ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Chaupai / चोपाई
जे न भजहिं अस प्रभु भ्रम त्यागी। ग्यान रंक नर मंद अभागी ॥ पुनि सादर बोले मुनि नारद। सुनहु राम बिग्यान बिसारद ॥
संतन्ह के लच्छन रघुबीरा। कहहु नाथ भव भंजन भीरा ॥ सुनु मुनि संतन्ह के गुन कहऊँ। जिन्ह ते मैं उन्ह कें बस रहऊँ ॥
षट बिकार जित अनघ अकामा। अचल अकिंचन सुचि सुखधामा ॥ अमितबोध अनीह मितभोगी। सत्यसार कबि कोबिद जोगी ॥
सावधान मानद मदहीना। धीर धर्म गति परम प्रबीना ॥
Doha / दोहा
दो. गुनागार संसार दुख रहित बिगत संदेह ॥ तजि मम चरन सरोज प्रिय तिन्ह कहुँ देह न गेह ॥ ४५ ॥
Chaupai / चोपाई
निज गुन श्रवन सुनत सकुचाहीं। पर गुन सुनत अधिक हरषाहीं ॥ सम सीतल नहिं त्यागहिं नीती। सरल सुभाउ सबहिं सन प्रीती ॥
जप तप ब्रत दम संजम नेमा। गुरु गोबिंद बिप्र पद प्रेमा ॥ श्रद्धा छमा मयत्री दाया। मुदिता मम पद प्रीति अमाया ॥
बिरति बिबेक बिनय बिग्याना। बोध जथारथ बेद पुराना ॥ दंभ मान मद करहिं न काऊ। भूलि न देहिं कुमारग पाऊ ॥
गावहिं सुनहिं सदा मम लीला। हेतु रहित परहित रत सीला ॥ मुनि सुनु साधुन्ह के गुन जेते। कहि न सकहिं सारद श्रुति तेते ॥
Chanda / छन्द
छं. कहि सक न सारद सेष नारद सुनत पद पंकज गहे। अस दीनबंधु कृपाल अपने भगत गुन निज मुख कहे ॥
सिरु नाह बारहिं बार चरनन्हि ब्रह्मपुर नारद गए ॥ ते धन्य तुलसीदास आस बिहाइ जे हरि रँग रँए ॥
Doha / दोहा
दो. रावनारि जसु पावन गावहिं सुनहिं जे लोग। राम भगति दृढ़ पावहिं बिनु बिराग जप जोग ॥ ४६(क) ॥
दीप सिखा सम जुबति तन मन जनि होसि पतंग। भजहि राम तजि काम मद करहि सदा सतसंग ॥ ४६(ख) ॥
Aranyaka Kanda Ends / अरण्य काण्ड समपूर्णम
इति श्रीमद्रामचरितमानसे सकलकलिकलुषविध्वंसने तृतीयः सोपानः समाप्तः।
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