Ram Charita Manas

Masaparayan 12

ॐ श्री परमात्मने नमः

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संस्कृत्म
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Chaupai / चोपाई

स्याम सरीरु सुभायँ सुहावन । सोभा कोटि मनोज लजावन ॥ जावक जुत पद कमल सुहाए । मुनि मन मधुप रहत जिन्ह छाए ॥

पीत पुनीत मनोहर धोती । हरति बाल रबि दामिनि जोती ॥ कल किंकिनि कटि सूत्र मनोहर । बाहु बिसाल बिभूषन सुंदर ॥

पीत जनेउ महाछबि देई । कर मुद्रिका चोरि चितु लेई ॥ सोहत ब्याह साज सब साजे । उर आयत उरभूषन राजे ॥

पिअर उपरना काखासोती । दुहुँ आँचरन्हि लगे मनि मोती ॥ नयन कमल कल कुंडल काना । बदनु सकल सौंदर्ज निधाना ॥

सुंदर भृकुटि मनोहर नासा । भाल तिलकु रुचिरता निवासा ॥ सोहत मौरु मनोहर माथे । मंगलमय मुकुता मनि गाथे ॥

Chanda / छन्द

छं. गाथे महामनि मौर मंजुल अंग सब चित चोरहीं । पुर नारि सुर सुंदरीं बरहि बिलोकि सब तिन तोरहीं ॥ मनि बसन भूषन वारि आरति करहिं मंगल गावहिं । सुर सुमन बरिसहिं सूत मागध बंदि सुजसु सुनावहीं ॥ १ ॥

कोहबरहिं आने कुँअर कुँअरि सुआसिनिन्ह सुख पाइ कै । अति प्रीति लौकिक रीति लागीं करन मंगल गाइ कै ॥ लहकौरि गौरि सिखाव रामहि सीय सन सारद कहैं । रनिवासु हास बिलास रस बस जन्म को फलु सब लहैं ॥ २ ॥

निज पानि मनि महुँ देखिअति मूरति सुरूपनिधान की । चालति न भुजबल्ली बिलोकनि बिरह भय बस जानकी ॥ कौतुक बिनोद प्रमोदु प्रेमु न जाइ कहि जानहिं अलीं । बर कुअँरि सुंदर सकल सखीं लवाइ जनवासेहि चलीं ॥ ३ ॥

तेहि समय सुनिअ असीस जहँ तहँ नगर नभ आनँदु महा । चिरु जिअहुँ जोरीं चारु चारयो मुदित मन सबहीं कहा ॥ जोगीन्द्र सिद्ध मुनीस देव बिलोकि प्रभु दुंदुभि हनी । चले हरषि बरषि प्रसून निज निज लोक जय जय जय भनी ॥ ४ ॥

Doha / दोहा

दो. सहित बधूटिन्ह कुअँर सब तब आए पितु पास । सोभा मंगल मोद भरि उमगेउ जनु जनवास ॥ ३२७ ॥

Chaupai / चोपाई

पुनि जेवनार भई बहु भाँती । पठए जनक बोलाइ बराती ॥ परत पाँवड़े बसन अनूपा । सुतन्ह समेत गवन कियो भूपा ॥

सादर सबके पाय पखारे । जथाजोगु पीढ़न्ह बैठारे ॥ धोए जनक अवधपति चरना । सीलु सनेहु जाइ नहिं बरना ॥

बहुरि राम पद पंकज धोए । जे हर हृदय कमल महुँ गोए ॥ तीनिउ भाई राम सम जानी । धोए चरन जनक निज पानी ॥

आसन उचित सबहि नृप दीन्हे । बोलि सूपकारी सब लीन्हे ॥ सादर लगे परन पनवारे । कनक कील मनि पान सँवारे ॥

Doha / दोहा

दो. सूपोदन सुरभी सरपि सुंदर स्वादु पुनीत । छन महुँ सब कें परुसि गे चतुर सुआर बिनीत ॥ ३२८ ॥

Chaupai / चोपाई

पंच कवल करि जेवन लागे । गारि गान सुनि अति अनुरागे ॥ भाँति अनेक परे पकवाने । सुधा सरिस नहिं जाहिं बखाने ॥

परुसन लगे सुआर सुजाना । बिंजन बिबिध नाम को जाना ॥ चारि भाँति भोजन बिधि गाई । एक एक बिधि बरनि न जाई ॥

छरस रुचिर बिंजन बहु जाती । एक एक रस अगनित भाँती ॥ जेवँत देहिं मधुर धुनि गारी । लै लै नाम पुरुष अरु नारी ॥

समय सुहावनि गारि बिराजा । हँसत राउ सुनि सहित समाजा ॥ एहि बिधि सबहीं भौजनु कीन्हा । आदर सहित आचमनु दीन्हा ॥

Doha / दोहा

दो. देइ पान पूजे जनक दसरथु सहित समाज । जनवासेहि गवने मुदित सकल भूप सिरताज ॥ ३२९ ॥

Chaupai / चोपाई

नित नूतन मंगल पुर माहीं । निमिष सरिस दिन जामिनि जाहीं ॥ बड़े भोर भूपतिमनि जागे । जाचक गुन गन गावन लागे ॥

