Ram Charita Manas

Ayodhya-Kanda

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ॐ श्री परमात्मने नमः


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ॐ श्री गणेशाय नमः

Doha / दोहा

दो. चित्रकूट महिमा अमित कहीं महामुनि गाइ। आए नहाए सरित बर सिय समेत दोउ भाइ ॥ १३२ ॥

Chapter : 22 Number : 139

Chaupai / चोपाई

रघुबर कहेउ लखन भल घाटू। करहु कतहुँ अब ठाहर ठाटू ॥ लखन दीख पय उतर करारा। चहुँ दिसि फिरेउ धनुष जिमि नारा ॥

Chapter : 22 Number : 139

नदी पनच सर सम दम दाना। सकल कलुष कलि साउज नाना ॥ चित्रकूट जनु अचल अहेरी। चुकइ न घात मार मुठभेरी ॥

Chapter : 22 Number : 139

अस कहि लखन ठाउँ देखरावा। थलु बिलोकि रघुबर सुखु पावा ॥ रमेउ राम मनु देवन्ह जाना। चले सहित सुर थपति प्रधाना ॥

Chapter : 22 Number : 139

कोल किरात बेष सब आए। रचे परन तृन सदन सुहाए ॥ बरनि न जाहि मंजु दुइ साला। एक ललित लघु एक बिसाला ॥

Chapter : 22 Number : 139

Doha / दोहा

दो. लखन जानकी सहित प्रभु राजत रुचिर निकेत। सोह मदनु मुनि बेष जनु रति रितुराज समेत ॥ १३३ ॥

Chapter : 22 Number : 140

Chaupai / चोपाई

अमर नाग किंनर दिसिपाला। चित्रकूट आए तेहि काला ॥ राम प्रनामु कीन्ह सब काहू। मुदित देव लहि लोचन लाहू ॥

Chapter : 22 Number : 140

बरषि सुमन कह देव समाजू। नाथ सनाथ भए हम आजू ॥ करि बिनती दुख दुसह सुनाए। हरषित निज निज सदन सिधाए ॥

Chapter : 22 Number : 140

चित्रकूट रघुनंदनु छाए। समाचार सुनि सुनि मुनि आए ॥ आवत देखि मुदित मुनिबृंदा। कीन्ह दंडवत रघुकुल चंदा ॥

Chapter : 22 Number : 140

मुनि रघुबरहि लाइ उर लेहीं। सुफल होन हित आसिष देहीं ॥ सिय सौमित्र राम छबि देखहिं। साधन सकल सफल करि लेखहिं ॥

Chapter : 22 Number : 140

Doha / दोहा

दो. जथाजोग सनमानि प्रभु बिदा किए मुनिबृंद। करहि जोग जप जाग तप निज आश्रमन्हि सुछंद ॥ १३४ ॥

Chapter : 22 Number : 141

Chaupai / चोपाई

यह सुधि कोल किरातन्ह पाई। हरषे जनु नव निधि घर आई ॥ कंद मूल फल भरि भरि दोना। चले रंक जनु लूटन सोना ॥

Chapter : 22 Number : 141

तिन्ह महँ जिन्ह देखे दोउ भ्राता। अपर तिन्हहि पूँछहि मगु जाता ॥ कहत सुनत रघुबीर निकाई। आइ सबन्हि देखे रघुराई ॥

Chapter : 22 Number : 141

करहिं जोहारु भेंट धरि आगे। प्रभुहि बिलोकहिं अति अनुरागे ॥ चित्र लिखे जनु जहँ तहँ ठाढ़े। पुलक सरीर नयन जल बाढ़े ॥

Chapter : 22 Number : 141

राम सनेह मगन सब जाने। कहि प्रिय बचन सकल सनमाने ॥ प्रभुहि जोहारि बहोरि बहोरी। बचन बिनीत कहहिं कर जोरी ॥

Chapter : 22 Number : 141

Doha / दोहा

दो. अब हम नाथ सनाथ सब भए देखि प्रभु पाय। भाग हमारे आगमनु राउर कोसलराय ॥ १३५ ॥

Chapter : 22 Number : 142

Chaupai / चोपाई

धन्य भूमि बन पंथ पहारा। जहँ जहँ नाथ पाउ तुम्ह धारा ॥ धन्य बिहग मृग काननचारी। सफल जनम भए तुम्हहि निहारी ॥

Chapter : 22 Number : 142

हम सब धन्य सहित परिवारा। दीख दरसु भरि नयन तुम्हारा ॥ कीन्ह बासु भल ठाउँ बिचारी। इहाँ सकल रितु रहब सुखारी ॥

