ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Doha / दोहा
दो. तब रघुबीर अनेक बिधि सखहि सिखावनु दीन्ह। राम रजायसु सीस धरि भवन गवनु तेँइँ कीन्ह ॥ १११ ॥
Chaupai / चोपाई
पुनि सियँ राम लखन कर जोरी। जमुनहि कीन्ह प्रनामु बहोरी ॥ चले ससीय मुदित दोउ भाई। रबितनुजा कइ करत बड़ाई ॥
पथिक अनेक मिलहिं मग जाता। कहहिं सप्रेम देखि दोउ भ्राता ॥ राज लखन सब अंग तुम्हारें। देखि सोचु अति हृदय हमारें ॥
मारग चलहु पयादेहि पाएँ। ज्योतिषु झूठ हमारें भाएँ ॥ अगमु पंथ गिरि कानन भारी। तेहि महँ साथ नारि सुकुमारी ॥
करि केहरि बन जाइ न जोई। हम सँग चलहि जो आयसु होई ॥ जाब जहाँ लगि तहँ पहुँचाई। फिरब बहोरि तुम्हहि सिरु नाई ॥
Doha / दोहा
दो. एहि बिधि पूँछहिं प्रेम बस पुलक गात जलु नैन। कृपासिंधु फेरहि तिन्हहि कहि बिनीत मृदु बैन ॥ ११२ ॥
Chaupai / चोपाई
जे पुर गाँव बसहिं मग माहीं। तिन्हहि नाग सुर नगर सिहाहीं ॥ केहि सुकृतीं केहि घरीं बसाए। धन्य पुन्यमय परम सुहाए ॥
जहँ जहँ राम चरन चलि जाहीं। तिन्ह समान अमरावति नाहीं ॥ पुन्यपुंज मग निकट निवासी। तिन्हहि सराहहिं सुरपुरबासी ॥
जे भरि नयन बिलोकहिं रामहि। सीता लखन सहित घनस्यामहि ॥ जे सर सरित राम अवगाहहिं। तिन्हहि देव सर सरित सराहहिं ॥
जेहि तरु तर प्रभु बैठहिं जाई। करहिं कलपतरु तासु बड़ाई ॥ परसि राम पद पदुम परागा। मानति भूमि भूरि निज भागा ॥
Doha / दोहा
दो. छाँह करहि घन बिबुधगन बरषहि सुमन सिहाहिं। देखत गिरि बन बिहग मृग रामु चले मग जाहिं ॥ ११३ ॥
Chaupai / चोपाई
सीता लखन सहित रघुराई। गाँव निकट जब निकसहिं जाई ॥ सुनि सब बाल बृद्ध नर नारी। चलहिं तुरत गृहकाजु बिसारी ॥
राम लखन सिय रूप निहारी। पाइ नयनफलु होहिं सुखारी ॥ सजल बिलोचन पुलक सरीरा। सब भए मगन देखि दोउ बीरा ॥
बरनि न जाइ दसा तिन्ह केरी। लहि जनु रंकन्ह सुरमनि ढेरी ॥ एकन्ह एक बोलि सिख देहीं। लोचन लाहु लेहु छन एहीं ॥
रामहि देखि एक अनुरागे। चितवत चले जाहिं सँग लागे ॥ एक नयन मग छबि उर आनी। होहिं सिथिल तन मन बर बानी ॥
Doha / दोहा
दो. एक देखिं बट छाँह भलि डासि मृदुल तृन पात। कहहिं गवाँइअ छिनुकु श्रमु गवनब अबहिं कि प्रात ॥ ११४ ॥
Chaupai / चोपाई
एक कलस भरि आनहिं पानी। अँचइअ नाथ कहहिं मृदु बानी ॥ सुनि प्रिय बचन प्रीति अति देखी। राम कृपाल सुसील बिसेषी ॥
जानी श्रमित सीय मन माहीं। घरिक बिलंबु कीन्ह बट छाहीं ॥ मुदित नारि नर देखहिं सोभा। रूप अनूप नयन मनु लोभा ॥
एकटक सब सोहहिं चहुँ ओरा। रामचंद्र मुख चंद चकोरा ॥ तरुन तमाल बरन तनु सोहा। देखत कोटि मदन मनु मोहा ॥
दामिनि बरन लखन सुठि नीके। नख सिख सुभग भावते जी के ॥ मुनिपट कटिन्ह कसें तूनीरा। सोहहिं कर कमलिनि धनु तीरा ॥
Doha / दोहा
दो. जटा मुकुट सीसनि सुभग उर भुज नयन बिसाल। सरद परब बिधु बदन बर लसत स्वेद कन जाल ॥ ११५ ॥