देखि कुअँर बर बधुन्ह समेता । किमि कहि जात मोदु मन जेता ॥ प्रातक्रिया करि गे गुरु पाहीं । महाप्रमोदु प्रेमु मन माहीं ॥

करि प्रनाम पूजा कर जोरी । बोले गिरा अमिअँ जनु बोरी ॥ तुम्हरी कृपाँ सुनहु मुनिराजा । भयउँ आजु मैं पूरनकाजा ॥

अब सब बिप्र बोलाइ गोसाईं । देहु धेनु सब भाँति बनाई ॥ सुनि गुर करि महिपाल बड़ाई । पुनि पठए मुनि बृंद बोलाई ॥

Doha / दोहा

दो. बामदेउ अरु देवरिषि बालमीकि जाबालि । आए मुनिबर निकर तब कौसिकादि तपसालि ॥ ३३० ॥

Chaupai / चोपाई

दंड प्रनाम सबहि नृप कीन्हे । पूजि सप्रेम बरासन दीन्हे ॥ चारि लच्छ बर धेनु मगाई । कामसुरभि सम सील सुहाई ॥

सब बिधि सकल अलंकृत कीन्हीं । मुदित महिप महिदेवन्ह दीन्हीं ॥ करत बिनय बहु बिधि नरनाहू । लहेउँ आजु जग जीवन लाहू ॥

पाइ असीस महीसु अनंदा । लिए बोलि पुनि जाचक बृंदा ॥ कनक बसन मनि हय गय स्यंदन । दिए बूझि रुचि रबिकुलनंदन ॥

चले पढ़त गावत गुन गाथा । जय जय जय दिनकर कुल नाथा ॥ एहि बिधि राम बिआह उछाहू । सकइ न बरनि सहस मुख जाहू ॥

Doha / दोहा

दो. बार बार कौसिक चरन सीसु नाइ कह राउ । यह सबु सुखु मुनिराज तव कृपा कटाच्छ पसाउ ॥ ३३१ ॥

Chaupai / चोपाई

जनक सनेहु सीलु करतूती । नृपु सब भाँति सराह बिभूती ॥ दिन उठि बिदा अवधपति मागा । राखहिं जनकु सहित अनुरागा ॥

नित नूतन आदरु अधिकाई । दिन प्रति सहस भाँति पहुनाई ॥ नित नव नगर अनंद उछाहू । दसरथ गवनु सोहाइ न काहू ॥

बहुत दिवस बीते एहि भाँती । जनु सनेह रजु बँधे बराती ॥ कौसिक सतानंद तब जाई । कहा बिदेह नृपहि समुझाई ॥

अब दसरथ कहँ आयसु देहू । जद्यपि छाड़ि न सकहु सनेहू ॥ भलेहिं नाथ कहि सचिव बोलाए । कहि जय जीव सीस तिन्ह नाए ॥

Doha / दोहा

दो. अवधनाथु चाहत चलन भीतर करहु जनाउ । भए प्रेमबस सचिव सुनि बिप्र सभासद राउ ॥ ३३२ ॥

Chaupai / चोपाई

पुरबासी सुनि चलिहि बराता । बूझत बिकल परस्पर बाता ॥ सत्य गवनु सुनि सब बिलखाने । मनहुँ साँझ सरसिज सकुचाने ॥

जहँ जहँ आवत बसे बराती । तहँ तहँ सिद्ध चला बहु भाँती ॥ बिबिध भाँति मेवा पकवाना । भोजन साजु न जाइ बखाना ॥

भरि भरि बसहँ अपार कहारा । पठई जनक अनेक सुसारा ॥ तुरग लाख रथ सहस पचीसा । सकल सँवारे नख अरु सीसा ॥

मत्त सहस दस सिंधुर साजे । जिन्हहि देखि दिसिकुंजर लाजे ॥ कनक बसन मनि भरि भरि जाना । महिषीं धेनु बस्तु बिधि नाना ॥

Doha / दोहा

दो. दाइज अमित न सकिअ कहि दीन्ह बिदेहँ बहोरि । जो अवलोकत लोकपति लोक संपदा थोरि ॥ ३३३ ॥

Chaupai / चोपाई

सबु समाजु एहि भाँति बनाई । जनक अवधपुर दीन्ह पठाई ॥ चलिहि बरात सुनत सब रानीं । बिकल मीनगन जनु लघु पानीं ॥

पुनि पुनि सीय गोद करि लेहीं । देइ असीस सिखावनु देहीं ॥ होएहु संतत पियहि पिआरी । चिरु अहिबात असीस हमारी ॥

सासु ससुर गुर सेवा करेहू । पति रुख लखि आयसु अनुसरेहू ॥ अति सनेह बस सखीं सयानी । नारि धरम सिखवहिं मृदु बानी ॥

सादर सकल कुअँरि समुझाई । रानिन्ह बार बार उर लाई ॥ बहुरि बहुरि भेटहिं महतारीं । कहहिं बिरंचि रचीं कत नारीं ॥

