Ram Charita Manas

Ayodhya-Kanda

Sumantra returns to Ayodhya and sees mourning everywhere

ॐ श्री परमात्मने नमः


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ॐ श्री गणेशाय नमः

Doha / दोहा

दो. भयउ निषाद बिषादबस देखत सचिव तुरंग। बोलि सुसेवक चारि तब दिए सारथी संग ॥ १४३ ॥

Chapter : 23 Number : 150

Chaupai / चोपाई

गुह सारथिहि फिरेउ पहुँचाई। बिरहु बिषादु बरनि नहिं जाई ॥ चले अवध लेइ रथहि निषादा। होहि छनहिं छन मगन बिषादा ॥

Chapter : 23 Number : 150

सोच सुमंत्र बिकल दुख दीना। धिग जीवन रघुबीर बिहीना ॥ रहिहि न अंतहुँ अधम सरीरू। जसु न लहेउ बिछुरत रघुबीरू ॥

Chapter : 23 Number : 150

भए अजस अघ भाजन प्राना। कवन हेतु नहिं करत पयाना ॥ अहह मंद मनु अवसर चूका। अजहुँ न हृदय होत दुइ टूका ॥

Chapter : 23 Number : 150

मीजि हाथ सिरु धुनि पछिताई। मनहँ कृपन धन रासि गवाँई ॥ बिरिद बाँधि बर बीरु कहाई। चलेउ समर जनु सुभट पराई ॥

Chapter : 23 Number : 150

Doha / दोहा

दो. बिप्र बिबेकी बेदबिद संमत साधु सुजाति। जिमि धोखें मदपान कर सचिव सोच तेहि भाँति ॥ १४४ ॥

Chapter : 23 Number : 151

Chaupai / चोपाई

जिमि कुलीन तिय साधु सयानी। पतिदेवता करम मन बानी ॥ रहै करम बस परिहरि नाहू। सचिव हृदयँ तिमि दारुन दाहु ॥

Chapter : 23 Number : 151

लोचन सजल डीठि भइ थोरी। सुनइ न श्रवन बिकल मति भोरी ॥ सूखहिं अधर लागि मुहँ लाटी। जिउ न जाइ उर अवधि कपाटी ॥

Chapter : 23 Number : 151

बिबरन भयउ न जाइ निहारी। मारेसि मनहुँ पिता महतारी ॥ हानि गलानि बिपुल मन ब्यापी। जमपुर पंथ सोच जिमि पापी ॥

Chapter : 23 Number : 151

बचनु न आव हृदयँ पछिताई। अवध काह मैं देखब जाई ॥ राम रहित रथ देखिहि जोई। सकुचिहि मोहि बिलोकत सोई ॥

Chapter : 23 Number : 151

Doha / दोहा

दो. -धाइ पूँछिहहिं मोहि जब बिकल नगर नर नारि। उतरु देब मैं सबहि तब हृदयँ बज्रु बैठारि ॥ १४५ ॥

Chapter : 23 Number : 152

Chaupai / चोपाई

पुछिहहिं दीन दुखित सब माता। कहब काह मैं तिन्हहि बिधाता ॥ पूछिहि जबहिं लखन महतारी। कहिहउँ कवन सँदेस सुखारी ॥

Chapter : 23 Number : 152

राम जननि जब आइहि धाई। सुमिरि बच्छु जिमि धेनु लवाई ॥ पूँछत उतरु देब मैं तेही। गे बनु राम लखनु बैदेही ॥

Chapter : 23 Number : 152

जोइ पूँछिहि तेहि ऊतरु देबा।जाइ अवध अब यहु सुखु लेबा ॥ पूँछिहि जबहिं राउ दुख दीना। जिवनु जासु रघुनाथ अधीना ॥

Chapter : 23 Number : 152

देहउँ उतरु कौनु मुहु लाई। आयउँ कुसल कुअँर पहुँचाई ॥ सुनत लखन सिय राम सँदेसू। तृन जिमि तनु परिहरिहि नरेसू ॥

Chapter : 23 Number : 152

Doha / दोहा

दो. -ह्रदउ न बिदरेउ पंक जिमि बिछुरत प्रीतमु नीरु ॥ जानत हौं मोहि दीन्ह बिधि यहु जातना सरीरु ॥ १४६ ॥

Chapter : 23 Number : 153

Chaupai / चोपाई

एहि बिधि करत पंथ पछितावा। तमसा तीर तुरत रथु आवा ॥ बिदा किए करि बिनय निषादा। फिरे पायँ परि बिकल बिषादा ॥

Chapter : 23 Number : 153

पैठत नगर सचिव सकुचाई। जनु मारेसि गुर बाँभन गाई ॥ बैठि बिटप तर दिवसु गवाँवा। साँझ समय तब अवसरु पावा ॥

Chapter : 23 Number : 153

अवध प्रबेसु कीन्ह अँधिआरें। पैठ भवन रथु राखि दुआरें ॥ जिन्ह जिन्ह समाचार सुनि पाए। भूप द्वार रथु देखन आए ॥

Chapter : 23 Number : 153

रथु पहिचानि बिकल लखि घोरे। गरहिं गात जिमि आतप ओरे ॥ नगर नारि नर ब्याकुल कैंसें। निघटत नीर मीनगन जैंसें ॥

Chapter : 23 Number : 153

Doha / दोहा

दो. -सचिव आगमनु सुनत सबु बिकल भयउ रनिवासु। भवन भयंकरु लाग तेहि मानहुँ प्रेत निवासु ॥ १४७ ॥

Chapter : 23 Number : 154

Chaupai / चोपाई

अति आरति सब पूँछहिं रानी। उतरु न आव बिकल भइ बानी ॥ सुनइ न श्रवन नयन नहिं सूझा। कहहु कहाँ नृप तेहि तेहि बूझा ॥

Chapter : 23 Number : 154

दासिन्ह दीख सचिव बिकलाई। कौसल्या गृहँ गईं लवाई ॥ जाइ सुमंत्र दीख कस राजा। अमिअ रहित जनु चंदु बिराजा ॥

Chapter : 23 Number : 154

आसन सयन बिभूषन हीना। परेउ भूमितल निपट मलीना ॥ लेइ उसासु सोच एहि भाँती। सुरपुर तें जनु खँसेउ जजाती ॥

Chapter : 23 Number : 154

लेत सोच भरि छिनु छिनु छाती। जनु जरि पंख परेउ संपाती ॥ राम राम कह राम सनेही। पुनि कह राम लखन बैदेही ॥

Chapter : 23 Number : 154

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