ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Doha / दोहा
दो. देखि सचिवँ जय जीव कहि कीन्हेउ दंड प्रनामु। सुनत उठेउ ब्याकुल नृपति कहु सुमंत्र कहँ रामु ॥ १४८ ॥
Chaupai / चोपाई
भूप सुमंत्रु लीन्ह उर लाई। बूड़त कछु अधार जनु पाई ॥ सहित सनेह निकट बैठारी। पूँछत राउ नयन भरि बारी ॥
राम कुसल कहु सखा सनेही। कहँ रघुनाथु लखनु बैदेही ॥ आने फेरि कि बनहि सिधाए। सुनत सचिव लोचन जल छाए ॥
सोक बिकल पुनि पूँछ नरेसू। कहु सिय राम लखन संदेसू ॥ राम रूप गुन सील सुभाऊ। सुमिरि सुमिरि उर सोचत राऊ ॥
राउ सुनाइ दीन्ह बनबासू। सुनि मन भयउ न हरषु हराँसू ॥ सो सुत बिछुरत गए न प्राना। को पापी बड़ मोहि समाना ॥
Doha / दोहा
दो. सखा रामु सिय लखनु जहँ तहाँ मोहि पहुँचाउ। नाहिं त चाहत चलन अब प्रान कहउँ सतिभाउ ॥ १४९ ॥
Chaupai / चोपाई
पुनि पुनि पूँछत मंत्रहि राऊ। प्रियतम सुअन सँदेस सुनाऊ ॥ करहि सखा सोइ बेगि उपाऊ। रामु लखनु सिय नयन देखाऊ ॥
सचिव धीर धरि कह मुदु बानी। महाराज तुम्ह पंडित ग्यानी ॥ बीर सुधीर धुरंधर देवा। साधु समाजु सदा तुम्ह सेवा ॥
जनम मरन सब दुख भोगा। हानि लाभ प्रिय मिलन बियोगा ॥ काल करम बस हौहिं गोसाईं। बरबस राति दिवस की नाईं ॥
सुख हरषहिं जड़ दुख बिलखाहीं। दोउ सम धीर धरहिं मन माहीं ॥ धीरज धरहु बिबेकु बिचारी। छाड़िअ सोच सकल हितकारी ॥
Doha / दोहा
दो. प्रथम बासु तमसा भयउ दूसर सुरसरि तीर। न्हाई रहे जलपानु करि सिय समेत दोउ बीर ॥ १५० ॥
Chaupai / चोपाई
केवट कीन्हि बहुत सेवकाई। सो जामिनि सिंगरौर गवाँई ॥ होत प्रात बट छीरु मगावा। जटा मुकुट निज सीस बनावा ॥
राम सखाँ तब नाव मगाई। प्रिया चढ़ाइ चढ़े रघुराई ॥ लखन बान धनु धरे बनाई। आपु चढ़े प्रभु आयसु पाई ॥
बिकल बिलोकि मोहि रघुबीरा। बोले मधुर बचन धरि धीरा ॥ तात प्रनामु तात सन कहेहु। बार बार पद पंकज गहेहू ॥
करबि पायँ परि बिनय बहोरी। तात करिअ जनि चिंता मोरी ॥ बन मग मंगल कुसल हमारें। कृपा अनुग्रह पुन्य तुम्हारें ॥
Chanda / छन्द
छं. तुम्हरे अनुग्रह तात कानन जात सब सुखु पाइहौं। प्रतिपालि आयसु कुसल देखन पाय पुनि फिरि आइहौं ॥ जननीं सकल परितोषि परि परि पायँ करि बिनती घनी। तुलसी करेहु सोइ जतनु जेहिं कुसली रहहिं कोसल धनी ॥
Sortha / सोरठा
सो. गुर सन कहब सँदेसु बार बार पद पदुम गहि। करब सोइ उपदेसु जेहिं न सोच मोहि अवधपति ॥ १५१ ॥
Chaupai / चोपाई
पुरजन परिजन सकल निहोरी। तात सुनाएहु बिनती मोरी ॥ सोइ सब भाँति मोर हितकारी। जातें रह नरनाहु सुखारी ॥
कहब सँदेसु भरत के आएँ। नीति न तजिअ राजपदु पाएँ ॥ पालेहु प्रजहि करम मन बानी। सीहु मातु सकल सम जानी ॥
ओर निबाहेहु भायप भाई। करि पितु मातु सुजन सेवकाई ॥ तात भाँति तेहि राखब राऊ। सोच मोर जेहिं करै न काऊ ॥
