Ram Charita Manas

Sundara-Kanda

Hanuman gets into deprrssion seeing Maa sita in Ashoka vatika. Ravana enters ashoka vatika and threathens Maa sita to accept him.

ॐ श्री परमात्मने नमः


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ॐ श्री गणेशाय नमः

Chaupai / चोपाई

जुगुति बिभीषन सकल सुनाई । चलेउ पवनसुत बिदा कराई ॥ करि सोइ रूप गयउ पुनि तहवाँ । बन असोक सीता रह जहवाँ ॥

Chapter : 5 Number : 9

देखि मनहि महुँ कीन्ह प्रनामा । बैठेहिं बीति जात निसि जामा ॥ कृस तन सीस जटा एक बेनी । जपति हृदयँ रघुपति गुन श्रेनी ॥

Chapter : 5 Number : 9

Doha / दोहा

दो. निज पद नयन दिएँ मन राम पद कमल लीन । परम दुखी भा पवनसुत देखि जानकी दीन ॥ ८ ॥

Chapter : 5 Number : 10

Chaupai / चोपाई

तरु पल्लव महुँ रहा लुकाई । करइ बिचार करौं का भाई ॥ तेहि अवसर रावनु तहँ आवा । संग नारि बहु किएँ बनावा ॥

Chapter : 5 Number : 10

कह रावनु सुनु सुमुखि सयानी । मंदोदरी आदि सब रानी ॥ तव अनुचरीं करउँ पन मोरा । एक बार बिलोकु मम ओरा ॥

Chapter : 5 Number : 10

तृन धरि ओट कहति बैदेही । सुमिरि अवधपति परम सनेही ॥ सुनु दसमुख खद्योत प्रकासा । कबहुँ कि नलिनी करइ बिकासा ॥

Chapter : 5 Number : 10

अस मन समुझु कहति जानकी । खल सुधि नहिं रघुबीर बान की ॥ सठ सूने हरि आनेहि मोहि । अधम निलज्ज लाज नहिं तोही ॥

Chapter : 5 Number : 10

Doha / दोहा

दो. आपुहि सुनि खद्योत सम रामहि भानु समान । परुष बचन सुनि काढ़ि असि बोला अति खिसिआन ॥ ९ ॥

Chapter : 5 Number : 11

Chaupai / चोपाई

सीता तैं मम कृत अपमाना । कटिहउँ तव सिर कठिन कृपाना ॥ नाहिं त सपदि मानु मम बानी । सुमुखि होति न त जीवन हानी ॥

Chapter : 5 Number : 11

स्याम सरोज दाम सम सुंदर । प्रभु भुज करि कर सम दसकंधर ॥ सो भुज कंठ कि तव असि घोरा । सुनु सठ अस प्रवान पन मोरा ॥

Chapter : 5 Number : 11

चंद्रहास हरु मम परितापं । रघुपति बिरह अनल संजातं ॥ सीतल निसित बहसि बर धारा । कह सीता हरु मम दुख भारा ॥

Chapter : 5 Number : 11

सुनत बचन पुनि मारन धावा । मयतनयाँ कहि नीति बुझावा ॥ कहेसि सकल निसिचरिन्ह बोलाई । सीतहि बहु बिधि त्रासहु जाई ॥

Chapter : 5 Number : 11

मास दिवस महुँ कहा न माना । तौ मैं मारबि काढि कृपाना । ।

Chapter : 5 Number : 11

Doha / दोहा

दो. भवन गयउ दसकंधर इहाँ पिसाचिनि बृंद । सीतहि त्रास देखावहि धरहिं रूप बहु मंद ॥ १० ॥

Chapter : 5 Number : 12

Chaupai / चोपाई

त्रिजटा नाम राच्छसी एका । राम चरन रति निपुन बिबेका ॥ सबन्हौ बोलि सुनाएसि सपना । सीतहि सेइ करहु हित अपना ॥

Chapter : 5 Number : 12

सपनें बानर लंका जारी । जातुधान सेना सब मारी ॥ खर आरूढ़ नगन दससीसा । मुंडित सिर खंडित भुज बीसा ॥

Chapter : 5 Number : 12

एहि बिधि सो दच्छिन दिसि जाई । लंका मनहुँ बिभीषन पाई ॥ नगर फिरी रघुबीर दोहाई । तब प्रभु सीता बोलि पठाई ॥

Chapter : 5 Number : 12

यह सपना में कहउँ पुकारी । होइहि सत्य गएँ दिन चारी ॥ तासु बचन सुनि ते सब डरीं । जनकसुता के चरनन्हि परीं ॥

Chapter : 5 Number : 12

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