ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Chaupai / चोपाई
बिरहवंत भगवंतहि देखी। नारद मन भा सोच बिसेषी ॥ मोर साप करि अंगीकारा। सहत राम नाना दुख भारा ॥
ऐसे प्रभुहि बिलोकउँ जाई। पुनि न बनिहि अस अवसरु आई ॥ यह बिचारि नारद कर बीना। गए जहाँ प्रभु सुख आसीना ॥
गावत राम चरित मृदु बानी। प्रेम सहित बहु भाँति बखानी ॥ करत दंडवत लिए उठाई। राखे बहुत बार उर लाई ॥
स्वागत पूँछि निकट बैठारे। लछिमन सादर चरन पखारे ॥
Doha / दोहा
दो. नाना बिधि बिनती करि प्रभु प्रसन्न जियँ जानि। नारद बोले बचन तब जोरि सरोरुह पानि ॥ ४१ ॥
Chaupai / चोपाई
सुनहु उदार सहज रघुनायक। सुंदर अगम सुगम बर दायक ॥ देहु एक बर मागउँ स्वामी। जद्यपि जानत अंतरजामी ॥
जानहु मुनि तुम्ह मोर सुभाऊ। जन सन कबहुँ कि करउँ दुराऊ ॥ कवन बस्तु असि प्रिय मोहि लागी। जो मुनिबर न सकहु तुम्ह मागी ॥
जन कहुँ कछु अदेय नहिं मोरें। अस बिस्वास तजहु जनि भोरें ॥ तब नारद बोले हरषाई । अस बर मागउँ करउँ ढिठाई ॥
जद्यपि प्रभु के नाम अनेका। श्रुति कह अधिक एक तें एका ॥ राम सकल नामन्ह ते अधिका। होउ नाथ अघ खग गन बधिका ॥
Doha / दोहा
दो. राका रजनी भगति तव राम नाम सोइ सोम। अपर नाम उडगन बिमल बसुहुँ भगत उर ब्योम ॥ ४२(क) ॥
एवमस्तु मुनि सन कहेउ कृपासिंधु रघुनाथ। तब नारद मन हरष अति प्रभु पद नायउ माथ ॥ ४२(ख) ॥
Chaupai / चोपाई
अति प्रसन्न रघुनाथहि जानी। पुनि नारद बोले मृदु बानी ॥ राम जबहिं प्रेरेउ निज माया। मोहेहु मोहि सुनहु रघुराया ॥
तब बिबाह मैं चाहउँ कीन्हा। प्रभु केहि कारन करै न दीन्हा ॥ सुनु मुनि तोहि कहउँ सहरोसा। भजहिं जे मोहि तजि सकल भरोसा ॥
करउँ सदा तिन्ह कै रखवारी। जिमि बालक राखइ महतारी ॥ गह सिसु बच्छ अनल अहि धाई। तहँ राखइ जननी अरगाई ॥
प्रौढ़ भएँ तेहि सुत पर माता। प्रीति करइ नहिं पाछिलि बाता ॥ मोरे प्रौढ़ तनय सम ग्यानी। बालक सुत सम दास अमानी ॥
जनहि मोर बल निज बल ताही। दुहु कहँ काम क्रोध रिपु आही ॥ यह बिचारि पंडित मोहि भजहीं। पाएहुँ ग्यान भगति नहिं तजहीं ॥
दो. काम क्रोध लोभादि मद प्रबल मोह कै धारि। तिन्ह महँ अति दारुन दुखद मायारूपी नारि ॥ ४३ ॥
सुनि मुनि कह पुरान श्रुति संता। मोह बिपिन कहुँ नारि बसंता ॥ जप तप नेम जलाश्रय झारी। होइ ग्रीषम सोषइ सब नारी ॥
काम क्रोध मद मत्सर भेका। इन्हहि हरषप्रद बरषा एका ॥ दुर्बासना कुमुद समुदाई। तिन्ह कहँ सरद सदा सुखदाई ॥
धर्म सकल सरसीरुह बृंदा। होइ हिम तिन्हहि दहइ सुख मंदा ॥ पुनि ममता जवास बहुताई। पलुहइ नारि सिसिर रितु पाई ॥
पाप उलूक निकर सुखकारी। नारि निबिड़ रजनी अँधिआरी ॥ बुधि बल सील सत्य सब मीना। बनसी सम त्रिय कहहिं प्रबीना ॥
Doha / दोहा
दो. अवगुन मूल सूलप्रद प्रमदा सब दुख खानि। ताते कीन्ह निवारन मुनि मैं यह जियँ जानि ॥ ४४ ॥
Chaupai / चोपाई
सुनि रघुपति के बचन सुहाए। मुनि तन पुलक नयन भरि आए ॥ कहहु कवन प्रभु कै असि रीती। सेवक पर ममता अरु प्रीती ॥
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