Doha / दोहा

दो. तेहि अवसर भाइन्ह सहित रामु भानु कुल केतु । चले जनक मंदिर मुदित बिदा करावन हेतु ॥ ३३४ ॥

Chaupai / चोपाई

चारिअ भाइ सुभायँ सुहाए । नगर नारि नर देखन धाए ॥ कोउ कह चलन चहत हहिं आजू । कीन्ह बिदेह बिदा कर साजू ॥

लेहु नयन भरि रूप निहारी । प्रिय पाहुने भूप सुत चारी ॥ को जानै केहि सुकृत सयानी । नयन अतिथि कीन्हे बिधि आनी ॥

मरनसीलु जिमि पाव पिऊषा । सुरतरु लहै जनम कर भूखा ॥ पाव नारकी हरिपदु जैसें । इन्ह कर दरसनु हम कहँ तैसे ॥

निरखि राम सोभा उर धरहू । निज मन फनि मूरति मनि करहू ॥ एहि बिधि सबहि नयन फलु देता । गए कुअँर सब राज निकेता ॥

Doha / दोहा

दो. रूप सिंधु सब बंधु लखि हरषि उठा रनिवासु । करहि निछावरि आरती महा मुदित मन सासु ॥ ३३५ ॥

Chaupai / चोपाई

देखि राम छबि अति अनुरागीं । प्रेमबिबस पुनि पुनि पद लागीं ॥ रही न लाज प्रीति उर छाई । सहज सनेहु बरनि किमि जाई ॥

भाइन्ह सहित उबटि अन्हवाए । छरस असन अति हेतु जेवाँए ॥ बोले रामु सुअवसरु जानी । सील सनेह सकुचमय बानी ॥

राउ अवधपुर चहत सिधाए । बिदा होन हम इहाँ पठाए ॥ मातु मुदित मन आयसु देहू । बालक जानि करब नित नेहू ॥

सुनत बचन बिलखेउ रनिवासू । बोलि न सकहिं प्रेमबस सासू ॥ हृदयँ लगाइ कुअँरि सब लीन्ही । पतिन्ह सौंपि बिनती अति कीन्ही ॥

Chanda / छन्द

छं. करि बिनय सिय रामहि समरपी जोरि कर पुनि पुनि कहै । बलि जाँउ तात सुजान तुम्ह कहुँ बिदित गति सब की अहै ॥ परिवार पुरजन मोहि राजहि प्रानप्रिय सिय जानिबी । तुलसीस सीलु सनेहु लखि निज किंकरी करि मानिबी ॥

Sortha/ सोरठा

सो. तुम्ह परिपूरन काम जान सिरोमनि भावप्रिय । जन गुन गाहक राम दोष दलन करुनायतन ॥ ३३६ ॥

Chaupai / चोपाई

अस कहि रही चरन गहि रानी । प्रेम पंक जनु गिरा समानी ॥ सुनि सनेहसानी बर बानी । बहुबिधि राम सासु सनमानी ॥

राम बिदा मागत कर जोरी । कीन्ह प्रनामु बहोरि बहोरी ॥ पाइ असीस बहुरि सिरु नाई । भाइन्ह सहित चले रघुराई ॥

मंजु मधुर मूरति उर आनी । भई सनेह सिथिल सब रानी ॥ पुनि धीरजु धरि कुअँरि हँकारी । बार बार भेटहिं महतारीं ॥

पहुँचावहिं फिरि मिलहिं बहोरी । बढ़ी परस्पर प्रीति न थोरी ॥ पुनि पुनि मिलत सखिन्ह बिलगाई । बाल बच्छ जिमि धेनु लवाई ॥

Doha / दोहा

दो. प्रेमबिबस नर नारि सब सखिन्ह सहित रनिवासु । मानहुँ कीन्ह बिदेहपुर करुनाँ बिरहँ निवासु ॥ ३३७ ॥

Chaupai / चोपाई

सुक सारिका जानकी ज्याए । कनक पिंजरन्हि राखि पढ़ाए ॥ ब्याकुल कहहिं कहाँ बैदेही । सुनि धीरजु परिहरइ न केही ॥

भए बिकल खग मृग एहि भाँति । मनुज दसा कैसें कहि जाती ॥ बंधु समेत जनकु तब आए । प्रेम उमगि लोचन जल छाए ॥

सीय बिलोकि धीरता भागी । रहे कहावत परम बिरागी ॥ लीन्हि राँय उर लाइ जानकी । मिटी महामरजाद ग्यान की ॥

समुझावत सब सचिव सयाने । कीन्ह बिचारु न अवसर जाने ॥ बारहिं बार सुता उर लाई । सजि सुंदर पालकीं मगाई ॥

Doha / दोहा

दो. प्रेमबिबस परिवारु सबु जानि सुलगन नरेस । कुँअरि चढ़ाई पालकिन्ह सुमिरे सिद्धि गनेस ॥ ३३८ ॥

Chaupai / चोपाई

बहुबिधि भूप सुता समुझाई । नारिधरमु कुलरीति सिखाई ॥ दासीं दास दिए बहुतेरे । सुचि सेवक जे प्रिय सिय केरे ॥

