ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Chaupai / चोपाई
सकल मुनिन्ह सन बिदा कराई। सीता सहित चले द्वौ भाई ॥ अत्रि के आश्रम जब प्रभु गयऊ। सुनत महामुनि हरषित भयऊ ॥
पुलकित गात अत्रि उठि धाए। देखि रामु आतुर चलि आए ॥ करत दंडवत मुनि उर लाए। प्रेम बारि द्वौ जन अन्हवाए ॥
देखि राम छबि नयन जुड़ाने। सादर निज आश्रम तब आने ॥ करि पूजा कहि बचन सुहाए। दिए मूल फल प्रभु मन भाए ॥
Sortha / सोरठा
सो. प्रभु आसन आसीन भरि लोचन सोभा निरखि। मुनिबर परम प्रबीन जोरि पानि अस्तुति करत ॥ ३ ॥
Chanda / छन्द
छं. नमामि भक्त वत्सलं। कृपालु शील कोमलं ॥ भजामि ते पदांबुजं। अकामिनां स्वधामदं ॥
निकाम श्याम सुंदरं। भवाम्बुनाथ मंदरं ॥ प्रफुल्ल कंज लोचनं। मदादि दोष मोचनं ॥
प्रलंब बाहु विक्रमं। प्रभोऽप्रमेय वैभवं ॥ निषंग चाप सायकं। धरं त्रिलोक नायकं ॥
दिनेश वंश मंडनं। महेश चाप खंडनं ॥ मुनींद्र संत रंजनं। सुरारि वृंद भंजनं ॥
मनोज वैरि वंदितं। अजादि देव सेवितं ॥ विशुद्ध बोध विग्रहं। समस्त दूषणापहं ॥
नमामि इंदिरा पतिं। सुखाकरं सतां गतिं ॥ भजे सशक्ति सानुजं। शची पतिं प्रियानुजं ॥
त्वदंघ्रि मूल ये नराः। भजंति हीन मत्सरा ॥ पतंति नो भवार्णवे। वितर्क वीचि संकुले ॥
विविक्त वासिनः सदा। भजंति मुक्तये मुदा ॥ निरस्य इंद्रियादिकं। प्रयांति ते गतिं स्वकं ॥
तमेकमभ्दुतं प्रभुं। निरीहमीश्वरं विभुं ॥ जगद्गुरुं च शाश्वतं। तुरीयमेव केवलं ॥
भजामि भाव वल्लभं। कुयोगिनां सुदुर्लभं ॥ स्वभक्त कल्प पादपं। समं सुसेव्यमन्वहं ॥
अनूप रूप भूपतिं। नतोऽहमुर्विजा पतिं ॥ प्रसीद मे नमामि ते। पदाब्ज भक्ति देहि मे ॥
पठंति ये स्तवं इदं। नरादरेण ते पदं ॥ व्रजंति नात्र संशयं। त्वदीय भक्ति संयुता ॥
Doha / दोहा
दो. बिनती करि मुनि नाइ सिरु कह कर जोरि बहोरि। चरन सरोरुह नाथ जनि कबहुँ तजै मति मोरि ॥ ४ ॥
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