Ram Charita Manas

Ayodhya-Kanda

Shri Ram reaches Shringverpur, served by Nishad.

ॐ श्री परमात्मने नमः


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ॐ श्री गणेशाय नमः

Doha / दोहा

दो. सुध्द सचिदानंदमय कंद भानुकुल केतु। चरित करत नर अनुहरत संसृति सागर सेतु ॥ ८७ ॥

Chapter : 15 Number : 92

Chaupai / चोपाई

यह सुधि गुहँ निषाद जब पाई। मुदित लिए प्रिय बंधु बोलाई ॥ लिए फल मूल भेंट भरि भारा। मिलन चलेउ हिँयँ हरषु अपारा ॥

Chapter : 15 Number : 92

करि दंडवत भेंट धरि आगें। प्रभुहि बिलोकत अति अनुरागें ॥ सहज सनेह बिबस रघुराई। पूँछी कुसल निकट बैठाई ॥

Chapter : 15 Number : 92

नाथ कुसल पद पंकज देखें। भयउँ भागभाजन जन लेखें ॥ देव धरनि धनु धामु तुम्हारा। मैं जनु नीचु सहित परिवारा ॥

Chapter : 15 Number : 92

कृपा करिअ पुर धारिअ पाऊ। थापिय जनु सबु लोगु सिहाऊ ॥ कहेहु सत्य सबु सखा सुजाना। मोहि दीन्ह पितु आयसु आना ॥

Chapter : 15 Number : 92

Doha / दोहा

दो. बरष चारिदस बासु बन मुनि ब्रत बेषु अहारु। ग्राम बासु नहिं उचित सुनि गुहहि भयउ दुखु भारु ॥ ८८ ॥

Chapter : 15 Number : 93

Chaupai / चोपाई

राम लखन सिय रूप निहारी। कहहिं सप्रेम ग्राम नर नारी ॥ ते पितु मातु कहहु सखि कैसे। जिन्ह पठए बन बालक ऐसे ॥

Chapter : 15 Number : 93

एक कहहिं भल भूपति कीन्हा। लोयन लाहु हमहि बिधि दीन्हा ॥ तब निषादपति उर अनुमाना। तरु सिंसुपा मनोहर जाना ॥

Chapter : 15 Number : 93

लै रघुनाथहि ठाउँ देखावा। कहेउ राम सब भाँति सुहावा ॥ पुरजन करि जोहारु घर आए। रघुबर संध्या करन सिधाए ॥

Chapter : 15 Number : 93

गुहँ सँवारि साँथरी डसाई। कुस किसलयमय मृदुल सुहाई ॥ सुचि फल मूल मधुर मृदु जानी। दोना भरि भरि राखेसि पानी ॥

Chapter : 15 Number : 93

Doha / दोहा

दो. सिय सुमंत्र भ्राता सहित कंद मूल फल खाइ। सयन कीन्ह रघुबंसमनि पाय पलोटत भाइ ॥ ८९ ॥

Chapter : 15 Number : 94

Chaupai / चोपाई

उठे लखनु प्रभु सोवत जानी। कहि सचिवहि सोवन मृदु बानी ॥ कछुक दूर सजि बान सरासन। जागन लगे बैठि बीरासन ॥

Chapter : 15 Number : 94

गुँह बोलाइ पाहरू प्रतीती। ठावँ ठाँव राखे अति प्रीती ॥ आपु लखन पहिं बैठेउ जाई। कटि भाथी सर चाप चढ़ाई ॥

Chapter : 15 Number : 94

सोवत प्रभुहि निहारि निषादू। भयउ प्रेम बस ह्दयँ बिषादू ॥ तनु पुलकित जलु लोचन बहई। बचन सप्रेम लखन सन कहई ॥

Chapter : 15 Number : 94

भूपति भवन सुभायँ सुहावा। सुरपति सदनु न पटतर पावा ॥ मनिमय रचित चारु चौबारे। जनु रतिपति निज हाथ सँवारे ॥

Chapter : 15 Number : 94

Doha / दोहा

दो. सुचि सुबिचित्र सुभोगमय सुमन सुगंध सुबास। पलँग मंजु मनिदीप जहँ सब बिधि सकल सुपास ॥ ९० ॥

Chapter : 15 Number : 95

Chaupai / चोपाई

बिबिध बसन उपधान तुराई। छीर फेन मृदु बिसद सुहाई ॥ तहँ सिय रामु सयन निसि करहीं। निज छबि रति मनोज मदु हरहीं ॥

Chapter : 15 Number : 95

ते सिय रामु साथरीं सोए। श्रमित बसन बिनु जाहिं न जोए ॥ मातु पिता परिजन पुरबासी। सखा सुसील दास अरु दासी ॥

Chapter : 15 Number : 95

जोगवहिं जिन्हहि प्रान की नाई। महि सोवत तेइ राम गोसाईं ॥ पिता जनक जग बिदित प्रभाऊ। ससुर सुरेस सखा रघुराऊ ॥

Chapter : 15 Number : 95

रामचंदु पति सो बैदेही। सोवत महि बिधि बाम न केही ॥ सिय रघुबीर कि कानन जोगू। करम प्रधान सत्य कह लोगू ॥

Chapter : 15 Number : 95

Doha / दोहा

दो. कैकयनंदिनि मंदमति कठिन कुटिलपनु कीन्ह। जेहीं रघुनंदन जानकिहि सुख अवसर दुखु दीन्ह ॥ ९१ ॥

Chapter : 15 Number : 96

Chaupai / चोपाई

भइ दिनकर कुल बिटप कुठारी। कुमति कीन्ह सब बिस्व दुखारी ॥ भयउ बिषादु निषादहि भारी। राम सीय महि सयन निहारी ॥

Chapter : 15 Number : 96

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