ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Chaupai / चोपाई
सून बीच दसकंधर देखा। आवा निकट जती कें बेषा ॥ जाकें डर सुर असुर डेराहीं। निसि न नीद दिन अन्न न खाहीं ॥
सो दससीस स्वान की नाई। इत उत चितइ चला भड़िहाई ॥ इमि कुपंथ पग देत खगेसा। रह न तेज बुधि बल लेसा ॥
नाना बिधि करि कथा सुहाई। राजनीति भय प्रीति देखाई ॥ कह सीता सुनु जती गोसाईं। बोलेहु बचन दुष्ट की नाईं ॥
तब रावन निज रूप देखावा। भई सभय जब नाम सुनावा ॥ कह सीता धरि धीरजु गाढ़ा। आइ गयउ प्रभु रहु खल ठाढ़ा ॥
जिमि हरिबधुहि छुद्र सस चाहा। भएसि कालबस निसिचर नाहा ॥ सुनत बचन दससीस रिसाना। मन महुँ चरन बंदि सुख माना ॥
Doha / दोहा
दो. क्रोधवंत तब रावन लीन्हिसि रथ बैठाइ। चला गगनपथ आतुर भयँ रथ हाँकि न जाइ ॥ २८ ॥
Chaupai / चोपाई
हा जग एक बीर रघुराया। केहिं अपराध बिसारेहु दाया ॥ आरति हरन सरन सुखदायक। हा रघुकुल सरोज दिननायक ॥
हा लछिमन तुम्हार नहिं दोसा। सो फलु पायउँ कीन्हेउँ रोसा ॥ बिबिध बिलाप करति बैदेही। भूरि कृपा प्रभु दूरि सनेही ॥
बिपति मोरि को प्रभुहि सुनावा। पुरोडास चह रासभ खावा ॥ सीता कै बिलाप सुनि भारी। भए चराचर जीव दुखारी ॥
Sign In