ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Chaupai / चोपाई
एक बार चुनि कुसुम सुहाए। निज कर भूषन राम बनाए ॥ सीतहि पहिराए प्रभु सादर। बैठे फटिक सिला पर सुंदर ॥
सुरपति सुत धरि बायस बेषा। सठ चाहत रघुपति बल देखा ॥ जिमि पिपीलिका सागर थाहा। महा मंदमति पावन चाहा ॥
सीता चरन चौंच हति भागा। मूढ़ मंदमति कारन कागा ॥ चला रुधिर रघुनायक जाना। सींक धनुष सायक संधाना ॥
Doha / दोहा
दो. अति कृपाल रघुनायक सदा दीन पर नेह। ता सन आइ कीन्ह छलु मूरख अवगुन गेह ॥ १ ॥
Chaupai / चोपाई
प्रेरित मंत्र ब्रह्मसर धावा। चला भाजि बायस भय पावा ॥ धरि निज रुप गयउ पितु पाहीं। राम बिमुख राखा तेहि नाहीं ॥
भा निरास उपजी मन त्रासा। जथा चक्र भय रिषि दुर्बासा ॥ ब्रह्मधाम सिवपुर सब लोका। फिरा श्रमित ब्याकुल भय सोका ॥
काहूँ बैठन कहा न ओही। राखि को सकइ राम कर द्रोही ॥ मातु मृत्यु पितु समन समाना। सुधा होइ बिष सुनु हरिजाना ॥
मित्र करइ सत रिपु कै करनी। ता कहँ बिबुधनदी बैतरनी ॥ सब जगु ताहि अनलहु ते ताता। जो रघुबीर बिमुख सुनु भ्राता ॥
नारद देखा बिकल जयंता। लागि दया कोमल चित संता ॥ पठवा तुरत राम पहिं ताही। कहेसि पुकारि प्रनत हित पाही ॥
आतुर सभय गहेसि पद जाई। त्राहि त्राहि दयाल रघुराई ॥ अतुलित बल अतुलित प्रभुताई। मैं मतिमंद जानि नहिं पाई ॥
निज कृत कर्म जनित फल पायउँ। अब प्रभु पाहि सरन तकि आयउँ ॥ सुनि कृपाल अति आरत बानी। एकनयन करि तजा भवानी ॥
Sortha / सोरठा
सो. कीन्ह मोह बस द्रोह जद्यपि तेहि कर बध उचित। प्रभु छाड़ेउ करि छोह को कृपाल रघुबीर सम ॥ २ ॥
Chaupai / चोपाई
रघुपति चित्रकूट बसि नाना। चरित किए श्रुति सुधा समाना ॥ बहुरि राम अस मन अनुमाना। होइहि भीर सबहिं मोहि जाना ॥
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