सीय चलत ब्याकुल पुरबासी । होहिं सगुन सुभ मंगल रासी ॥ भूसुर सचिव समेत समाजा । संग चले पहुँचावन राजा ॥

समय बिलोकि बाजने बाजे । रथ गज बाजि बरातिन्ह साजे ॥ दसरथ बिप्र बोलि सब लीन्हे । दान मान परिपूरन कीन्हे ॥

चरन सरोज धूरि धरि सीसा । मुदित महीपति पाइ असीसा ॥ सुमिरि गजाननु कीन्ह पयाना । मंगलमूल सगुन भए नाना ॥

Doha / दोहा

दो. सुर प्रसून बरषहि हरषि करहिं अपछरा गान । चले अवधपति अवधपुर मुदित बजाइ निसान ॥ ३३९ ॥

Chaupai / चोपाई

नृप करि बिनय महाजन फेरे । सादर सकल मागने टेरे ॥ भूषन बसन बाजि गज दीन्हे । प्रेम पोषि ठाढ़े सब कीन्हे ॥

बार बार बिरिदावलि भाषी । फिरे सकल रामहि उर राखी ॥ बहुरि बहुरि कोसलपति कहहीं । जनकु प्रेमबस फिरै न चहहीं ॥

पुनि कह भूपति बचन सुहाए । फिरिअ महीस दूरि बड़ि आए ॥ राउ बहोरि उतरि भए ठाढ़े । प्रेम प्रबाह बिलोचन बाढ़े ॥

तब बिदेह बोले कर जोरी । बचन सनेह सुधाँ जनु बोरी ॥ करौ कवन बिधि बिनय बनाई । महाराज मोहि दीन्हि बड़ाई ॥

Doha / दोहा

दो. कोसलपति समधी सजन सनमाने सब भाँति । मिलनि परसपर बिनय अति प्रीति न हृदयँ समाति ॥ ३४० ॥

Chaupai / चोपाई

मुनि मंडलिहि जनक सिरु नावा । आसिरबादु सबहि सन पावा ॥ सादर पुनि भेंटे जामाता । रूप सील गुन निधि सब भ्राता ॥

जोरि पंकरुह पानि सुहाए । बोले बचन प्रेम जनु जाए ॥ राम करौ केहि भाँति प्रसंसा । मुनि महेस मन मानस हंसा ॥

करहिं जोग जोगी जेहि लागी । कोहु मोहु ममता मदु त्यागी ॥ ब्यापकु ब्रह्मु अलखु अबिनासी । चिदानंदु निरगुन गुनरासी ॥

मन समेत जेहि जान न बानी । तरकि न सकहिं सकल अनुमानी ॥ महिमा निगमु नेति कहि कहई । जो तिहुँ काल एकरस रहई ॥

Doha / दोहा

दो. नयन बिषय मो कहुँ भयउ सो समस्त सुख मूल । सबइ लाभु जग जीव कहँ भएँ ईसु अनुकुल ॥ ३४१ ॥

Chaupai / चोपाई

सबहि भाँति मोहि दीन्हि बड़ाई । निज जन जानि लीन्ह अपनाई ॥ होहिं सहस दस सारद सेषा । करहिं कलप कोटिक भरि लेखा ॥

मोर भाग्य राउर गुन गाथा । कहि न सिराहिं सुनहु रघुनाथा ॥ मै कछु कहउँ एक बल मोरें । तुम्ह रीझहु सनेह सुठि थोरें ॥

बार बार मागउँ कर जोरें । मनु परिहरै चरन जनि भोरें ॥ सुनि बर बचन प्रेम जनु पोषे । पूरनकाम रामु परितोषे ॥

करि बर बिनय ससुर सनमाने । पितु कौसिक बसिष्ठ सम जाने ॥ बिनती बहुरि भरत सन कीन्ही । मिलि सप्रेमु पुनि आसिष दीन्ही ॥

Doha / दोहा

दो. मिले लखन रिपुसूदनहि दीन्हि असीस महीस । भए परस्पर प्रेमबस फिरि फिरि नावहिं सीस ॥ ३४२ ॥

Chaupai / चोपाई

बार बार करि बिनय बड़ाई । रघुपति चले संग सब भाई ॥ जनक गहे कौसिक पद जाई । चरन रेनु सिर नयनन्ह लाई ॥

सुनु मुनीस बर दरसन तोरें । अगमु न कछु प्रतीति मन मोरें ॥ जो सुखु सुजसु लोकपति चहहीं । करत मनोरथ सकुचत अहहीं ॥

सो सुखु सुजसु सुलभ मोहि स्वामी । सब सिधि तव दरसन अनुगामी ॥ कीन्हि बिनय पुनि पुनि सिरु नाई । फिरे महीसु आसिषा पाई ॥

चली बरात निसान बजाई । मुदित छोट बड़ सब समुदाई ॥ रामहि निरखि ग्राम नर नारी । पाइ नयन फलु होहिं सुखारी ॥

Doha / दोहा

दो. बीच बीच बर बास करि मग लोगन्ह सुख देत । अवध समीप पुनीत दिन पहुँची आइ जनेत ॥ ३४३ ॥

