ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Doha / दोहा
दो. रहा एक दिन अवधि कर अति आरत पुर लोग । जहँ तहँ सोचहिं नारि नर कृस तन राम बियोग ॥
Chaupai / चोपाई
सगुन होहिं सुंदर सकल मन प्रसन्न सब केर । प्रभु आगवन जनाव जनु नगर रम्य चहुँ फेर ॥
कौसल्यादि मातु सब मन अनंद अस होइ। आयउ प्रभु श्री अनुज जुत कहन चहत अब कोइ ॥
भरत नयन भुज दच्छिन फरकत बारहिं बार। जानि सगुन मन हरष अति लागे करन बिचार ॥
रहेउ एक दिन अवधि अधारा। समुझत मन दुख भयउ अपारा ॥ कारन कवन नाथ नहिं आयउ। जानि कुटिल किधौं मोहि बिसरायउ ॥
अहह धन्य लछिमन बड़भागी। राम पदारबिंदु अनुरागी ॥ कपटी कुटिल मोहि प्रभु चीन्हा। ताते नाथ संग नहिं लीन्हा ॥
जौं करनी समुझै प्रभु मोरी। नहिं निस्तार कलप सत कोरी ॥ जन अवगुन प्रभु मान न काऊ। दीन बंधु अति मृदुल सुभाऊ ॥
मोरि जियँ भरोस दृढ़ सोई। मिलिहहिं राम सगुन सुभ होई ॥ बीतें अवधि रहहि जौं प्राना। अधम कवन जग मोहि समाना ॥
Doha / दोहा
दो. राम बिरह सागर महँ भरत मगन मन होत । बिप्र रूप धरि पवन सुत आइ गयउ जनु पोत ॥ १(क) ॥
Chaupai / चोपाई
बैठि देखि कुसासन जटा मुकुट कृस गात। राम राम रघुपति जपत स्त्रवत नयन जलजात ॥ १(ख) ॥
देखत हनूमान अति हरषेउ। पुलक गात लोचन जल बरषेउ ॥ मन महँ बहुत भाँति सुख मानी। बोलेउ श्रवन सुधा सम बानी ॥
जासु बिरहँ सोचहु दिन राती। रटहु निरंतर गुन गन पाँती ॥ रघुकुल तिलक सुजन सुखदाता। आयउ कुसल देव मुनि त्राता ॥
रिपु रन जीति सुजस सुर गावत। सीता सहित अनुज प्रभु आवत ॥ सुनत बचन बिसरे सब दूखा। तृषावंत जिमि पाइ पियूषा ॥
को तुम्ह तात कहाँ ते आए। मोहि परम प्रिय बचन सुनाए ॥ मारुत सुत मैं कपि हनुमाना। नामु मोर सुनु कृपानिधाना ॥
दीनबंधु रघुपति कर किंकर। सुनत भरत भेंटेउ उठि सादर ॥ मिलत प्रेम नहिं हृदयँ समाता। नयन स्त्रवत जल पुलकित गाता ॥
कपि तव दरस सकल दुख बीते। मिले आजु मोहि राम पिरीते ॥ बार बार बूझी कुसलाता। तो कहुँ देउँ काह सुनु भ्राता ॥
एहि संदेस सरिस जग माहीं। करि बिचार देखेउँ कछु नाहीं ॥ नाहिन तात उरिन मैं तोही। अब प्रभु चरित सुनावहु मोही ॥
तब हनुमंत नाइ पद माथा। कहे सकल रघुपति गुन गाथा ॥ कहु कपि कबहुँ कृपाल गोसाईं। सुमिरहिं मोहि दास की नाईं ॥
Chanda / छन्द
छं. निज दास ज्यों रघुबंसभूषन कबहुँ मम सुमिरन कर् यो । सुनि भरत बचन बिनीत अति कपि पुलकित तन चरनन्हि पर् यो ॥
रघुबीर निज मुख जासु गुन गन कहत अग जग नाथ जो । काहे न होइ बिनीत परम पुनीत सदगुन सिंधु सो ॥
Doha / दोहा
दो. राम प्रान प्रिय नाथ तुम्ह सत्य बचन मम तात । पुनि पुनि मिलत भरत सुनि हरष न हृदयँ समात ॥ २(क) ॥
Sortha / सोरठा
सो. भरत चरन सिरु नाइ तुरित गयउ कपि राम पहिं । कही कुसल सब जाइ हरषि चलेउ प्रभु जान चढ़ि ॥ २(ख) ॥
Chaupai / चोपाई
हरषि भरत कोसलपुर आए। समाचार सब गुरहि सुनाए ॥ पुनि मंदिर महँ बात जनाई। आवत नगर कुसल रघुराई ॥
सुनत सकल जननीं उठि धाईं। कहि प्रभु कुसल भरत समुझाई ॥ समाचार पुरबासिंह पाए। नर अरु नारि हरषि सब धाए ॥
दधि दुर्बा रोचन फल फूला। नव तुलसी दल मंगल मूला ॥ भरि भरि हेम थार भामिनी। गावत चलिं सिंधु सिंधुरगामिनी ॥
जे जैसेहिं तैसेहिं उटि धावहिं। बाल बृद्ध कहँ संग न लावहिं ॥ एक एकन्ह कहँ बूझहिं भाई। तुम्ह देखे दयाल रघुराई ॥
अवधपुरी प्रभु आवत जानी। भई सकल सोभा कै खानी ॥ बहइ सुहावन त्रिबिध समीरा। भइ सरजू अति निर्मल नीरा ॥
Doha / दोहा
दो. हरषित गुर परिजन अनुज भूसुर बृंद समेत । चले भरत मन प्रेम अति सन्मुख कृपानिकेत ॥ ३(क) ॥
बहुतक चढ़ी अटारिन्ह निरखहिं गगन बिमान । देखि मधुर सुर हरषित करहिं सुमंगल गान ॥ ३(ख) ॥
राका ससि रघुपति पुर सिंधु देखि हरषान । बढ़यो कोलाहल करत जनु नारि तरंग समान ॥ ३(ग) ॥
Chaupai / चोपाई
इहाँ भानुकुल कमल दिवाकर। कपिन्ह देखावत नगर मनोहर ॥ सुनु कपीस अंगद लंकेसा। पावन पुरी रुचिर यह देसा ॥
जद्यपि सब बैकुंठ बखाना। बेद पुरान बिदित जगु जाना ॥ अवधपुरी सम प्रिय नहिं सोऊ। यह प्रसंग जानइ कोउ कोऊ ॥
जन्मभूमि मम पुरी सुहावनि। उत्तर दिसि बह सरजू पावनि ॥ जा मज्जन ते बिनहिं प्रयासा। मम समीप नर पावहिं बासा ॥
अति प्रिय मोहि इहाँ के बासी। मम धामदा पुरी सुख रासी ॥ हरषे सब कपि सुनि प्रभु बानी। धन्य अवध जो राम बखानी ॥
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