चित चढ़ेउ जो संकर कहेऊ । प्रभु अपमानु समुझि उर दहेऊ ॥ पाछिल दुखु न हृदयँ अस ब्यापा । जस यह भयउ महा परितापा ॥
जद्यपि जग दारुन दुख नाना । सब तें कठिन जाति अवमाना ॥ समुझि सो सतिहि भयउ अति क्रोधा । बहु बिधि जननीं कीन्ह प्रबोधा ॥
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