ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Doha / दोहा
दो. तब बसिष्ठ मुनि समय सम कहि अनेक इतिहास। सोक नेवारेउ सबहि कर निज बिग्यान प्रकास ॥ १५६ ॥
Chaupai / चोपाई
तेल नाँव भरि नृप तनु राखा। दूत बोलाइ बहुरि अस भाषा ॥ धावहु बेगि भरत पहिं जाहू। नृप सुधि कतहुँ कहहु जनि काहू ॥
एतनेइ कहेहु भरत सन जाई। गुर बोलाई पठयउ दोउ भाई ॥ सुनि मुनि आयसु धावन धाए। चले बेग बर बाजि लजाए ॥
अनरथु अवध अरंभेउ जब तें। कुसगुन होहिं भरत कहुँ तब तें ॥ देखहिं राति भयानक सपना। जागि करहिं कटु कोटि कलपना ॥
बिप्र जेवाँइ देहिं दिन दाना। सिव अभिषेक करहिं बिधि नाना ॥ मागहिं हृदयँ महेस मनाई। कुसल मातु पितु परिजन भाई ॥
Doha / दोहा
दो. एहि बिधि सोचत भरत मन धावन पहुँचे आइ। गुर अनुसासन श्रवन सुनि चले गनेसु मनाइ ॥ १५७ ॥
Chaupai / चोपाई
चले समीर बेग हय हाँके। नाघत सरित सैल बन बाँके ॥ हृदयँ सोचु बड़ कछु न सोहाई। अस जानहिं जियँ जाउँ उड़ाई ॥
एक निमेष बरस सम जाई। एहि बिधि भरत नगर निअराई ॥ असगुन होहिं नगर पैठारा। रटहिं कुभाँति कुखेत करारा ॥
खर सिआर बोलहिं प्रतिकूला। सुनि सुनि होइ भरत मन सूला ॥ श्रीहत सर सरिता बन बागा। नगरु बिसेषि भयावनु लागा ॥
खग मृग हय गय जाहिं न जोए। राम बियोग कुरोग बिगोए ॥ नगर नारि नर निपट दुखारी। मनहुँ सबन्हि सब संपति हारी ॥
Doha / दोहा
दो. पुरजन मिलिहिं न कहहिं कछु गवँहिं जोहारहिं जाहिं। भरत कुसल पूँछि न सकहिं भय बिषाद मन माहिं ॥ १५८ ॥
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