Chapter : 22 Number : 142

हम सब भाँति करब सेवकाई। करि केहरि अहि बाघ बराई ॥ बन बेहड़ गिरि कंदर खोहा। सब हमार प्रभु पग पग जोहा ॥

Chapter : 22 Number : 142

तहँ तहँ तुम्हहि अहेर खेलाउब। सर निरझर जलठाउँ देखाउब ॥ हम सेवक परिवार समेता। नाथ न सकुचब आयसु देता ॥

Chapter : 22 Number : 142

Doha / दोहा

दो. बेद बचन मुनि मन अगम ते प्रभु करुना ऐन। बचन किरातन्ह के सुनत जिमि पितु बालक बैन ॥ १३६ ॥

Chapter : 22 Number : 143

Chaupai / चोपाई

रामहि केवल प्रेमु पिआरा। जानि लेउ जो जाननिहारा ॥ राम सकल बनचर तब तोषे। कहि मृदु बचन प्रेम परिपोषे ॥

Chapter : 22 Number : 143

बिदा किए सिर नाइ सिधाए। प्रभु गुन कहत सुनत घर आए ॥ एहि बिधि सिय समेत दोउ भाई। बसहिं बिपिन सुर मुनि सुखदाई ॥

Chapter : 22 Number : 143

जब ते आइ रहे रघुनायकु। तब तें भयउ बनु मंगलदायकु ॥ फूलहिं फलहिं बिटप बिधि नाना ॥ मंजु बलित बर बेलि बिताना ॥

Chapter : 22 Number : 143

सुरतरु सरिस सुभायँ सुहाए। मनहुँ बिबुध बन परिहरि आए ॥ गंज मंजुतर मधुकर श्रेनी। त्रिबिध बयारि बहइ सुख देनी ॥

Chapter : 22 Number : 143

Doha / दोहा

दो. नीलकंठ कलकंठ सुक चातक चक्क चकोर। भाँति भाँति बोलहिं बिहग श्रवन सुखद चित चोर ॥ १३७ ॥

Chapter : 22 Number : 144

Chaupai / चोपाई

केरि केहरि कपि कोल कुरंगा। बिगतबैर बिचरहिं सब संगा ॥ फिरत अहेर राम छबि देखी। होहिं मुदित मृगबंद बिसेषी ॥

Chapter : 22 Number : 144

बिबुध बिपिन जहँ लगि जग माहीं। देखि राम बनु सकल सिहाहीं ॥ सुरसरि सरसइ दिनकर कन्या। मेकलसुता गोदावरि धन्या ॥

Chapter : 22 Number : 144

सब सर सिंधु नदी नद नाना। मंदाकिनि कर करहिं बखाना ॥ उदय अस्त गिरि अरु कैलासू। मंदर मेरु सकल सुरबासू ॥

Chapter : 22 Number : 144

सैल हिमाचल आदिक जेते। चित्रकूट जसु गावहिं तेते ॥ बिंधि मुदित मन सुखु न समाई। श्रम बिनु बिपुल बड़ाई पाई ॥

Chapter : 22 Number : 144

Doha / दोहा

दो. चित्रकूट के बिहग मृग बेलि बिटप तृन जाति। पुन्य पुंज सब धन्य अस कहहिं देव दिन राति ॥ १३८ ॥

Chapter : 22 Number : 145

Chaupai / चोपाई

नयनवंत रघुबरहि बिलोकी। पाइ जनम फल होहिं बिसोकी ॥ परसि चरन रज अचर सुखारी। भए परम पद के अधिकारी ॥

Chapter : 22 Number : 145

सो बनु सैलु सुभायँ सुहावन। मंगलमय अति पावन पावन ॥ महिमा कहिअ कवनि बिधि तासू। सुखसागर जहँ कीन्ह निवासू ॥

Chapter : 22 Number : 145

पय पयोधि तजि अवध बिहाई। जहँ सिय लखनु रामु रहे आई ॥ कहि न सकहिं सुषमा जसि कानन। जौं सत सहस होंहिं सहसानन ॥

Chapter : 22 Number : 145

सो मैं बरनि कहौं बिधि केहीं। डाबर कमठ कि मंदर लेहीं ॥ सेवहिं लखनु करम मन बानी। जाइ न सीलु सनेहु बखानी ॥

Chapter : 22 Number : 145

Doha / दोहा

दो. -छिनु छिनु लखि सिय राम पद जानि आपु पर नेहु। करत न सपनेहुँ लखनु चितु बंधु मातु पितु गेहु ॥ १३९ ॥

Chapter : 22 Number : 146

Chaupai / चोपाई

राम संग सिय रहति सुखारी। पुर परिजन गृह सुरति बिसारी ॥ छिनु छिनु पिय बिधु बदनु निहारी। प्रमुदित मनहुँ चकोरकुमारी ॥

