ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Chaupai / चोपाई
है प्रभु परम मनोहर ठाऊँ। पावन पंचबटी तेहि नाऊँ ॥ दंडक बन पुनीत प्रभु करहू। उग्र साप मुनिबर कर हरहू ॥
बास करहु तहँ रघुकुल राया। कीजे सकल मुनिन्ह पर दाया ॥ चले राम मुनि आयसु पाई। तुरतहिं पंचबटी निअराई ॥
Doha / दोहा
दो. गीधराज सैं भैंट भइ बहु बिधि प्रीति बढ़ाइ ॥ गोदावरी निकट प्रभु रहे परन गृह छाइ ॥ १३ ॥
Chaupai / चोपाई
जब ते राम कीन्ह तहँ बासा। सुखी भए मुनि बीती त्रासा ॥ गिरि बन नदीं ताल छबि छाए। दिन दिन प्रति अति हौहिं सुहाए ॥
खग मृग बृंद अनंदित रहहीं। मधुप मधुर गंजत छबि लहहीं ॥ सो बन बरनि न सक अहिराजा। जहाँ प्रगट रघुबीर बिराजा ॥
एक बार प्रभु सुख आसीना। लछिमन बचन कहे छलहीना ॥ सुर नर मुनि सचराचर साईं। मैं पूछउँ निज प्रभु की नाई ॥
मोहि समुझाइ कहहु सोइ देवा। सब तजि करौं चरन रज सेवा ॥ कहहु ग्यान बिराग अरु माया। कहहु सो भगति करहु जेहिं दाया ॥
दो. ईस्वर जीव भेद प्रभु सकल कहौ समुझाइ ॥ जातें होइ चरन रति सोक मोह भ्रम जाइ ॥ १४ ॥
थोरेहि महँ सब कहउँ बुझाई। सुनहु तात मति मन चित लाई ॥ मैं अरु मोर तोर तैं माया। जेहिं बस कीन्हे जीव निकाया ॥
गो गोचर जहँ लगि मन जाई। सो सब माया जानेहु भाई ॥ तेहि कर भेद सुनहु तुम्ह सोऊ। बिद्या अपर अबिद्या दोऊ ॥
एक दुष्ट अतिसय दुखरूपा। जा बस जीव परा भवकूपा ॥ एक रचइ जग गुन बस जाकें। प्रभु प्रेरित नहिं निज बल ताकें ॥
ग्यान मान जहँ एकउ नाहीं। देख ब्रह्म समान सब माही ॥ कहिअ तात सो परम बिरागी। तृन सम सिद्धि तीनि गुन त्यागी ॥
Doha / दोहा
दो. माया ईस न आपु कहुँ जान कहिअ सो जीव। बंध मोच्छ प्रद सर्बपर माया प्रेरक सीव ॥ १५ ॥
Chaupai / चोपाई
धर्म तें बिरति जोग तें ग्याना। ग्यान मोच्छप्रद बेद बखाना ॥ जातें बेगि द्रवउँ मैं भाई। सो मम भगति भगत सुखदाई ॥
सो सुतंत्र अवलंब न आना। तेहि आधीन ग्यान बिग्याना ॥ भगति तात अनुपम सुखमूला। मिलइ जो संत होइँ अनुकूला ॥
भगति कि साधन कहउँ बखानी। सुगम पंथ मोहि पावहिं प्रानी ॥ प्रथमहिं बिप्र चरन अति प्रीती। निज निज कर्म निरत श्रुति रीती ॥
एहि कर फल पुनि बिषय बिरागा। तब मम धर्म उपज अनुरागा ॥ श्रवनादिक नव भक्ति दृढ़ाहीं। मम लीला रति अति मन माहीं ॥
संत चरन पंकज अति प्रेमा। मन क्रम बचन भजन दृढ़ नेमा ॥ गुरु पितु मातु बंधु पति देवा। सब मोहि कहँ जाने दृढ़ सेवा ॥
मम गुन गावत पुलक सरीरा। गदगद गिरा नयन बह नीरा ॥ काम आदि मद दंभ न जाकें। तात निरंतर बस मैं ताकें ॥
Doha / दोहा
दो. बचन कर्म मन मोरि गति भजनु करहिं निःकाम ॥ तिन्ह के हृदय कमल महुँ करउँ सदा बिश्राम ॥ १६ ॥
Chaupai / चोपाई
भगति जोग सुनि अति सुख पावा। लछिमन प्रभु चरनन्हि सिरु नावा ॥ एहि बिधि गए कछुक दिन बीती। कहत बिराग ग्यान गुन नीती ॥
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