Chaupai / चोपाई

हने निसान पनव बर बाजे । भेरि संख धुनि हय गय गाजे ॥ झाँझि बिरव डिंडमीं सुहाई । सरस राग बाजहिं सहनाई ॥

पुर जन आवत अकनि बराता । मुदित सकल पुलकावलि गाता ॥ निज निज सुंदर सदन सँवारे । हाट बाट चौहट पुर द्वारे ॥

गलीं सकल अरगजाँ सिंचाई । जहँ तहँ चौकें चारु पुराई ॥ बना बजारु न जाइ बखाना । तोरन केतु पताक बिताना ॥

सफल पूगफल कदलि रसाला । रोपे बकुल कदंब तमाला ॥ लगे सुभग तरु परसत धरनी । मनिमय आलबाल कल करनी ॥

Doha / दोहा

दो. बिबिध भाँति मंगल कलस गृह गृह रचे सँवारि । सुर ब्रह्मादि सिहाहिं सब रघुबर पुरी निहारि ॥ ३४४ ॥

Chaupai / चोपाई

भूप भवन तेहि अवसर सोहा । रचना देखि मदन मनु मोहा ॥ मंगल सगुन मनोहरताई । रिधि सिधि सुख संपदा सुहाई ॥

जनु उछाह सब सहज सुहाए । तनु धरि धरि दसरथ दसरथ गृहँ छाए ॥ देखन हेतु राम बैदेही । कहहु लालसा होहि न केही ॥

जुथ जूथ मिलि चलीं सुआसिनि । निज छबि निदरहिं मदन बिलासनि ॥ सकल सुमंगल सजें आरती । गावहिं जनु बहु बेष भारती ॥

भूपति भवन कोलाहलु होई । जाइ न बरनि समउ सुखु सोई ॥ कौसल्यादि राम महतारीं । प्रेम बिबस तन दसा बिसारीं ॥

Doha / दोहा

दो. दिए दान बिप्रन्ह बिपुल पूजि गनेस पुरारी । प्रमुदित परम दरिद्र जनु पाइ पदारथ चारि ॥ ३४५ ॥

Chaupai / चोपाई

मोद प्रमोद बिबस सब माता । चलहिं न चरन सिथिल भए गाता ॥ राम दरस हित अति अनुरागीं । परिछनि साजु सजन सब लागीं ॥

बिबिध बिधान बाजने बाजे । मंगल मुदित सुमित्राँ साजे ॥ हरद दूब दधि पल्लव फूला । पान पूगफल मंगल मूला ॥

अच्छत अंकुर लोचन लाजा । मंजुल मंजरि तुलसि बिराजा ॥ छुहे पुरट घट सहज सुहाए । मदन सकुन जनु नीड़ बनाए ॥

सगुन सुंगध न जाहिं बखानी । मंगल सकल सजहिं सब रानी ॥ रचीं आरतीं बहुत बिधाना । मुदित करहिं कल मंगल गाना ॥

Doha / दोहा

दो. कनक थार भरि मंगलन्हि कमल करन्हि लिएँ मात । चलीं मुदित परिछनि करन पुलक पल्लवित गात ॥ ३४६ ॥

Chaupai / चोपाई

धूप धूम नभु मेचक भयऊ । सावन घन घमंडु जनु ठयऊ ॥ सुरतरु सुमन माल सुर बरषहिं । मनहुँ बलाक अवलि मनु करषहिं ॥

मंजुल मनिमय बंदनिवारे । मनहुँ पाकरिपु चाप सँवारे ॥ प्रगटहिं दुरहिं अटन्ह पर भामिनि । चारु चपल जनु दमकहिं दामिनि ॥

दुंदुभि धुनि घन गरजनि घोरा । जाचक चातक दादुर मोरा ॥ सुर सुगन्ध सुचि बरषहिं बारी । सुखी सकल ससि पुर नर नारी ॥

समउ जानी गुर आयसु दीन्हा । पुर प्रबेसु रघुकुलमनि कीन्हा ॥ सुमिरि संभु गिरजा गनराजा । मुदित महीपति सहित समाजा ॥

Doha / दोहा

दो. होहिं सगुन बरषहिं सुमन सुर दुंदुभीं बजाइ । बिबुध बधू नाचहिं मुदित मंजुल मंगल गाइ ॥ ३४७ ॥

Chaupai / चोपाई

मागध सूत बंदि नट नागर । गावहिं जसु तिहु लोक उजागर ॥ जय धुनि बिमल बेद बर बानी । दस दिसि सुनिअ सुमंगल सानी ॥

बिपुल बाजने बाजन लागे । नभ सुर नगर लोग अनुरागे ॥ बने बराती बरनि न जाहीं । महा मुदित मन सुख न समाहीं ॥

पुरबासिंह तब राय जोहारे । देखत रामहि भए सुखारे ॥ करहिं निछावरि मनिगन चीरा । बारि बिलोचन पुलक सरीरा ॥

आरति करहिं मुदित पुर नारी । हरषहिं निरखि कुँअर बर चारी ॥ सिबिका सुभग ओहार उघारी । देखि दुलहिनिन्ह होहिं सुखारी ॥