Chaupai / चोपाई
बरनि न जाइ मनोहर जोरी। सोभा बहुत थोरि मति मोरी ॥ राम लखन सिय सुंदरताई। सब चितवहिं चित मन मति लाई ॥
थके नारि नर प्रेम पिआसे। मनहुँ मृगी मृग देखि दिआ से ॥ सीय समीप ग्रामतिय जाहीं। पूँछत अति सनेहँ सकुचाहीं ॥
बार बार सब लागहिं पाएँ। कहहिं बचन मृदु सरल सुभाएँ ॥ राजकुमारि बिनय हम करहीं। तिय सुभायँ कछु पूँछत डरहीं।
स्वामिनि अबिनय छमबि हमारी। बिलगु न मानब जानि गवाँरी ॥ राजकुअँर दोउ सहज सलोने। इन्ह तें लही दुति मरकत सोने ॥
Doha / दोहा
दो. स्यामल गौर किसोर बर सुंदर सुषमा ऐन। सरद सर्बरीनाथ मुखु सरद सरोरुह नैन ॥ ११६ ॥
Chaupai / चोपाई
कोटि मनोज लजावनिहारे। सुमुखि कहहु को आहिं तुम्हारे ॥ सुनि सनेहमय मंजुल बानी। सकुची सिय मन महुँ मुसुकानी ॥
तिन्हहि बिलोकि बिलोकति धरनी। दुहुँ सकोच सकुचित बरबरनी ॥ सकुचि सप्रेम बाल मृग नयनी। बोली मधुर बचन पिकबयनी ॥
सहज सुभाय सुभग तन गोरे। नामु लखनु लघु देवर मोरे ॥ बहुरि बदनु बिधु अंचल ढाँकी। पिय तन चितइ भौंह करि बाँकी ॥
खंजन मंजु तिरीछे नयननि। निज पति कहेउ तिन्हहि सियँ सयननि ॥ भइ मुदित सब ग्रामबधूटीं। रंकन्ह राय रासि जनु लूटीं ॥
Doha / दोहा
दो. अति सप्रेम सिय पायँ परि बहुबिधि देहिं असीस। सदा सोहागिनि होहु तुम्ह जब लगि महि अहि सीस ॥ ११७ ॥
Chaupai / चोपाई
पारबती सम पतिप्रिय होहू। देबि न हम पर छाड़ब छोहू ॥ पुनि पुनि बिनय करिअ कर जोरी। जौं एहि मारग फिरिअ बहोरी ॥
दरसनु देब जानि निज दासी। लखीं सीयँ सब प्रेम पिआसी ॥ मधुर बचन कहि कहि परितोषीं। जनु कुमुदिनीं कौमुदीं पोषीं ॥
तबहिं लखन रघुबर रुख जानी। पूँछेउ मगु लोगन्हि मृदु बानी ॥ सुनत नारि नर भए दुखारी। पुलकित गात बिलोचन बारी ॥
मिटा मोदु मन भए मलीने। बिधि निधि दीन्ह लेत जनु छीने ॥ समुझि करम गति धीरजु कीन्हा। सोधि सुगम मगु तिन्ह कहि दीन्हा ॥
Doha / दोहा
दो. लखन जानकी सहित तब गवनु कीन्ह रघुनाथ। फेरे सब प्रिय बचन कहि लिए लाइ मन साथ ॥ ११८ ॥ ý
Chaupai / चोपाई
फिरत नारि नर अति पछिताहीं। देअहि दोषु देहिं मन माहीं ॥ सहित बिषाद परसपर कहहीं। बिधि करतब उलटे सब अहहीं ॥
निपट निरंकुस निठुर निसंकू। जेहिं ससि कीन्ह सरुज सकलंकू ॥ रूख कलपतरु सागरु खारा। तेहिं पठए बन राजकुमारा ॥
जौं पे इन्हहि दीन्ह बनबासू। कीन्ह बादि बिधि भोग बिलासू ॥ ए बिचरहिं मग बिनु पदत्राना। रचे बादि बिधि बाहन नाना ॥
ए महि परहिं डासि कुस पाता। सुभग सेज कत सृजत बिधाता ॥ तरुबर बास इन्हहि बिधि दीन्हा। धवल धाम रचि रचि श्रमु कीन्हा ॥
Doha / दोहा
दो. जौं ए मुनि पट धर जटिल सुंदर सुठि सुकुमार। बिबिध भाँति भूषन बसन बादि किए करतार ॥ ११९ ॥
Chaupai / चोपाई
जौं ए कंद मूल फल खाहीं। बादि सुधादि असन जग माहीं ॥ एक कहहिं ए सहज सुहाए। आपु प्रगट भए बिधि न बनाए ॥
