ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Chaupai / चोपाई
समाचार जब लछिमन पाए। ब्याकुल बिलख बदन उठि धाए ॥ कंप पुलक तन नयन सनीरा। गहे चरन अति प्रेम अधीरा ॥
कहि न सकत कछु चितवत ठाढ़े। मीनु दीन जनु जल तें काढ़े ॥ सोचु हृदयँ बिधि का होनिहारा। सबु सुखु सुकृत सिरान हमारा ॥
मो कहुँ काह कहब रघुनाथा। रखिहहिं भवन कि लेहहिं साथा ॥ राम बिलोकि बंधु कर जोरें। देह गेह सब सन तृनु तोरें ॥
बोले बचनु राम नय नागर। सील सनेह सरल सुख सागर ॥ तात प्रेम बस जनि कदराहू। समुझि हृदयँ परिनाम उछाहू ॥
Doha / दोहा
दो. मातु पिता गुरु स्वामि सिख सिर धरि करहि सुभायँ। लहेउ लाभु तिन्ह जनम कर नतरु जनमु जग जायँ ॥ ७० ॥
Chaupai / चोपाई
अस जियँ जानि सुनहु सिख भाई। करहु मातु पितु पद सेवकाई ॥ भवन भरतु रिपुसूदन नाहीं। राउ बृद्ध मम दुखु मन माहीं ॥
मैं बन जाउँ तुम्हहि लेइ साथा। होइ सबहि बिधि अवध अनाथा ॥ गुरु पितु मातु प्रजा परिवारू। सब कहुँ परइ दुसह दुख भारू ॥
रहहु करहु सब कर परितोषू। नतरु तात होइहि बड़ दोषू ॥ जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी। सो नृपु अवसि नरक अधिकारी ॥
रहहु तात असि नीति बिचारी। सुनत लखनु भए ब्याकुल भारी ॥ सिअरें बचन सूखि गए कैंसें। परसत तुहिन तामरसु जैसें ॥
Doha / दोहा
दो. उतरु न आवत प्रेम बस गहे चरन अकुलाइ। नाथ दासु मैं स्वामि तुम्ह तजहु त काह बसाइ ॥ ७१ ॥
Chaupai / चोपाई
दीन्हि मोहि सिख नीकि गोसाईं। लागि अगम अपनी कदराईं ॥ नरबर धीर धरम धुर धारी। निगम नीति कहुँ ते अधिकारी ॥
मैं सिसु प्रभु सनेहँ प्रतिपाला। मंदरु मेरु कि लेहिं मराला ॥ गुर पितु मातु न जानउँ काहू। कहउँ सुभाउ नाथ पतिआहू ॥
जहँ लगि जगत सनेह सगाई। प्रीति प्रतीति निगम निजु गाई ॥ मोरें सबइ एक तुम्ह स्वामी। दीनबंधु उर अंतरजामी ॥
धरम नीति उपदेसिअ ताही। कीरति भूति सुगति प्रिय जाही ॥ मन क्रम बचन चरन रत होई। कृपासिंधु परिहरिअ कि सोई ॥
Doha / दोहा
दो. करुनासिंधु सुबंध के सुनि मृदु बचन बिनीत। समुझाए उर लाइ प्रभु जानि सनेहँ सभीत ॥ ७२ ॥
Chaupai / चोपाई
मागहु बिदा मातु सन जाई। आवहु बेगि चलहु बन भाई ॥ मुदित भए सुनि रघुबर बानी। भयउ लाभ बड़ गइ बड़ि हानी ॥
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