Ram Charita Manas

Ayodhya-Kanda

Kevat's Love and Crossing the Ganges.

ॐ श्री परमात्मने नमः


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ॐ श्री गणेशाय नमः

Chaupai / चोपाई

जासु बियोग बिकल पसु ऐसे। प्रजा मातु पितु जीहहिं कैसें ॥ बरबस राम सुमंत्रु पठाए। सुरसरि तीर आपु तब आए ॥

Chapter : 17 Number : 104

मागी नाव न केवटु आना। कहइ तुम्हार मरमु मैं जाना ॥ चरन कमल रज कहुँ सबु कहई। मानुष करनि मूरि कछु अहई ॥

Chapter : 17 Number : 104

छुअत सिला भइ नारि सुहाई। पाहन तें न काठ कठिनाई ॥ तरनिउ मुनि घरिनि होइ जाई। बाट परइ मोरि नाव उड़ाई ॥

Chapter : 17 Number : 104

एहिं प्रतिपालउँ सबु परिवारू। नहिं जानउँ कछु अउर कबारू ॥ जौ प्रभु पार अवसि गा चहहू। मोहि पद पदुम पखारन कहहू ॥

Chapter : 17 Number : 104

Chanda / छन्द

छं. पद कमल धोइ चढ़ाइ नाव न नाथ उतराई चहौं। मोहि राम राउरि आन दसरथ सपथ सब साची कहौं ॥ बरु तीर मारहुँ लखनु पै जब लगि न पाय पखारिहौं। तब लगि न तुलसीदास नाथ कृपाल पारु उतारिहौं ॥

Chapter : 17 Number : 105

Sortha / सोरठा

सो. सुनि केबट के बैन प्रेम लपेटे अटपटे। बिहसे करुनाऐन चितइ जानकी लखन तन ॥ १०० ॥

Chapter : 17 Number : 106

Chaupai / चोपाई

कृपासिंधु बोले मुसुकाई। सोइ करु जेंहि तव नाव न जाई ॥ वेगि आनु जल पाय पखारू। होत बिलंबु उतारहि पारू ॥

Chapter : 17 Number : 106

जासु नाम सुमरत एक बारा। उतरहिं नर भवसिंधु अपारा ॥ सोइ कृपालु केवटहि निहोरा। जेहिं जगु किय तिहु पगहु ते थोरा ॥

Chapter : 17 Number : 106

पद नख निरखि देवसरि हरषी। सुनि प्रभु बचन मोहँ मति करषी ॥ केवट राम रजायसु पावा। पानि कठवता भरि लेइ आवा ॥

Chapter : 17 Number : 106

अति आनंद उमगि अनुरागा। चरन सरोज पखारन लागा ॥ बरषि सुमन सुर सकल सिहाहीं। एहि सम पुन्यपुंज कोउ नाहीं ॥

Chapter : 17 Number : 106

Doha / दोहा

दो. पद पखारि जलु पान करि आपु सहित परिवार। पितर पारु करि प्रभुहि पुनि मुदित गयउ लेइ पार ॥ १०१ ॥

Chapter : 17 Number : 107

Chaupai / चोपाई

उतरि ठाड़ भए सुरसरि रेता। सीयराम गुह लखन समेता ॥ केवट उतरि दंडवत कीन्हा। प्रभुहि सकुच एहि नहिं कछु दीन्हा ॥

Chapter : 17 Number : 107

पिय हिय की सिय जाननिहारी। मनि मुदरी मन मुदित उतारी ॥ कहेउ कृपाल लेहि उतराई। केवट चरन गहे अकुलाई ॥

Chapter : 17 Number : 107

नाथ आजु मैं काह न पावा। मिटे दोष दुख दारिद दावा ॥ बहुत काल मैं कीन्हि मजूरी। आजु दीन्ह बिधि बनि भलि भूरी ॥

Chapter : 17 Number : 107

अब कछु नाथ न चाहिअ मोरें। दीनदयाल अनुग्रह तोरें ॥ फिरती बार मोहि जे देबा। सो प्रसादु मैं सिर धरि लेबा ॥

Chapter : 17 Number : 107

Doha / दोहा

दो. बहुत कीन्ह प्रभु लखन सियँ नहिं कछु केवटु लेइ। बिदा कीन्ह करुनायतन भगति बिमल बरु देइ ॥ १०२ ॥

Chapter : 17 Number : 108

Chaupai / चोपाई

तब मज्जनु करि रघुकुलनाथा। पूजि पारथिव नायउ माथा ॥ सियँ सुरसरिहि कहेउ कर जोरी। मातु मनोरथ पुरउबि मोरी ॥

Chapter : 17 Number : 108

पति देवर संग कुसल बहोरी। आइ करौं जेहिं पूजा तोरी ॥ सुनि सिय बिनय प्रेम रस सानी। भइ तब बिमल बारि बर बानी ॥

Chapter : 17 Number : 108

सुनु रघुबीर प्रिया बैदेही। तव प्रभाउ जग बिदित न केही ॥ लोकप होहिं बिलोकत तोरें। तोहि सेवहिं सब सिधि कर जोरें ॥

Chapter : 17 Number : 108

तुम्ह जो हमहि बड़ि बिनय सुनाई। कृपा कीन्हि मोहि दीन्हि बड़ाई ॥ तदपि देबि मैं देबि असीसा। सफल होपन हित निज बागीसा ॥

Chapter : 17 Number : 108

Doha / दोहा

दो. प्राननाथ देवर सहित कुसल कोसला आइ। पूजहि सब मनकामना सुजसु रहिहि जग छाइ ॥ १०३ ॥

Chapter : 17 Number : 109

Chaupai / चोपाई

गंग बचन सुनि मंगल मूला। मुदित सीय सुरसरि अनुकुला ॥ तब प्रभु गुहहि कहेउ घर जाहू। सुनत सूख मुखु भा उर दाहू ॥

Chapter : 17 Number : 109

दीन बचन गुह कह कर जोरी। बिनय सुनहु रघुकुलमनि मोरी ॥ नाथ साथ रहि पंथु देखाई। करि दिन चारि चरन सेवकाई ॥

Chapter : 17 Number : 109

जेहिं बन जाइ रहब रघुराई। परनकुटी मैं करबि सुहाई ॥ तब मोहि कहँ जसि देब रजाई। सोइ करिहउँ रघुबीर दोहाई ॥

Chapter : 17 Number : 109

सहज सनेह राम लखि तासु। संग लीन्ह गुह हृदय हुलासू ॥ पुनि गुहँ ग्याति बोलि सब लीन्हे। करि परितोषु बिदा तब कीन्हे ॥

Chapter : 17 Number : 109

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