ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Doha / दोहा
दो. जाइ देखी आवहु नगरु सुख निधान दोउ भाइ । करहु सुफल सब के नयन सुंदर बदन देखाइ ॥ २१८ ॥
Chaupai / चोपाई
मुनि पद कमल बंदि दोउ भ्राता । चले लोक लोचन सुख दाता ॥ बालक बृंदि देखि अति सोभा । लगे संग लोचन मनु लोभा ॥
पीत बसन परिकर कटि भाथा । चारु चाप सर सोहत हाथा ॥ तन अनुहरत सुचंदन खोरी । स्यामल गौर मनोहर जोरी ॥
केहरि कंधर बाहु बिसाला । उर अति रुचिर नागमनि माला ॥ सुभग सोन सरसीरुह लोचन । बदन मयंक तापत्रय मोचन ॥
कानन्हि कनक फूल छबि देहीं । चितवत चितहि चोरि जनु लेहीं ॥ चितवनि चारु भृकुटि बर बाँकी । तिलक रेखा सोभा जनु चाँकी ॥
Doha / दोहा
दो. रुचिर चौतनीं सुभग सिर मेचक कुंचित केस । नख सिख सुंदर बंधु दोउ सोभा सकल सुदेस ॥ २१९ ॥
Chaupai / चोपाई
देखन नगरु भूपसुत आए । समाचार पुरबासिंह पाए ॥ धाए धाम काम सब त्यागी । मनहु रंक निधि लूटन लागी ॥
निरखि सहज सुंदर दोउ भाई । होहिं सुखी लोचन फल पाई ॥ जुबतीं भवन झरोखन्हि लागीं । निरखहिं राम रूप अनुरागीं ॥
कहहिं परसपर बचन सप्रीती । सखि इन्ह कोटि काम छबि जीती ॥ सुर नर असुर नाग मुनि माहीं । सोभा असि कहुँ सुनिअति नाहीं ॥
बिष्नु चारि भुज बिघि मुख चारी । बिकट बेष मुख पंच पुरारी ॥ अपर देउ अस कोउ न आही । यह छबि सखि पटतरिअ जाही ॥
Doha / दोहा
दो. बय किसोर सुषमा सदन स्याम गौर सुख धाम । अंग अंग पर वारिअहिं कोटि कोटि सत काम ॥ २२० ॥
Chaupai / चोपाई
कहहु सखी अस को तनुधारी । जो न मोह यह रूप निहारी ॥ कोउ सप्रेम बोली मृदु बानी । जो मैं सुना सो सुनहु सयानी ॥
ए दोऊ दसरथ के ढोटा । बाल मरालन्हि के कल जोटा ॥ मुनि कौसिक मख के रखवारे । जिन्ह रन अजिर निसाचर मारे ॥
स्याम गात कल कंज बिलोचन । जो मारीच सुभुज मदु मोचन ॥ कौसल्या सुत सो सुख खानी । नामु रामु धनु सायक पानी ॥
गौर किसोर बेषु बर काछें । कर सर चाप राम के पाछें ॥ लछिमनु नामु राम लघु भ्राता । सुनु सखि तासु सुमित्रा माता ॥
Doha / दोहा
दो. बिप्रकाजु करि बंधु दोउ मग मुनिबधू उधारि । आए देखन चापमख सुनि हरषीं सब नारि ॥ २२१ ॥
Chaupai / चोपाई
देखि राम छबि कोउ एक कहई । जोगु जानकिहि यह बरु अहई ॥ जौ सखि इन्हहि देख नरनाहू । पन परिहरि हठि करइ बिबाहू ॥
कोउ कह ए भूपति पहिचाने । मुनि समेत सादर सनमाने ॥ सखि परंतु पनु राउ न तजई । बिधि बस हठि अबिबेकहि भजई ॥
कोउ कह जौं भल अहइ बिधाता । सब कहँ सुनिअ उचित फलदाता ॥ तौ जानकिहि मिलिहि बरु एहू । नाहिन आलि इहाँ संदेहू ॥
जौ बिधि बस अस बनै सँजोगू । तौ कृतकृत्य होइ सब लोगू ॥ सखि हमरें आरति अति तातें । कबहुँक ए आवहिं एहि नातें ॥
Doha / दोहा