लखन कहे कछु बचन कठोरा। बरजि राम पुनि मोहि निहोरा ॥ बार बार निज सपथ देवाई। कहबि न तात लखन लरिकाई ॥
Doha / दोहा
दो. कहि प्रनाम कछु कहन लिय सिय भइ सिथिल सनेह। थकित बचन लोचन सजल पुलक पल्लवित देह ॥ १५२ ॥
Chaupai / चोपाई
तेहि अवसर रघुबर रूख पाई। केवट पारहि नाव चलाई ॥ रघुकुलतिलक चले एहि भाँती। देखउँ ठाढ़ कुलिस धरि छाती ॥
मैं आपन किमि कहौं कलेसू। जिअत फिरेउँ लेइ राम सँदेसू ॥ अस कहि सचिव बचन रहि गयऊ। हानि गलानि सोच बस भयऊ ॥
सुत बचन सुनतहिं नरनाहू। परेउ धरनि उर दारुन दाहू ॥ तलफत बिषम मोह मन मापा। माजा मनहुँ मीन कहुँ ब्यापा ॥
करि बिलाप सब रोवहिं रानी। महा बिपति किमि जाइ बखानी ॥ सुनि बिलाप दुखहू दुखु लागा। धीरजहू कर धीरजु भागा ॥
Doha / दोहा
दो. भयउ कोलाहलु अवध अति सुनि नृप राउर सोरु। बिपुल बिहग बन परेउ निसि मानहुँ कुलिस कठोरु ॥ १५३ ॥
Chaupai / चोपाई
प्रान कंठगत भयउ भुआलू। मनि बिहीन जनु ब्याकुल ब्यालू ॥ इद्रीं सकल बिकल भइँ भारी। जनु सर सरसिज बनु बिनु बारी ॥
कौसल्याँ नृपु दीख मलाना। रबिकुल रबि अँथयउ जियँ जाना।उर धरि धीर राम महतारी। बोली बचन समय अनुसारी ॥
नाथ समुझि मन करिअ बिचारू। राम बियोग पयोधि अपारू ॥ करनधार तुम्ह अवध जहाजू। चढ़ेउ सकल प्रिय पथिक समाजू ॥
धीरजु धरिअ त पाइअ पारू। नाहिं त बूड़िहि सबु परिवारू ॥ जौं जियँ धरिअ बिनय पिय मोरी। रामु लखनु सिय मिलहिं बहोरी ॥
Doha / दोहा
दो. -प्रिया बचन मृदु सुनत नृपु चितयउ आँखि उघारि। तलफत मीन मलीन जनु सींचत सीतल बारि ॥ १५४ ॥
Chaupai / चोपाई
धरि धीरजु उठी बैठ भुआलू। कहु सुमंत्र कहँ राम कृपालू ॥ कहाँ लखनु कहँ रामु सनेही। कहँ प्रिय पुत्रबधू बैदेही ॥
बिलपत राउ बिकल बहु भाँती। भइ जुग सरिस सिराति न राती ॥ तापस अंध साप सुधि आई। कौसल्यहि सब कथा सुनाई ॥
भयउ बिकल बरनत इतिहासा। राम रहित धिग जीवन आसा ॥ सो तनु राखि करब मैं काहा। जेंहि न प्रेम पनु मोर निबाहा ॥
हा रघुनंदन प्रान पिरीते। तुम्ह बिनु जिअत बहुत दिन बीते ॥ हा जानकी लखन हा रघुबर। हा पितु हित चित चातक जलधर।
Doha / दोहा
दो. राम राम कहि राम कहि राम राम कहि राम। तनु परिहरि रघुबर बिरहँ राउ गयउ सुरधाम ॥ १५५ ॥
Chaupai / चोपाई
जिअन मरन फलु दसरथ पावा। अंड अनेक अमल जसु छावा ॥ जिअत राम बिधु बदनु निहारा। राम बिरह करि मरनु सँवारा ॥
सोक बिकल सब रोवहिं रानी। रूपु सील बलु तेजु बखानी ॥ करहिं बिलाप अनेक प्रकारा। परहीं भूमितल बारहिं बारा ॥
बिलपहिं बिकल दास अरु दासी। घर घर रुदनु करहिं पुरबासी ॥ अँथयउ आजु भानुकुल भानू। धरम अवधि गुन रूप निधानू ॥
गारीं सकल कैकइहि देहीं। नयन बिहीन कीन्ह जग जेहीं ॥ एहि बिधि बिलपत रैनि बिहानी। आए सकल महामुनि ग्यानी ॥
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