ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Chaupai / चोपाई
अनुसुइया के पद गहि सीता। मिली बहोरि सुसील बिनीता ॥ रिषिपतिनी मन सुख अधिकाई। आसिष देइ निकट बैठाई ॥
दिब्य बसन भूषन पहिराए। जे नित नूतन अमल सुहाए ॥ कह रिषिबधू सरस मृदु बानी। नारिधर्म कछु ब्याज बखानी ॥
मातु पिता भ्राता हितकारी। मितप्रद सब सुनु राजकुमारी ॥ अमित दानि भर्ता बयदेही। अधम सो नारि जो सेव न तेही ॥
धीरज धर्म मित्र अरु नारी। आपद काल परिखिअहिं चारी ॥ बृद्ध रोगबस जड़ धनहीना। अधं बधिर क्रोधी अति दीना ॥
ऐसेहु पति कर किएँ अपमाना। नारि पाव जमपुर दुख नाना ॥ एकइ धर्म एक ब्रत नेमा। कायँ बचन मन पति पद प्रेमा ॥
जग पति ब्रता चारि बिधि अहहिं। बेद पुरान संत सब कहहिं ॥ उत्तम के अस बस मन माहीं। सपनेहुँ आन पुरुष जग नाहीं ॥
मध्यम परपति देखइ कैसें। भ्राता पिता पुत्र निज जैंसें ॥ धर्म बिचारि समुझि कुल रहई। सो निकिष्ट त्रिय श्रुति अस कहई ॥
बिनु अवसर भय तें रह जोई। जानेहु अधम नारि जग सोई ॥ पति बंचक परपति रति करई। रौरव नरक कल्प सत परई ॥
छन सुख लागि जनम सत कोटि। दुख न समुझ तेहि सम को खोटी ॥ बिनु श्रम नारि परम गति लहई। पतिब्रत धर्म छाड़ि छल गहई ॥
पति प्रतिकुल जनम जहँ जाई। बिधवा होई पाई तरुनाई ॥
Sortha / सोरठा
सो. सहज अपावनि नारि पति सेवत सुभ गति लहइ। जसु गावत श्रुति चारि अजहु तुलसिका हरिहि प्रिय ॥ ५क ॥
सनु सीता तव नाम सुमिर नारि पतिब्रत करहि। तोहि प्रानप्रिय राम कहिउँ कथा संसार हित ॥ ५ख ॥
Chaupai / चोपाई
सुनि जानकीं परम सुखु पावा। सादर तासु चरन सिरु नावा ॥ तब मुनि सन कह कृपानिधाना। आयसु होइ जाउँ बन आना ॥
संतत मो पर कृपा करेहू। सेवक जानि तजेहु जनि नेहू ॥ धर्म धुरंधर प्रभु कै बानी। सुनि सप्रेम बोले मुनि ग्यानी ॥
जासु कृपा अज सिव सनकादी। चहत सकल परमारथ बादी ॥ ते तुम्ह राम अकाम पिआरे। दीन बंधु मृदु बचन उचारे ॥
अब जानी मैं श्री चतुराई। भजी तुम्हहि सब देव बिहाई ॥ जेहि समान अतिसय नहिं कोई। ता कर सील कस न अस होई ॥
केहि बिधि कहौं जाहु अब स्वामी। कहहु नाथ तुम्ह अंतरजामी ॥ अस कहि प्रभु बिलोकि मुनि धीरा। लोचन जल बह पुलक सरीरा ॥
Chanda / छन्द
छं. तन पुलक निर्भर प्रेम पुरन नयन मुख पंकज दिए। मन ग्यान गुन गोतीत प्रभु मैं दीख जप तप का किए ॥
जप जोग धर्म समूह तें नर भगति अनुपम पावई। रधुबीर चरित पुनीत निसि दिन दास तुलसी गावई ॥
Doha / दोहा
दो. कलिमल समन दमन मन राम सुजस सुखमूल। सादर सुनहि जे तिन्ह पर राम रहहिं अनुकूल ॥ ६(क) ॥
Sortha / सोरठा
सो. कठिन काल मल कोस धर्म न ग्यान न जोग जप। परिहरि सकल भरोस रामहि भजहिं ते चतुर नर ॥ ६(ख) ॥
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