ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Doha / दोहा
दो. करि पूजा मारीच तब सादर पूछी बात। कवन हेतु मन ब्यग्र अति अकसर आयहु तात ॥ २४ ॥
Chaupai / चोपाई
दसमुख सकल कथा तेहि आगें। कही सहित अभिमान अभागें ॥ होहु कपट मृग तुम्ह छलकारी। जेहि बिधि हरि आनौ नृपनारी ॥
तेहिं पुनि कहा सुनहु दससीसा। ते नररुप चराचर ईसा ॥ तासों तात बयरु नहिं कीजे। मारें मरिअ जिआएँ जीजै ॥
मुनि मख राखन गयउ कुमारा। बिनु फर सर रघुपति मोहि मारा ॥ सत जोजन आयउँ छन माहीं। तिन्ह सन बयरु किएँ भल नाहीं ॥
भइ मम कीट भृंग की नाई। जहँ तहँ मैं देखउँ दोउ भाई ॥ जौं नर तात तदपि अति सूरा। तिन्हहि बिरोधि न आइहि पूरा ॥
Doha / दोहा
दो. जेहिं ताड़का सुबाहु हति खंडेउ हर कोदंड ॥ खर दूषन तिसिरा बधेउ मनुज कि अस बरिबंड ॥ २५ ॥
Chaupai / चोपाई
जाहु भवन कुल कुसल बिचारी। सुनत जरा दीन्हिसि बहु गारी ॥ गुरु जिमि मूढ़ करसि मम बोधा। कहु जग मोहि समान को जोधा ॥
तब मारीच हृदयँ अनुमाना। नवहि बिरोधें नहिं कल्याना ॥ सस्त्री मर्मी प्रभु सठ धनी। बैद बंदि कबि भानस गुनी ॥
उभय भाँति देखा निज मरना। तब ताकिसि रघुनायक सरना ॥ उतरु देत मोहि बधब अभागें। कस न मरौं रघुपति सर लागें ॥
अस जियँ जानि दसानन संगा। चला राम पद प्रेम अभंगा ॥ मन अति हरष जनाव न तेही। आजु देखिहउँ परम सनेही ॥
Chanda / छन्द
छं. निज परम प्रीतम देखि लोचन सुफल करि सुख पाइहौं। श्री सहित अनुज समेत कृपानिकेत पद मन लाइहौं ॥
निर्बान दायक क्रोध जा कर भगति अबसहि बसकरी। निज पानि सर संधानि सो मोहि बधिहि सुखसागर हरी ॥
Doha / दोहा
दो. मम पाछें धर धावत धरें सरासन बान। फिरि फिरि प्रभुहि बिलोकिहउँ धन्य न मो सम आन ॥ २६ ॥
Chaupai / चोपाई
तेहि बन निकट दसानन गयऊ। तब मारीच कपटमृग भयऊ ॥ अति बिचित्र कछु बरनि न जाई। कनक देह मनि रचित बनाई ॥
सीता परम रुचिर मृग देखा। अंग अंग सुमनोहर बेषा ॥ सुनहु देव रघुबीर कृपाला। एहि मृग कर अति सुंदर छाला ॥
सत्यसंध प्रभु बधि करि एही। आनहु चर्म कहति बैदेही ॥ तब रघुपति जानत सब कारन। उठे हरषि सुर काजु सँवारन ॥
मृग बिलोकि कटि परिकर बाँधा। करतल चाप रुचिर सर साँधा ॥ प्रभु लछिमनिहि कहा समुझाई। फिरत बिपिन निसिचर बहु भाई ॥
सीता केरि करेहु रखवारी। बुधि बिबेक बल समय बिचारी ॥ प्रभुहि बिलोकि चला मृग भाजी। धाए रामु सरासन साजी ॥
निगम नेति सिव ध्यान न पावा। मायामृग पाछें सो धावा ॥ कबहुँ निकट पुनि दूरि पराई। कबहुँक प्रगटइ कबहुँ छपाई ॥
प्रगटत दुरत करत छल भूरी। एहि बिधि प्रभुहि गयउ लै दूरी ॥ तब तकि राम कठिन सर मारा। धरनि परेउ करि घोर पुकारा ॥
लछिमन कर प्रथमहिं लै नामा। पाछें सुमिरेसि मन महुँ रामा ॥ प्रान तजत प्रगटेसि निज देहा। सुमिरेसि रामु समेत सनेहा ॥
अंतर प्रेम तासु पहिचाना। मुनि दुर्लभ गति दीन्हि सुजाना ॥
Doha / दोहा
दो. बिपुल सुमन सुर बरषहिं गावहिं प्रभु गुन गाथ। निज पद दीन्ह असुर कहुँ दीनबंधु रघुनाथ ॥ २७ ॥
Chaupai / चोपाई
खल बधि तुरत फिरे रघुबीरा। सोह चाप कर कटि तूनीरा ॥ आरत गिरा सुनी जब सीता। कह लछिमन सन परम सभीता ॥
जाहु बेगि संकट अति भ्राता। लछिमन बिहसि कहा सुनु माता ॥ भृकुटि बिलास सृष्टि लय होई। सपनेहुँ संकट परइ कि सोई ॥
मरम बचन जब सीता बोला। हरि प्रेरित लछिमन मन डोला ॥ बन दिसि देव सौंपि सब काहू। चले जहाँ रावन ससि राहू ॥
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