दो. नाहिं त हम कहुँ सुनहु सखि इन्ह कर दरसनु दूरि । यह संघटु तब होइ जब पुन्य पुराकृत भूरि ॥ २२२ ॥
Chaupai / चोपाई
बोली अपर कहेहु सखि नीका । एहिं बिआह अति हित सबहीं का ॥ कोउ कह संकर चाप कठोरा । ए स्यामल मृदुगात किसोरा ॥
सबु असमंजस अहइ सयानी । यह सुनि अपर कहइ मृदु बानी ॥ सखि इन्ह कहँ कोउ कोउ अस कहहीं । बड़ प्रभाउ देखत लघु अहहीं ॥
परसि जासु पद पंकज धूरी । तरी अहल्या कृत अघ भूरी ॥ सो कि रहिहि बिनु सिवधनु तोरें । यह प्रतीति परिहरिअ न भोरें ॥
जेहिं बिरंचि रचि सीय सँवारी । तेहिं स्यामल बरु रचेउ बिचारी ॥ तासु बचन सुनि सब हरषानीं । ऐसेइ होउ कहहिं मुदु बानी ॥
Doha / दोहा
दो. हियँ हरषहिं बरषहिं सुमन सुमुखि सुलोचनि बृंद । जाहिं जहाँ जहँ बंधु दोउ तहँ तहँ परमानंद ॥ २२३ ॥
Chaupai / चोपाई
पुर पूरब दिसि गे दोउ भाई । जहँ धनुमख हित भूमि बनाई ॥ अति बिस्तार चारु गच ढारी । बिमल बेदिका रुचिर सँवारी ॥
चहुँ दिसि कंचन मंच बिसाला । रचे जहाँ बेठहिं महिपाला ॥ तेहि पाछें समीप चहुँ पासा । अपर मंच मंडली बिलासा ॥
कछुक ऊँचि सब भाँति सुहाई । बैठहिं नगर लोग जहँ जाई ॥ तिन्ह के निकट बिसाल सुहाए । धवल धाम बहुबरन बनाए ॥
जहँ बैंठैं देखहिं सब नारी । जथा जोगु निज कुल अनुहारी ॥ पुर बालक कहि कहि मृदु बचना । सादर प्रभुहि देखावहिं रचना ॥
Doha / दोहा
दो. सब सिसु एहि मिस प्रेमबस परसि मनोहर गात । तन पुलकहिं अति हरषु हियँ देखि देखि दोउ भ्रात ॥ २२४ ॥
Chaupai / चोपाई
सिसु सब राम प्रेमबस जाने । प्रीति समेत निकेत बखाने ॥ निज निज रुचि सब लेंहिं बोलाई । सहित सनेह जाहिं दोउ भाई ॥
राम देखावहिं अनुजहि रचना । कहि मृदु मधुर मनोहर बचना ॥ लव निमेष महँ भुवन निकाया । रचइ जासु अनुसासन माया ॥
भगति हेतु सोइ दीनदयाला । चितवत चकित धनुष मखसाला ॥ कौतुक देखि चले गुरु पाहीं । जानि बिलंबु त्रास मन माहीं ॥
जासु त्रास डर कहुँ डर होई । भजन प्रभाउ देखावत सोई ॥ कहि बातें मृदु मधुर सुहाईं । किए बिदा बालक बरिआई ॥
Doha / दोहा
दो. सभय सप्रेम बिनीत अति सकुच सहित दोउ भाइ । गुर पद पंकज नाइ सिर बैठे आयसु पाइ ॥ २२५ ॥
Chaupai / चोपाई
निसि प्रबेस मुनि आयसु दीन्हा । सबहीं संध्याबंदनु कीन्हा ॥ कहत कथा इतिहास पुरानी । रुचिर रजनि जुग जाम सिरानी ॥
मुनिबर सयन कीन्हि तब जाई । लगे चरन चापन दोउ भाई ॥ जिन्ह के चरन सरोरुह लागी । करत बिबिध जप जोग बिरागी ॥
तेइ दोउ बंधु प्रेम जनु जीते । गुर पद कमल पलोटत प्रीते ॥ बारबार मुनि अग्या दीन्ही । रघुबर जाइ सयन तब कीन्ही ॥
चापत चरन लखनु उर लाएँ । सभय सप्रेम परम सचु पाएँ ॥ पुनि पुनि प्रभु कह सोवहु ताता । पौढ़े धरि उर पद जलजाता ॥
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