ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Doha / दोहा
दो. भयउ निषाद बिषादबस देखत सचिव तुरंग। बोलि सुसेवक चारि तब दिए सारथी संग ॥ १४३ ॥
Chaupai / चोपाई
गुह सारथिहि फिरेउ पहुँचाई। बिरहु बिषादु बरनि नहिं जाई ॥ चले अवध लेइ रथहि निषादा। होहि छनहिं छन मगन बिषादा ॥
सोच सुमंत्र बिकल दुख दीना। धिग जीवन रघुबीर बिहीना ॥ रहिहि न अंतहुँ अधम सरीरू। जसु न लहेउ बिछुरत रघुबीरू ॥
भए अजस अघ भाजन प्राना। कवन हेतु नहिं करत पयाना ॥ अहह मंद मनु अवसर चूका। अजहुँ न हृदय होत दुइ टूका ॥
मीजि हाथ सिरु धुनि पछिताई। मनहँ कृपन धन रासि गवाँई ॥ बिरिद बाँधि बर बीरु कहाई। चलेउ समर जनु सुभट पराई ॥
Doha / दोहा
दो. बिप्र बिबेकी बेदबिद संमत साधु सुजाति। जिमि धोखें मदपान कर सचिव सोच तेहि भाँति ॥ १४४ ॥
Chaupai / चोपाई
जिमि कुलीन तिय साधु सयानी। पतिदेवता करम मन बानी ॥ रहै करम बस परिहरि नाहू। सचिव हृदयँ तिमि दारुन दाहु ॥
लोचन सजल डीठि भइ थोरी। सुनइ न श्रवन बिकल मति भोरी ॥ सूखहिं अधर लागि मुहँ लाटी। जिउ न जाइ उर अवधि कपाटी ॥
बिबरन भयउ न जाइ निहारी। मारेसि मनहुँ पिता महतारी ॥ हानि गलानि बिपुल मन ब्यापी। जमपुर पंथ सोच जिमि पापी ॥
बचनु न आव हृदयँ पछिताई। अवध काह मैं देखब जाई ॥ राम रहित रथ देखिहि जोई। सकुचिहि मोहि बिलोकत सोई ॥
Doha / दोहा
दो. -धाइ पूँछिहहिं मोहि जब बिकल नगर नर नारि। उतरु देब मैं सबहि तब हृदयँ बज्रु बैठारि ॥ १४५ ॥
Chaupai / चोपाई
पुछिहहिं दीन दुखित सब माता। कहब काह मैं तिन्हहि बिधाता ॥ पूछिहि जबहिं लखन महतारी। कहिहउँ कवन सँदेस सुखारी ॥
राम जननि जब आइहि धाई। सुमिरि बच्छु जिमि धेनु लवाई ॥ पूँछत उतरु देब मैं तेही। गे बनु राम लखनु बैदेही ॥
जोइ पूँछिहि तेहि ऊतरु देबा।जाइ अवध अब यहु सुखु लेबा ॥ पूँछिहि जबहिं राउ दुख दीना। जिवनु जासु रघुनाथ अधीना ॥
देहउँ उतरु कौनु मुहु लाई। आयउँ कुसल कुअँर पहुँचाई ॥ सुनत लखन सिय राम सँदेसू। तृन जिमि तनु परिहरिहि नरेसू ॥
Doha / दोहा
दो. -ह्रदउ न बिदरेउ पंक जिमि बिछुरत प्रीतमु नीरु ॥ जानत हौं मोहि दीन्ह बिधि यहु जातना सरीरु ॥ १४६ ॥
Chaupai / चोपाई
एहि बिधि करत पंथ पछितावा। तमसा तीर तुरत रथु आवा ॥ बिदा किए करि बिनय निषादा। फिरे पायँ परि बिकल बिषादा ॥
पैठत नगर सचिव सकुचाई। जनु मारेसि गुर बाँभन गाई ॥ बैठि बिटप तर दिवसु गवाँवा। साँझ समय तब अवसरु पावा ॥
अवध प्रबेसु कीन्ह अँधिआरें। पैठ भवन रथु राखि दुआरें ॥ जिन्ह जिन्ह समाचार सुनि पाए। भूप द्वार रथु देखन आए ॥
रथु पहिचानि बिकल लखि घोरे। गरहिं गात जिमि आतप ओरे ॥ नगर नारि नर ब्याकुल कैंसें। निघटत नीर मीनगन जैंसें ॥
Doha / दोहा
दो. -सचिव आगमनु सुनत सबु बिकल भयउ रनिवासु। भवन भयंकरु लाग तेहि मानहुँ प्रेत निवासु ॥ १४७ ॥
Chaupai / चोपाई
अति आरति सब पूँछहिं रानी। उतरु न आव बिकल भइ बानी ॥ सुनइ न श्रवन नयन नहिं सूझा। कहहु कहाँ नृप तेहि तेहि बूझा ॥
दासिन्ह दीख सचिव बिकलाई। कौसल्या गृहँ गईं लवाई ॥ जाइ सुमंत्र दीख कस राजा। अमिअ रहित जनु चंदु बिराजा ॥
आसन सयन बिभूषन हीना। परेउ भूमितल निपट मलीना ॥ लेइ उसासु सोच एहि भाँती। सुरपुर तें जनु खँसेउ जजाती ॥
लेत सोच भरि छिनु छिनु छाती। जनु जरि पंख परेउ संपाती ॥ राम राम कह राम सनेही। पुनि कह राम लखन बैदेही ॥
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