Doha / दोहा

दो. एहि बिधि सबही देत सुखु आए राजदुआर । मुदित मातु परुछनि करहिं बधुन्ह समेत कुमार ॥ ३४८ ॥

Chaupai / चोपाई

करहिं आरती बारहिं बारा । प्रेमु प्रमोदु कहै को पारा ॥ भूषन मनि पट नाना जाती ॥ करही निछावरि अगनित भाँती ॥

बधुन्ह समेत देखि सुत चारी । परमानंद मगन महतारी ॥ पुनि पुनि सीय राम छबि देखी ॥ मुदित सफल जग जीवन लेखी ॥

सखीं सीय मुख पुनि पुनि चाही । गान करहिं निज सुकृत सराही ॥ बरषहिं सुमन छनहिं छन देवा । नाचहिं गावहिं लावहिं सेवा ॥

देखि मनोहर चारिउ जोरीं । सारद उपमा सकल ढँढोरीं ॥ देत न बनहिं निपट लघु लागी । एकटक रहीं रूप अनुरागीं ॥

Doha / दोहा

दो. निगम नीति कुल रीति करि अरघ पाँवड़े देत । बधुन्ह सहित सुत परिछि सब चलीं लवाइ निकेत ॥ ३४९ ॥

Chaupai / चोपाई

चारि सिंघासन सहज सुहाए । जनु मनोज निज हाथ बनाए ॥ तिन्ह पर कुअँरि कुअँर बैठारे । सादर पाय पुनित पखारे ॥

धूप दीप नैबेद बेद बिधि । पूजे बर दुलहिनि मंगलनिधि ॥ बारहिं बार आरती करहीं । ब्यजन चारु चामर सिर ढरहीं ॥

बस्तु अनेक निछावर होहीं । भरीं प्रमोद मातु सब सोहीं ॥ पावा परम तत्त्व जनु जोगीं । अमृत लहेउ जनु संतत रोगीं ॥

जनम रंक जनु पारस पावा । अंधहि लोचन लाभु सुहावा ॥ मूक बदन जनु सारद छाई । मानहुँ समर सूर जय पाई ॥

Doha / दोहा

दो. एहि सुख ते सत कोटि गुन पावहिं मातु अनंदु ॥ भाइन्ह सहित बिआहि घर आए रघुकुलचंदु ॥ ३५०(क) ॥

Chaupai / चोपाई

लोक रीत जननी करहिं बर दुलहिनि सकुचाहिं । मोदु बिनोदु बिलोकि बड़ रामु मनहिं मुसकाहिं ॥ ३५०(ख) ॥

देव पितर पूजे बिधि नीकी । पूजीं सकल बासना जी की ॥ सबहिं बंदि मागहिं बरदाना । भाइन्ह सहित राम कल्याना ॥

अंतरहित सुर आसिष देहीं । मुदित मातु अंचल भरि लेंहीं ॥ भूपति बोलि बराती लीन्हे । जान बसन मनि भूषन दीन्हे ॥

आयसु पाइ राखि उर रामहि । मुदित गए सब निज निज धामहि ॥ पुर नर नारि सकल पहिराए । घर घर बाजन लगे बधाए ॥

जाचक जन जाचहि जोइ जोई । प्रमुदित राउ देहिं सोइ सोई ॥ सेवक सकल बजनिआ नाना । पूरन किए दान सनमाना ॥

Doha / दोहा

दो. देंहिं असीस जोहारि सब गावहिं गुन गन गाथ । तब गुर भूसुर सहित गृहँ गवनु कीन्ह नरनाथ ॥ ३५१ ॥

Chaupai / चोपाई

जो बसिष्ठ अनुसासन दीन्ही । लोक बेद बिधि सादर कीन्ही ॥ भूसुर भीर देखि सब रानी । सादर उठीं भाग्य बड़ जानी ॥

पाय पखारि सकल अन्हवाए । पूजि भली बिधि भूप जेवाँए ॥ आदर दान प्रेम परिपोषे । देत असीस चले मन तोषे ॥

बहु बिधि कीन्हि गाधिसुत पूजा । नाथ मोहि सम धन्य न दूजा ॥ कीन्हि प्रसंसा भूपति भूरी । रानिन्ह सहित लीन्हि पग धूरी ॥

भीतर भवन दीन्ह बर बासु । मन जोगवत रह नृप रनिवासू ॥ पूजे गुर पद कमल बहोरी । कीन्हि बिनय उर प्रीति न थोरी ॥

Doha / दोहा

दो. बधुन्ह समेत कुमार सब रानिन्ह सहित महीसु । पुनि पुनि बंदत गुर चरन देत असीस मुनीसु ॥ ३५२ ॥

Chaupai / चोपाई

बिनय कीन्हि उर अति अनुरागें । सुत संपदा राखि सब आगें ॥ नेगु मागि मुनिनायक लीन्हा । आसिरबादु बहुत बिधि दीन्हा ॥

उर धरि रामहि सीय समेता । हरषि कीन्ह गुर गवनु निकेता ॥ बिप्रबधू सब भूप बोलाई । चैल चारु भूषन पहिराई ॥

