ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Chaupai / चोपाई
धुआँ देखि खरदूषन केरा। जाइ सुपनखाँ रावन प्रेरा ॥ बोलि बचन क्रोध करि भारी। देस कोस कै सुरति बिसारी ॥
करसि पान सोवसि दिनु राती। सुधि नहिं तव सिर पर आराती ॥ राज नीति बिनु धन बिनु धर्मा। हरिहि समर्पे बिनु सतकर्मा ॥
बिद्या बिनु बिबेक उपजाएँ। श्रम फल पढ़े किएँ अरु पाएँ ॥ संग ते जती कुमंत्र ते राजा। मान ते ग्यान पान तें लाजा ॥
प्रीति प्रनय बिनु मद ते गुनी। नासहि बेगि नीति अस सुनी ॥
Sortha / सोरठा
सो. रिपु रुज पावक पाप प्रभु अहि गनिअ न छोट करि। अस कहि बिबिध बिलाप करि लागी रोदन करन ॥ २१(क) ॥
Doha / दोहा
दो. सभा माझ परि ब्याकुल बहु प्रकार कह रोइ। तोहि जिअत दसकंधर मोरि कि असि गति होइ ॥ २१(ख) ॥
Chaupai / चोपाई
सुनत सभासद उठे अकुलाई। समुझाई गहि बाहँ उठाई ॥ कह लंकेस कहसि निज बाता। केँइँ तव नासा कान निपाता ॥
अवध नृपति दसरथ के जाए। पुरुष सिंघ बन खेलन आए ॥ समुझि परी मोहि उन्ह कै करनी। रहित निसाचर करिहहिं धरनी ॥
जिन्ह कर भुजबल पाइ दसानन। अभय भए बिचरत मुनि कानन ॥ देखत बालक काल समाना। परम धीर धन्वी गुन नाना ॥
अतुलित बल प्रताप द्वौ भ्राता। खल बध रत सुर मुनि सुखदाता ॥ सोभाधाम राम अस नामा। तिन्ह के संग नारि एक स्यामा ॥
रुप रासि बिधि नारि सँवारी। रति सत कोटि तासु बलिहारी ॥ तासु अनुज काटे श्रुति नासा। सुनि तव भगिनि करहिं परिहासा ॥
खर दूषन सुनि लगे पुकारा। छन महुँ सकल कटक उन्ह मारा ॥ खर दूषन तिसिरा कर घाता। सुनि दससीस जरे सब गाता ॥
Doha / दोहा
दो. सुपनखहि समुझाइ करि बल बोलेसि बहु भाँति। गयउ भवन अति सोचबस नीद परइ नहिं राति ॥ २२ ॥
Chaupai / चोपाई
सुर नर असुर नाग खग माहीं। मोरे अनुचर कहँ कोउ नाहीं ॥ खर दूषन मोहि सम बलवंता। तिन्हहि को मारइ बिनु भगवंता ॥
सुर रंजन भंजन महि भारा। जौं भगवंत लीन्ह अवतारा ॥ तौ मै जाइ बैरु हठि करऊँ। प्रभु सर प्रान तजें भव तरऊँ ॥
होइहि भजनु न तामस देहा। मन क्रम बचन मंत्र दृढ़ एहा ॥ जौं नररुप भूपसुत कोऊ। हरिहउँ नारि जीति रन दोऊ ॥
चला अकेल जान चढि तहवाँ। बस मारीच सिंधु तट जहवाँ ॥ इहाँ राम जसि जुगुति बनाई। सुनहु उमा सो कथा सुहाई ॥
Doha / दोहा
दो. लछिमन गए बनहिं जब लेन मूल फल कंद। जनकसुता सन बोले बिहसि कृपा सुख बृंद ॥ २३ ॥
Chaupai / चोपाई
सुनहु प्रिया ब्रत रुचिर सुसीला। मैं कछु करबि ललित नरलीला ॥ तुम्ह पावक महुँ करहु निवासा। जौ लगि करौं निसाचर नासा ॥
जबहिं राम सब कहा बखानी। प्रभु पद धरि हियँ अनल समानी ॥ निज प्रतिबिंब राखि तहँ सीता। तैसइ सील रुप सुबिनीता ॥
लछिमनहूँ यह मरमु न जाना। जो कछु चरित रचा भगवाना ॥ दसमुख गयउ जहाँ मारीचा। नाइ माथ स्वारथ रत नीचा ॥
नवनि नीच कै अति दुखदाई। जिमि अंकुस धनु उरग बिलाई ॥ भयदायक खल कै प्रिय बानी। जिमि अकाल के कुसुम भवानी ॥
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