ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Doha/ दोहा
दो. देखि पवनसुत धायउ बोलत बचन कठोर। आवत कपिहि हन्यो तेहिं मुष्टि प्रहार प्रघोर ॥ ८३ ॥
Chaupai / चोपाई
जानु टेकि कपि भूमि न गिरा। उठा सँभारि बहुत रिस भरा ॥ मुठिका एक ताहि कपि मारा। परेउ सैल जनु बज्र प्रहारा ॥
मुरुछा गै बहोरि सो जागा। कपि बल बिपुल सराहन लागा ॥ धिग धिग मम पौरुष धिग मोही। जौं तैं जिअत रहेसि सुरद्रोही ॥
अस कहि लछिमन कहुँ कपि ल्यायो। देखि दसानन बिसमय पायो ॥ कह रघुबीर समुझु जियँ भ्राता। तुम्ह कृतांत भच्छक सुर त्राता ॥
सुनत बचन उठि बैठ कृपाला। गई गगन सो सकति कराला ॥ पुनि कोदंड बान गहि धाए। रिपु सन्मुख अति आतुर आए ॥
Chanda / छन्द
छं. आतुर बहोरि बिभंजि स्यंदन सूत हति ब्याकुल कियो। गिर् यो धरनि दसकंधर बिकलतर बान सत बेध्यो हियो ॥ सारथी दूसर घालि रथ तेहि तुरत लंका लै गयो। रघुबीर बंधु प्रताप पुंज बहोरि प्रभु चरनन्हि नयो ॥
Doha/ दोहा
दो. उहाँ दसानन जागि करि करै लाग कछु जग्य। राम बिरोध बिजय चह सठ हठ बस अति अग्य ॥ ८४ ॥
Chaupai / चोपाई
इहाँ बिभीषन सब सुधि पाई। सपदि जाइ रघुपतिहि सुनाई ॥ नाथ करइ रावन एक जागा। सिद्ध भएँ नहिं मरिहि अभागा ॥
पठवहु नाथ बेगि भट बंदर। करहिं बिधंस आव दसकंधर ॥ प्रात होत प्रभु सुभट पठाए। हनुमदादि अंगद सब धाए ॥
कौतुक कूदि चढ़े कपि लंका। पैठे रावन भवन असंका ॥ जग्य करत जबहीं सो देखा। सकल कपिन्ह भा क्रोध बिसेषा ॥
रन ते निलज भाजि गृह आवा। इहाँ आइ बक ध्यान लगावा ॥ अस कहि अंगद मारा लाता। चितव न सठ स्वारथ मन राता ॥
Chanda / छन्द
छं. नहिं चितव जब करि कोप कपि गहि दसन लातन्ह मारहीं। धरि केस नारि निकारि बाहेर तेऽतिदीन पुकारहीं ॥ तब उठेउ क्रुद्ध कृतांत सम गहि चरन बानर डारई। एहि बीच कपिन्ह बिधंस कृत मख देखि मन महुँ हारई ॥
Doha/ दोहा
दो. जग्य बिधंसि कुसल कपि आए रघुपति पास। चलेउ निसाचर क्रुर्द्ध होइ त्यागि जिवन कै आस ॥ ८५ ॥
Chaupai / चोपाई
चलत होहिं अति असुभ भयंकर। बैठहिं गीध उड़ाइ सिरन्ह पर ॥ भयउ कालबस काहु न माना। कहेसि बजावहु जुद्ध निसाना ॥
चली तमीचर अनी अपारा। बहु गज रथ पदाति असवारा ॥ प्रभु सन्मुख धाए खल कैंसें। सलभ समूह अनल कहँ जैंसें ॥
इहाँ देवतन्ह अस्तुति कीन्ही। दारुन बिपति हमहि एहिं दीन्ही ॥ अब जनि राम खेलावहु एही। अतिसय दुखित होति बैदेही ॥
देव बचन सुनि प्रभु मुसकाना। उठि रघुबीर सुधारे बाना।जटा जूट दृढ़ बाँधै माथे। सोहहिं सुमन बीच बिच गाथे ॥
अरुन नयन बारिद तनु स्यामा। अखिल लोक लोचनाभिरामा ॥ कटितट परिकर कस्यो निषंगा। कर कोदंड कठिन सारंगा ॥