बहुरि बोलाइ सुआसिनि लीन्हीं । रुचि बिचारि पहिरावनि दीन्हीं ॥ नेगी नेग जोग सब लेहीं । रुचि अनुरुप भूपमनि देहीं ॥

प्रिय पाहुने पूज्य जे जाने । भूपति भली भाँति सनमाने ॥ देव देखि रघुबीर बिबाहू । बरषि प्रसून प्रसंसि उछाहू ॥

Doha / दोहा

दो. चले निसान बजाइ सुर निज निज पुर सुख पाइ । कहत परसपर राम जसु प्रेम न हृदयँ समाइ ॥ ३५३ ॥

Chaupai / चोपाई

सब बिधि सबहि समदि नरनाहू । रहा हृदयँ भरि पूरि उछाहू ॥ जहँ रनिवासु तहाँ पगु धारे । सहित बहूटिन्ह कुअँर निहारे ॥

लिए गोद करि मोद समेता । को कहि सकइ भयउ सुखु जेता ॥ बधू सप्रेम गोद बैठारीं । बार बार हियँ हरषि दुलारीं ॥

देखि समाजु मुदित रनिवासू । सब कें उर अनंद कियो बासू ॥ कहेउ भूप जिमि भयउ बिबाहू । सुनि हरषु होत सब काहू ॥

जनक राज गुन सीलु बड़ाई । प्रीति रीति संपदा सुहाई ॥ बहुबिधि भूप भाट जिमि बरनी । रानीं सब प्रमुदित सुनि करनी ॥

Doha / दोहा

दो. सुतन्ह समेत नहाइ नृप बोलि बिप्र गुर ग्याति । भोजन कीन्ह अनेक बिधि घरी पंच गइ राति ॥ ३५४ ॥

Chaupai / चोपाई

मंगलगान करहिं बर भामिनि । भै सुखमूल मनोहर जामिनि ॥ अँचइ पान सब काहूँ पाए । स्त्रग सुगंध भूषित छबि छाए ॥

रामहि देखि रजायसु पाई । निज निज भवन चले सिर नाई ॥ प्रेम प्रमोद बिनोदु बढ़ाई । समउ समाजु मनोहरताई ॥

कहि न सकहि सत सारद सेसू । बेद बिरंचि महेस गनेसू ॥ सो मै कहौं कवन बिधि बरनी । भूमिनागु सिर धरइ कि धरनी ॥

नृप सब भाँति सबहि सनमानी । कहि मृदु बचन बोलाई रानी ॥ बधू लरिकनीं पर घर आईं । राखेहु नयन पलक की नाई ॥

Doha / दोहा

दो. लरिका श्रमित उनीद बस सयन करावहु जाइ । अस कहि गे बिश्रामगृहँ राम चरन चितु लाइ ॥ ३५५ ॥

Chaupai / चोपाई

भूप बचन सुनि सहज सुहाए । जरित कनक मनि पलँग डसाए ॥ सुभग सुरभि पय फेन समाना । कोमल कलित सुपेतीं नाना ॥

उपबरहन बर बरनि न जाहीं । स्त्रग सुगंध मनिमंदिर माहीं ॥ रतनदीप सुठि चारु चँदोवा । कहत न बनइ जान जेहिं जोवा ॥

सेज रुचिर रचि रामु उठाए । प्रेम समेत पलँग पौढ़ाए ॥ अग्या पुनि पुनि भाइन्ह दीन्ही । निज निज सेज सयन तिन्ह कीन्ही ॥

देखि स्याम मृदु मंजुल गाता । कहहिं सप्रेम बचन सब माता ॥ मारग जात भयावनि भारी । केहि बिधि तात ताड़का मारी ॥

Doha / दोहा

दो. घोर निसाचर बिकट भट समर गनहिं नहिं काहु ॥ मारे सहित सहाय किमि खल मारीच सुबाहु ॥ ३५६ ॥

Chaupai / चोपाई

मुनि प्रसाद बलि तात तुम्हारी । ईस अनेक करवरें टारी ॥ मख रखवारी करि दुहुँ भाई । गुरु प्रसाद सब बिद्या पाई ॥

मुनितय तरी लगत पग धूरी । कीरति रही भुवन भरि पूरी ॥ कमठ पीठि पबि कूट कठोरा । नृप समाज महुँ सिव धनु तोरा ॥

बिस्व बिजय जसु जानकि पाई । आए भवन ब्याहि सब भाई ॥ सकल अमानुष करम तुम्हारे । केवल कौसिक कृपाँ सुधारे ॥

आजु सुफल जग जनमु हमारा । देखि तात बिधुबदन तुम्हारा ॥ जे दिन गए तुम्हहि बिनु देखें । ते बिरंचि जनि पारहिं लेखें ॥

Doha / दोहा

दो. राम प्रतोषीं मातु सब कहि बिनीत बर बैन । सुमिरि संभु गुर बिप्र पद किए नीदबस नैन ॥ ३५७ ॥

Chaupai / चोपाई

नीदउँ बदन सोह सुठि लोना । मनहुँ साँझ सरसीरुह सोना ॥ घर घर करहिं जागरन नारीं । देहिं परसपर मंगल गारीं ॥

