ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Doha / दोहा
दो. सकल सुरन्ह के हृदयँ अस संकर परम उछाहु । निज नयनन्हि देखा चहहिं नाथ तुम्हार बिबाहु ॥ ८८ ॥
Chaupai / चोपाई
यह उत्सव देखिअ भरि लोचन । सोइ कछु करहु मदन मद मोचन । कामु जारि रति कहुँ बरु दीन्हा । कृपासिंधु यह अति भल कीन्हा ॥
सासति करि पुनि करहिं पसाऊ । नाथ प्रभुन्ह कर सहज सुभाऊ ॥ पारबतीं तपु कीन्ह अपारा । करहु तासु अब अंगीकारा ॥
सुनि बिधि बिनय समुझि प्रभु बानी । ऐसेइ होउ कहा सुखु मानी ॥ तब देवन्ह दुंदुभीं बजाईं । बरषि सुमन जय जय सुर साई ॥
अवसरु जानि सप्तरिषि आए । तुरतहिं बिधि गिरिभवन पठाए ॥ प्रथम गए जहँ रही भवानी । बोले मधुर बचन छल सानी ॥
Doha / दोहा
दो. कहा हमार न सुनेहु तब नारद कें उपदेस । अब भा झूठ तुम्हार पन जारेउ कामु महेस ॥ ८९ ॥
Chaupai / चोपाई
सुनि बोलीं मुसकाइ भवानी । उचित कहेहु मुनिबर बिग्यानी ॥ तुम्हरें जान कामु अब जारा । अब लगि संभु रहे सबिकारा ॥
हमरें जान सदा सिव जोगी । अज अनवद्य अकाम अभोगी ॥ जौं मैं सिव सेये अस जानी । प्रीति समेत कर्म मन बानी ॥
तौ हमार पन सुनहु मुनीसा । करिहहिं सत्य कृपानिधि ईसा ॥ तुम्ह जो कहा हर जारेउ मारा । सोइ अति बड़ अबिबेकु तुम्हारा ॥
तात अनल कर सहज सुभाऊ । हिम तेहि निकट जाइ नहिं काऊ ॥ गएँ समीप सो अवसि नसाई । असि मन्मथ महेस की नाई ॥
Doha / दोहा
दो. हियँ हरषे मुनि बचन सुनि देखि प्रीति बिस्वास ॥ चले भवानिहि नाइ सिर गए हिमाचल पास ॥ ९० ॥
Chaupai / चोपाई
सबु प्रसंगु गिरिपतिहि सुनावा । मदन दहन सुनि अति दुखु पावा ॥ बहुरि कहेउ रति कर बरदाना । सुनि हिमवंत बहुत सुखु माना ॥
हृदयँ बिचारि संभु प्रभुताई । सादर मुनिबर लिए बोलाई ॥ सुदिनु सुनखतु सुघरी सोचाई । बेगि बेदबिधि लगन धराई ॥
पत्री सप्तरिषिन्ह सोइ दीन्ही । गहि पद बिनय हिमाचल कीन्ही ॥ जाइ बिधिहि दीन्हि सो पाती । बाचत प्रीति न हृदयँ समाती ॥
लगन बाचि अज सबहि सुनाई । हरषे मुनि सब सुर समुदाई ॥ सुमन बृष्टि नभ बाजन बाजे । मंगल कलस दसहुँ दिसि साजे ॥
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