ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Chaupai / चोपाई
सचिवँ उठाइ राउ बैठारे। कहि प्रिय बचन रामु पगु धारे ॥ सिय समेत दोउ तनय निहारी। ब्याकुल भयउ भूमिपति भारी ॥
Doha / दोहा
दो. सीय सहित सुत सुभग दोउ देखि देखि अकुलाइ। बारहिं बार सनेह बस राउ लेइ उर लाइ ॥ ७६ ॥
Chaupai / चोपाई
सकइ न बोलि बिकल नरनाहू। सोक जनित उर दारुन दाहू ॥ नाइ सीसु पद अति अनुरागा। उठि रघुबीर बिदा तब मागा ॥
पितु असीस आयसु मोहि दीजै। हरष समय बिसमउ कत कीजै ॥ तात किएँ प्रिय प्रेम प्रमादू। जसु जग जाइ होइ अपबादू ॥
सुनि सनेह बस उठि नरनाहाँ। बैठारे रघुपति गहि बाहाँ ॥ सुनहु तात तुम्ह कहुँ मुनि कहहीं। रामु चराचर नायक अहहीं ॥
सुभ अरु असुभ करम अनुहारी। ईस देइ फलु ह्दयँ बिचारी ॥ करइ जो करम पाव फल सोई। निगम नीति असि कह सबु कोई ॥
Doha / दोहा
दो. -औरु करै अपराधु कोउ और पाव फल भोगु। अति बिचित्र भगवंत गति को जग जानै जोगु ॥ ७७ ॥
Chaupai / चोपाई
रायँ राम राखन हित लागी। बहुत उपाय किए छलु त्यागी ॥ लखी राम रुख रहत न जाने। धरम धुरंधर धीर सयाने ॥
तब नृप सीय लाइ उर लीन्ही। अति हित बहुत भाँति सिख दीन्ही ॥ कहि बन के दुख दुसह सुनाए। सासु ससुर पितु सुख समुझाए ॥
सिय मनु राम चरन अनुरागा। घरु न सुगमु बनु बिषमु न लागा ॥ औरउ सबहिं सीय समुझाई। कहि कहि बिपिन बिपति अधिकाई ॥
सचिव नारि गुर नारि सयानी। सहित सनेह कहहिं मृदु बानी ॥ तुम्ह कहुँ तौ न दीन्ह बनबासू। करहु जो कहहिं ससुर गुर सासू ॥
Doha / दोहा
दो. -सिख सीतलि हित मधुर मृदु सुनि सीतहि न सोहानि। सरद चंद चंदनि लगत जनु चकई अकुलानि ॥ ७८ ॥
Chaupai / चोपाई
सीय सकुच बस उतरु न देई। सो सुनि तमकि उठी कैकेई ॥ मुनि पट भूषन भाजन आनी। आगें धरि बोली मृदु बानी ॥
नृपहि प्रान प्रिय तुम्ह रघुबीरा। सील सनेह न छाड़िहि भीरा ॥ सुकृत सुजसु परलोकु नसाऊ। तुम्हहि जान बन कहिहि न काऊ ॥
अस बिचारि सोइ करहु जो भावा। राम जननि सिख सुनि सुखु पावा ॥ भूपहि बचन बानसम लागे। करहिं न प्रान पयान अभागे ॥
लोग बिकल मुरुछित नरनाहू। काह करिअ कछु सूझ न काहू ॥ रामु तुरत मुनि बेषु बनाई। चले जनक जननिहि सिरु नाई ॥
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