Ram Charita Manas

Ayodhya-Kanda

Conversation between Shri Rama and Laxman.

ॐ श्री परमात्मने नमः


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ॐ श्री गणेशाय नमः

Chaupai / चोपाई

समाचार जब लछिमन पाए। ब्याकुल बिलख बदन उठि धाए ॥ कंप पुलक तन नयन सनीरा। गहे चरन अति प्रेम अधीरा ॥

Chapter : 11 Number : 73

कहि न सकत कछु चितवत ठाढ़े। मीनु दीन जनु जल तें काढ़े ॥ सोचु हृदयँ बिधि का होनिहारा। सबु सुखु सुकृत सिरान हमारा ॥

Chapter : 11 Number : 73

मो कहुँ काह कहब रघुनाथा। रखिहहिं भवन कि लेहहिं साथा ॥ राम बिलोकि बंधु कर जोरें। देह गेह सब सन तृनु तोरें ॥

Chapter : 11 Number : 73

बोले बचनु राम नय नागर। सील सनेह सरल सुख सागर ॥ तात प्रेम बस जनि कदराहू। समुझि हृदयँ परिनाम उछाहू ॥

Chapter : 11 Number : 73

Doha / दोहा

दो. मातु पिता गुरु स्वामि सिख सिर धरि करहि सुभायँ। लहेउ लाभु तिन्ह जनम कर नतरु जनमु जग जायँ ॥ ७० ॥

Chapter : 11 Number : 74

Chaupai / चोपाई

अस जियँ जानि सुनहु सिख भाई। करहु मातु पितु पद सेवकाई ॥ भवन भरतु रिपुसूदन नाहीं। राउ बृद्ध मम दुखु मन माहीं ॥

Chapter : 11 Number : 74

मैं बन जाउँ तुम्हहि लेइ साथा। होइ सबहि बिधि अवध अनाथा ॥ गुरु पितु मातु प्रजा परिवारू। सब कहुँ परइ दुसह दुख भारू ॥

Chapter : 11 Number : 74

रहहु करहु सब कर परितोषू। नतरु तात होइहि बड़ दोषू ॥ जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी। सो नृपु अवसि नरक अधिकारी ॥

Chapter : 11 Number : 74

रहहु तात असि नीति बिचारी। सुनत लखनु भए ब्याकुल भारी ॥ सिअरें बचन सूखि गए कैंसें। परसत तुहिन तामरसु जैसें ॥

Chapter : 11 Number : 74

Doha / दोहा

दो. उतरु न आवत प्रेम बस गहे चरन अकुलाइ। नाथ दासु मैं स्वामि तुम्ह तजहु त काह बसाइ ॥ ७१ ॥

Chapter : 11 Number : 75

Chaupai / चोपाई

दीन्हि मोहि सिख नीकि गोसाईं। लागि अगम अपनी कदराईं ॥ नरबर धीर धरम धुर धारी। निगम नीति कहुँ ते अधिकारी ॥

Chapter : 11 Number : 75

मैं सिसु प्रभु सनेहँ प्रतिपाला। मंदरु मेरु कि लेहिं मराला ॥ गुर पितु मातु न जानउँ काहू। कहउँ सुभाउ नाथ पतिआहू ॥

Chapter : 11 Number : 75

जहँ लगि जगत सनेह सगाई। प्रीति प्रतीति निगम निजु गाई ॥ मोरें सबइ एक तुम्ह स्वामी। दीनबंधु उर अंतरजामी ॥

Chapter : 11 Number : 75

धरम नीति उपदेसिअ ताही। कीरति भूति सुगति प्रिय जाही ॥ मन क्रम बचन चरन रत होई। कृपासिंधु परिहरिअ कि सोई ॥

Chapter : 11 Number : 75

Doha / दोहा

दो. करुनासिंधु सुबंध के सुनि मृदु बचन बिनीत। समुझाए उर लाइ प्रभु जानि सनेहँ सभीत ॥ ७२ ॥

Chapter : 11 Number : 76

Chaupai / चोपाई

मागहु बिदा मातु सन जाई। आवहु बेगि चलहु बन भाई ॥ मुदित भए सुनि रघुबर बानी। भयउ लाभ बड़ गइ बड़ि हानी ॥

Chapter : 11 Number : 76

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