पुरी बिराजति राजति रजनी । रानीं कहहिं बिलोकहु सजनी ॥ सुंदर बधुन्ह सासु लै सोई । फनिकन्ह जनु सिरमनि उर गोई ॥

प्रात पुनीत काल प्रभु जागे । अरुनचूड़ बर बोलन लागे ॥ बंदि मागधन्हि गुनगन गाए । पुरजन द्वार जोहारन आए ॥

बंदि बिप्र सुर गुर पितु माता । पाइ असीस मुदित सब भ्राता ॥ जननिन्ह सादर बदन निहारे । भूपति संग द्वार पगु धारे ॥

Doha / दोहा

दो. कीन्ह सौच सब सहज सुचि सरित पुनीत नहाइ । प्रातक्रिया करि तात पहिं आए चारिउ भाइ ॥ ३५८ ॥

Chaupai / चोपाई

भूप बिलोकि लिए उर लाई । बैठै हरषि रजायसु पाई ॥ देखि रामु सब सभा जुड़ानी । लोचन लाभ अवधि अनुमानी ॥

पुनि बसिष्टु मुनि कौसिक आए । सुभग आसनन्हि मुनि बैठाए ॥ सुतन्ह समेत पूजि पद लागे । निरखि रामु दोउ गुर अनुरागे ॥

कहहिं बसिष्टु धरम इतिहासा । सुनहिं महीसु सहित रनिवासा ॥ मुनि मन अगम गाधिसुत करनी । मुदित बसिष्ट बिपुल बिधि बरनी ॥

बोले बामदेउ सब साँची । कीरति कलित लोक तिहुँ माची ॥ सुनि आनंदु भयउ सब काहू । राम लखन उर अधिक उछाहू ॥

Doha / दोहा

दो. मंगल मोद उछाह नित जाहिं दिवस एहि भाँति । उमगी अवध अनंद भरि अधिक अधिक अधिकाति ॥ ३५९ ॥

Chaupai / चोपाई

सुदिन सोधि कल कंकन छौरे । मंगल मोद बिनोद न थोरे ॥ नित नव सुखु सुर देखि सिहाहीं । अवध जन्म जाचहिं बिधि पाहीं ॥

बिस्वामित्रु चलन नित चहहीं । राम सप्रेम बिनय बस रहहीं ॥ दिन दिन सयगुन भूपति भाऊ । देखि सराह महामुनिराऊ ॥

मागत बिदा राउ अनुरागे । सुतन्ह समेत ठाढ़ भे आगे ॥ नाथ सकल संपदा तुम्हारी । मैं सेवकु समेत सुत नारी ॥

करब सदा लरिकनः पर छोहू । दरसन देत रहब मुनि मोहू ॥ अस कहि राउ सहित सुत रानी । परेउ चरन मुख आव न बानी ॥

दीन्ह असीस बिप्र बहु भाँती । चले न प्रीति रीति कहि जाती ॥ रामु सप्रेम संग सब भाई । आयसु पाइ फिरे पहुँचाई ॥

Doha / दोहा

दो. राम रूपु भूपति भगति ब्याहु उछाहु अनंदु । जात सराहत मनहिं मन मुदित गाधिकुलचंदु ॥ ३६० ॥

Chaupai / चोपाई

बामदेव रघुकुल गुर ग्यानी । बहुरि गाधिसुत कथा बखानी ॥ सुनि मुनि सुजसु मनहिं मन राऊ । बरनत आपन पुन्य प्रभाऊ ॥

बहुरे लोग रजायसु भयऊ । सुतन्ह समेत नृपति गृहँ गयऊ ॥ जहँ तहँ राम ब्याहु सबु गावा । सुजसु पुनीत लोक तिहुँ छावा ॥

आए ब्याहि रामु घर जब तें । बसइ अनंद अवध सब तब तें ॥ प्रभु बिबाहँ जस भयउ उछाहू । सकहिं न बरनि गिरा अहिनाहू ॥

कबिकुल जीवनु पावन जानी ॥ राम सीय जसु मंगल खानी ॥ तेहि ते मैं कछु कहा बखानी । करन पुनीत हेतु निज बानी ॥

Chanda / छन्द

छं. निज गिरा पावनि करन कारन राम जसु तुलसी कह्यो । रघुबीर चरित अपार बारिधि पारु कबि कौनें लह्यो ॥ उपबीत ब्याह उछाह मंगल सुनि जे सादर गावहीं । बैदेहि राम प्रसाद ते जन सर्बदा सुखु पावहीं ॥

Sortha/ सोरठा

सो. सिय रघुबीर बिबाहु जे सप्रेम गावहिं सुनहिं । तिन्ह कहुँ सदा उछाहु मंगलायतन राम जसु ॥ ३६१ ॥

Ram Charita Manas Ends / राम चरित मानस सम्पूर्णम्

इति श्रीमद्रामचरितमानसे सकलकलिकलुषबिध्वंसने प्रथमः सोपानः समाप्तः ।

Ram Charita Manas Ends / राम चरित मानस

प्रथमः सोपानः समाप्तः । (बालकाण्ड समाप्त)

(बालकाण्ड समाप्त)

Masaparayana 12 Ends

namo namaḥ!

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