Chanda / छन्द
छं. सारंग कर सुंदर निषंग सिलीमुखाकर कटि कस्यो। भुजदंड पीन मनोहरायत उर धरासुर पद लस्यो ॥ कह दास तुलसी जबहिं प्रभु सर चाप कर फेरन लगे। ब्रह्मांड दिग्गज कमठ अहि महि सिंधु भूधर डगमगे ॥
Doha/ दोहा
दो. सोभा देखि हरषि सुर बरषहिं सुमन अपार। जय जय जय करुनानिधि छबि बल गुन आगार ॥ ८६ ॥
Chaupai / चोपाई
एहीं बीच निसाचर अनी। कसमसात आई अति घनी।देखि चले सन्मुख कपि भट्टा। प्रलयकाल के जनु घन घट्टा ॥
बहु कृपान तरवारि चमंकहिं। जनु दहँ दिसि दामिनीं दमंकहिं ॥ गज रथ तुरग चिकार कठोरा। गर्जहिं मनहुँ बलाहक घोरा ॥
कपि लंगूर बिपुल नभ छाए। मनहुँ इंद्रधनु उए सुहाए ॥ उठइ धूरि मानहुँ जलधारा। बान बुंद भै बृष्टि अपारा ॥
दुहुँ दिसि पर्बत करहिं प्रहारा। बज्रपात जनु बारहिं बारा ॥ रघुपति कोऽपि बान झरि लाई। घायल भै निसिचर समुदाई ॥
लागत बान बीर चिक्करहीं। घुर्मि घुर्मि जहँ तहँ महि परहीं ॥ स्त्रवहिं सैल जनु निर्झर भारी। सोनित सरि कादर भयकारी ॥
Chanda / छन्द
छं. कादर भयंकर रुधिर सरिता चली परम अपावनी। दोउ कूल दल रथ रेत चक्र अबर्त बहति भयावनी ॥ जल जंतुगज पदचर तुरग खर बिबिध बाहन को गने। सर सक्ति तोमर सर्प चाप तरंग चर्म कमठ घने ॥
Doha/ दोहा
दो. बीर परहिं जनु तीर तरु मज्जा बहु बह फेन। कादर देखि डरहिं तहँ सुभटन्ह के मन चेन ॥ ८७ ॥
Chaupai / चोपाई
मज्जहि भूत पिसाच बेताला। प्रमथ महा झोटिंग कराला ॥ काक कंक लै भुजा उड़ाहीं। एक ते छीनि एक लै खाहीं ॥
एक कहहिं ऐसिउ सौंघाई। सठहु तुम्हार दरिद्र न जाई ॥ कहँरत भट घायल तट गिरे। जहँ तहँ मनहुँ अर्धजल परे ॥
खैंचहिं गीध आँत तट भए। जनु बंसी खेलत चित दए ॥ बहु भट बहहिं चढ़े खग जाहीं। जनु नावरि खेलहिं सरि माहीं ॥
जोगिनि भरि भरि खप्पर संचहिं। भूत पिसाच बधू नभ नंचहिं ॥ भट कपाल करताल बजावहिं। चामुंडा नाना बिधि गावहिं ॥
जंबुक निकर कटक्कट कट्टहिं। खाहिं हुआहिं अघाहिं दपट्टहिं ॥ कोटिन्ह रुंड मुंड बिनु डोल्लहिं। सीस परे महि जय जय बोल्लहिं ॥
Chanda / छन्द
छं. बोल्लहिं जो जय जय मुंड रुंड प्रचंड सिर बिनु धावहीं। खप्परिन्ह खग्ग अलुज्झि जुज्झहिं सुभट भटन्ह ढहावहीं ॥ बानर निसाचर निकर मर्दहिं राम बल दर्पित भए। संग्राम अंगन सुभट सोवहिं राम सर निकरन्हि हए ॥
Doha/ दोहा
दो. रावन हृदयँ बिचारा भा निसिचर संघार। मैं अकेल कपि भालु बहु माया करौं अपार ॥ ८८ ॥
Chaupai / चोपाई
देवन्ह प्रभुहि पयादें देखा। उपजा उर अति छोभ बिसेषा ॥ सुरपति निज रथ तुरत पठावा। हरष सहित मातलि लै आवा ॥
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