Chapter : 22 Number : 146

नाह नेहु नित बढ़त बिलोकी। हरषित रहति दिवस जिमि कोकी ॥ सिय मनु राम चरन अनुरागा। अवध सहस सम बनु प्रिय लागा ॥

Chapter : 22 Number : 146

परनकुटी प्रिय प्रियतम संगा। प्रिय परिवारु कुरंग बिहंगा ॥ सासु ससुर सम मुनितिय मुनिबर। असनु अमिअ सम कंद मूल फर ॥

Chapter : 22 Number : 146

नाथ साथ साँथरी सुहाई। मयन सयन सय सम सुखदाई ॥ लोकप होहिं बिलोकत जासू। तेहि कि मोहि सक बिषय बिलासू ॥

Chapter : 22 Number : 146

Doha / दोहा

दो. -सुमिरत रामहि तजहिं जन तृन सम बिषय बिलासु। रामप्रिया जग जननि सिय कछु न आचरजु तासु ॥ १४० ॥

Chapter : 22 Number : 147

Chaupai / चोपाई

सीय लखन जेहि बिधि सुखु लहहीं। सोइ रघुनाथ करहि सोइ कहहीं ॥ कहहिं पुरातन कथा कहानी। सुनहिं लखनु सिय अति सुखु मानी।

Chapter : 22 Number : 147

जब जब रामु अवध सुधि करहीं। तब तब बारि बिलोचन भरहीं ॥ सुमिरि मातु पितु परिजन भाई। भरत सनेहु सीलु सेवकाई ॥

Chapter : 22 Number : 147

कृपासिंधु प्रभु होहिं दुखारी। धीरजु धरहिं कुसमउ बिचारी ॥ लखि सिय लखनु बिकल होइ जाहीं। जिमि पुरुषहि अनुसर परिछाहीं ॥

Chapter : 22 Number : 147

प्रिया बंधु गति लखि रघुनंदनु। धीर कृपाल भगत उर चंदनु ॥ लगे कहन कछु कथा पुनीता। सुनि सुखु लहहिं लखनु अरु सीता ॥

Chapter : 22 Number : 147

Doha / दोहा

दो. रामु लखन सीता सहित सोहत परन निकेत। जिमि बासव बस अमरपुर सची जयंत समेत ॥ १४१ ॥

Chapter : 22 Number : 148

Chaupai / चोपाई

जोगवहिं प्रभु सिय लखनहिं कैसें। पलक बिलोचन गोलक जैसें ॥ सेवहिं लखनु सीय रघुबीरहि। जिमि अबिबेकी पुरुष सरीरहि ॥

Chapter : 22 Number : 148

एहि बिधि प्रभु बन बसहिं सुखारी। खग मृग सुर तापस हितकारी ॥ कहेउँ राम बन गवनु सुहावा। सुनहु सुमंत्र अवध जिमि आवा ॥

Chapter : 22 Number : 148

फिरेउ निषादु प्रभुहि पहुँचाई। सचिव सहित रथ देखेसि आई ॥ मंत्री बिकल बिलोकि निषादू। कहि न जाइ जस भयउ बिषादू ॥

Chapter : 22 Number : 148

राम राम सिय लखन पुकारी। परेउ धरनितल ब्याकुल भारी ॥ देखि दखिन दिसि हय हिहिनाहीं। जनु बिनु पंख बिहग अकुलाहीं ॥

Chapter : 22 Number : 148

Doha / दोहा

दो. नहिं तृन चरहिं पिअहिं जलु मोचहिं लोचन बारि। ब्याकुल भए निषाद सब रघुबर बाजि निहारि ॥ १४२ ॥

Chapter : 22 Number : 149

Chaupai / चोपाई

धरि धीरज तब कहइ निषादू। अब सुमंत्र परिहरहु बिषादू ॥ तुम्ह पंडित परमारथ ग्याता। धरहु धीर लखि बिमुख बिधाता

Chapter : 22 Number : 149

बिबिध कथा कहि कहि मृदु बानी। रथ बैठारेउ बरबस आनी ॥ सोक सिथिल रथ सकइ न हाँकी। रघुबर बिरह पीर उर बाँकी ॥

Chapter : 22 Number : 149

चरफराहिँ मग चलहिं न घोरे। बन मृग मनहुँ आनि रथ जोरे ॥ अढ़ुकि परहिं फिरि हेरहिं पीछें। राम बियोगि बिकल दुख तीछें ॥

Chapter : 22 Number : 149

जो कह रामु लखनु बैदेही। हिंकरि हिंकरि हित हेरहिं तेही ॥ बाजि बिरह गति कहि किमि जाती। बिनु मनि फनिक बिकल जेहि भाँती ॥

Chapter : 22 Number : 149

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