जहँ लगि बेद कही बिधि करनी। श्रवन नयन मन गोचर बरनी ॥ देखहु खोजि भुअन दस चारी। कहँ अस पुरुष कहाँ असि नारी ॥
इन्हहि देखि बिधि मनु अनुरागा। पटतर जोग बनावै लागा ॥ कीन्ह बहुत श्रम ऐक न आए। तेहिं इरिषा बन आनि दुराए ॥
एक कहहिं हम बहुत न जानहिं। आपुहि परम धन्य करि मानहिं ॥ ते पुनि पुन्यपुंज हम लेखे। जे देखहिं देखिहहिं जिन्ह देखे ॥
Doha / दोहा
दो. एहि बिधि कहि कहि बचन प्रिय लेहिं नयन भरि नीर। किमि चलिहहि मारग अगम सुठि सुकुमार सरीर ॥ १२० ॥
Chaupai / चोपाई
नारि सनेह बिकल बस होहीं। चकई साँझ समय जनु सोहीं ॥ मृदु पद कमल कठिन मगु जानी। गहबरि हृदयँ कहहिं बर बानी ॥
परसत मृदुल चरन अरुनारे। सकुचति महि जिमि हृदय हमारे ॥ जौं जगदीस इन्हहि बनु दीन्हा। कस न सुमनमय मारगु कीन्हा ॥
जौं मागा पाइअ बिधि पाहीं। ए रखिअहिं सखि आँखिन्ह माहीं ॥ जे नर नारि न अवसर आए। तिन्ह सिय रामु न देखन पाए ॥
सुनि सुरुप बूझहिं अकुलाई। अब लगि गए कहाँ लगि भाई ॥ समरथ धाइ बिलोकहिं जाई। प्रमुदित फिरहिं जनमफलु पाई ॥
Doha / दोहा
दो. अबला बालक बृद्ध जन कर मीजहिं पछिताहिं ॥ होहिं प्रेमबस लोग इमि रामु जहाँ जहँ जाहिं ॥ १२१ ॥
Chaupai / चोपाई
गाँव गाँव अस होइ अनंदू। देखि भानुकुल कैरव चंदू ॥ जे कछु समाचार सुनि पावहिं। ते नृप रानिहि दोसु लगावहिं ॥
कहहिं एक अति भल नरनाहू। दीन्ह हमहि जोइ लोचन लाहू ॥ कहहिं परस्पर लोग लोगाईं। बातें सरल सनेह सुहाईं ॥
ते पितु मातु धन्य जिन्ह जाए। धन्य सो नगरु जहाँ तें आए ॥ धन्य सो देसु सैलु बन गाऊँ। जहँ जहँ जाहिं धन्य सोइ ठाऊँ ॥
सुख पायउ बिरंचि रचि तेही। ए जेहि के सब भाँति सनेही ॥ राम लखन पथि कथा सुहाई। रही सकल मग कानन छाई ॥
Doha / दोहा
दो. एहि बिधि रघुकुल कमल रबि मग लोगन्ह सुख देत। जाहिं चले देखत बिपिन सिय सौमित्रि समेत ॥ १२२ ॥
Chaupai / चोपाई
आगे रामु लखनु बने पाछें। तापस बेष बिराजत काछें ॥ उभय बीच सिय सोहति कैसे। ब्रह्म जीव बिच माया जैसे ॥
बहुरि कहउँ छबि जसि मन बसई। जनु मधु मदन मध्य रति लसई ॥ उपमा बहुरि कहउँ जियँ जोही। जनु बुध बिधु बिच रोहिनि सोही ॥
प्रभु पद रेख बीच बिच सीता। धरति चरन मग चलति सभीता ॥ सीय राम पद अंक बराएँ। लखन चलहिं मगु दाहिन लाएँ ॥
राम लखन सिय प्रीति सुहाई। बचन अगोचर किमि कहि जाई ॥ खग मृग मगन देखि छबि होहीं। लिए चोरि चित राम बटोहीं ॥
Doha / दोहा
दो. जिन्ह जिन्ह देखे पथिक प्रिय सिय समेत दोउ भाइ। भव मगु अगमु अनंदु तेइ बिनु श्रम रहे सिराइ ॥ १२३ ॥
Chaupai / चोपाई
अजहुँ जासु उर सपनेहुँ काऊ। बसहुँ लखनु सिय रामु बटाऊ ॥ राम धाम पथ पाइहि सोई। जो पथ पाव कबहुँ मुनि कोई ॥
तब रघुबीर श्रमित सिय जानी। देखि निकट बटु सीतल पानी ॥ तहँ बसि कंद मूल फल खाई। प्रात नहाइ चले रघुराई ॥
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