ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Doha / दोहा
दो. सुध्द सचिदानंदमय कंद भानुकुल केतु। चरित करत नर अनुहरत संसृति सागर सेतु ॥ ८७ ॥
Chaupai / चोपाई
यह सुधि गुहँ निषाद जब पाई। मुदित लिए प्रिय बंधु बोलाई ॥ लिए फल मूल भेंट भरि भारा। मिलन चलेउ हिँयँ हरषु अपारा ॥
करि दंडवत भेंट धरि आगें। प्रभुहि बिलोकत अति अनुरागें ॥ सहज सनेह बिबस रघुराई। पूँछी कुसल निकट बैठाई ॥
नाथ कुसल पद पंकज देखें। भयउँ भागभाजन जन लेखें ॥ देव धरनि धनु धामु तुम्हारा। मैं जनु नीचु सहित परिवारा ॥
कृपा करिअ पुर धारिअ पाऊ। थापिय जनु सबु लोगु सिहाऊ ॥ कहेहु सत्य सबु सखा सुजाना। मोहि दीन्ह पितु आयसु आना ॥
Doha / दोहा
दो. बरष चारिदस बासु बन मुनि ब्रत बेषु अहारु। ग्राम बासु नहिं उचित सुनि गुहहि भयउ दुखु भारु ॥ ८८ ॥
Chaupai / चोपाई
राम लखन सिय रूप निहारी। कहहिं सप्रेम ग्राम नर नारी ॥ ते पितु मातु कहहु सखि कैसे। जिन्ह पठए बन बालक ऐसे ॥
एक कहहिं भल भूपति कीन्हा। लोयन लाहु हमहि बिधि दीन्हा ॥ तब निषादपति उर अनुमाना। तरु सिंसुपा मनोहर जाना ॥
लै रघुनाथहि ठाउँ देखावा। कहेउ राम सब भाँति सुहावा ॥ पुरजन करि जोहारु घर आए। रघुबर संध्या करन सिधाए ॥
गुहँ सँवारि साँथरी डसाई। कुस किसलयमय मृदुल सुहाई ॥ सुचि फल मूल मधुर मृदु जानी। दोना भरि भरि राखेसि पानी ॥
Doha / दोहा
दो. सिय सुमंत्र भ्राता सहित कंद मूल फल खाइ। सयन कीन्ह रघुबंसमनि पाय पलोटत भाइ ॥ ८९ ॥
Chaupai / चोपाई
उठे लखनु प्रभु सोवत जानी। कहि सचिवहि सोवन मृदु बानी ॥ कछुक दूर सजि बान सरासन। जागन लगे बैठि बीरासन ॥
गुँह बोलाइ पाहरू प्रतीती। ठावँ ठाँव राखे अति प्रीती ॥ आपु लखन पहिं बैठेउ जाई। कटि भाथी सर चाप चढ़ाई ॥
सोवत प्रभुहि निहारि निषादू। भयउ प्रेम बस ह्दयँ बिषादू ॥ तनु पुलकित जलु लोचन बहई। बचन सप्रेम लखन सन कहई ॥
भूपति भवन सुभायँ सुहावा। सुरपति सदनु न पटतर पावा ॥ मनिमय रचित चारु चौबारे। जनु रतिपति निज हाथ सँवारे ॥
Doha / दोहा
दो. सुचि सुबिचित्र सुभोगमय सुमन सुगंध सुबास। पलँग मंजु मनिदीप जहँ सब बिधि सकल सुपास ॥ ९० ॥
Chaupai / चोपाई
बिबिध बसन उपधान तुराई। छीर फेन मृदु बिसद सुहाई ॥ तहँ सिय रामु सयन निसि करहीं। निज छबि रति मनोज मदु हरहीं ॥
ते सिय रामु साथरीं सोए। श्रमित बसन बिनु जाहिं न जोए ॥ मातु पिता परिजन पुरबासी। सखा सुसील दास अरु दासी ॥
जोगवहिं जिन्हहि प्रान की नाई। महि सोवत तेइ राम गोसाईं ॥ पिता जनक जग बिदित प्रभाऊ। ससुर सुरेस सखा रघुराऊ ॥
रामचंदु पति सो बैदेही। सोवत महि बिधि बाम न केही ॥ सिय रघुबीर कि कानन जोगू। करम प्रधान सत्य कह लोगू ॥
Doha / दोहा
दो. कैकयनंदिनि मंदमति कठिन कुटिलपनु कीन्ह। जेहीं रघुनंदन जानकिहि सुख अवसर दुखु दीन्ह ॥ ९१ ॥
Chaupai / चोपाई
भइ दिनकर कुल बिटप कुठारी। कुमति कीन्ह सब बिस्व दुखारी ॥ भयउ बिषादु निषादहि भारी। राम सीय महि सयन निहारी ॥
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