ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Chaupai / चोपाई
मुनि पद कमल नाइ करि सीसा। चले बनहि सुर नर मुनि ईसा ॥ आगे राम अनुज पुनि पाछें। मुनि बर बेष बने अति काछें ॥
उमय बीच श्री सोहइ कैसी। ब्रह्म जीव बिच माया जैसी ॥ सरिता बन गिरि अवघट घाटा। पति पहिचानी देहिं बर बाटा ॥
जहँ जहँ जाहि देव रघुराया। करहिं मेध तहँ तहँ नभ छाया ॥ मिला असुर बिराध मग जाता। आवतहीं रघुवीर निपाता ॥
तुरतहिं रुचिर रूप तेहिं पावा। देखि दुखी निज धाम पठावा ॥ पुनि आए जहँ मुनि सरभंगा। सुंदर अनुज जानकी संगा ॥
Doha / दोहा
दो. देखी राम मुख पंकज मुनिबर लोचन भृंग। सादर पान करत अति धन्य जन्म सरभंग ॥ ७ ॥
Chaupai / चोपाई
कह मुनि सुनु रघुबीर कृपाला। संकर मानस राजमराला ॥ जात रहेउँ बिरंचि के धामा। सुनेउँ श्रवन बन ऐहहिं रामा ॥
चितवत पंथ रहेउँ दिन राती। अब प्रभु देखि जुड़ानी छाती ॥ नाथ सकल साधन मैं हीना। कीन्ही कृपा जानि जन दीना ॥
सो कछु देव न मोहि निहोरा। निज पन राखेउ जन मन चोरा ॥ तब लगि रहहु दीन हित लागी। जब लगि मिलौं तुम्हहि तनु त्यागी ॥
जोग जग्य जप तप ब्रत कीन्हा। प्रभु कहँ देइ भगति बर लीन्हा ॥ एहि बिधि सर रचि मुनि सरभंगा। बैठे हृदयँ छाड़ि सब संगा ॥
Doha / दोहा
दो. सीता अनुज समेत प्रभु नील जलद तनु स्याम। मम हियँ बसहु निरंतर सगुनरुप श्रीराम ॥ ८ ॥
Chaupai / चोपाई
अस कहि जोग अगिनि तनु जारा। राम कृपाँ बैकुंठ सिधारा ॥ ताते मुनि हरि लीन न भयऊ। प्रथमहिं भेद भगति बर लयऊ ॥
रिषि निकाय मुनिबर गति देखि। सुखी भए निज हृदयँ बिसेषी ॥ अस्तुति करहिं सकल मुनि बृंदा। जयति प्रनत हित करुना कंदा ॥
पुनि रघुनाथ चले बन आगे। मुनिबर बृंद बिपुल सँग लागे ॥ अस्थि समूह देखि रघुराया। पूछी मुनिन्ह लागि अति दाया ॥
जानतहुँ पूछिअ कस स्वामी। सबदरसी तुम्ह अंतरजामी ॥ निसिचर निकर सकल मुनि खाए। सुनि रघुबीर नयन जल छाए ॥
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