Ram Charita Manas

Ayodhya-Kanda

King Shatrughana and Bharata arrive at Ayodhya and mourn over the death of King Dashratha.

ॐ श्री परमात्मने नमः


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ॐ श्री गणेशाय नमः

Chaupai / चोपाई

हाट बाट नहिं जाइ निहारी। जनु पुर दहँ दिसि लागि दवारी ॥ आवत सुत सुनि कैकयनंदिनि। हरषी रबिकुल जलरुह चंदिनि ॥

Chapter : 26 Number : 166

सजि आरती मुदित उठि धाई। द्वारेहिं भेंटि भवन लेइ आई ॥ भरत दुखित परिवारु निहारा। मानहुँ तुहिन बनज बनु मारा ॥

Chapter : 26 Number : 166

कैकेई हरषित एहि भाँति। मनहुँ मुदित दव लाइ किराती ॥ सुतहि ससोच देखि मनु मारें। पूँछति नैहर कुसल हमारें ॥

Chapter : 26 Number : 166

सकल कुसल कहि भरत सुनाई। पूँछी निज कुल कुसल भलाई ॥ कहु कहँ तात कहाँ सब माता। कहँ सिय राम लखन प्रिय भ्राता ॥

Chapter : 26 Number : 166

Doha / दोहा

दो. सुनि सुत बचन सनेहमय कपट नीर भरि नैन। भरत श्रवन मन सूल सम पापिनि बोली बैन ॥ १५९ ॥

Chapter : 26 Number : 167

Chaupai / चोपाई

तात बात मैं सकल सँवारी। भै मंथरा सहाय बिचारी ॥ कछुक काज बिधि बीच बिगारेउ। भूपति सुरपति पुर पगु धारेउ ॥

Chapter : 26 Number : 167

सुनत भरतु भए बिबस बिषादा। जनु सहमेउ करि केहरि नादा ॥ तात तात हा तात पुकारी। परे भूमितल ब्याकुल भारी ॥

Chapter : 26 Number : 167

चलत न देखन पायउँ तोही। तात न रामहि सौंपेहु मोही ॥ बहुरि धीर धरि उठे सँभारी। कहु पितु मरन हेतु महतारी ॥

Chapter : 26 Number : 167

सुनि सुत बचन कहति कैकेई। मरमु पाँछि जनु माहुर देई ॥ आदिहु तें सब आपनि करनी। कुटिल कठोर मुदित मन बरनी ॥

Chapter : 26 Number : 167

Doha / दोहा

दो. भरतहि बिसरेउ पितु मरन सुनत राम बन गौनु। हेतु अपनपउ जानि जियँ थकित रहे धरि मौनु ॥ १६० ॥

Chapter : 26 Number : 168

Chaupai / चोपाई

बिकल बिलोकि सुतहि समुझावति। मनहुँ जरे पर लोनु लगावति ॥ तात राउ नहिं सोचे जोगू। बिढ़इ सुकृत जसु कीन्हेउ भोगू ॥

Chapter : 26 Number : 168

जीवत सकल जनम फल पाए। अंत अमरपति सदन सिधाए ॥ अस अनुमानि सोच परिहरहू। सहित समाज राज पुर करहू ॥

Chapter : 26 Number : 168

सुनि सुठि सहमेउ राजकुमारू। पाकें छत जनु लाग अँगारू ॥ धीरज धरि भरि लेहिं उसासा। पापनि सबहि भाँति कुल नासा ॥

Chapter : 26 Number : 168

जौं पै कुरुचि रही अति तोही। जनमत काहे न मारे मोही ॥ पेड़ काटि तैं पालउ सींचा। मीन जिअन निति बारि उलीचा ॥

Chapter : 26 Number : 168

Doha / दोहा

दो. हंसबंसु दसरथु जनकु राम लखन से भाइ। जननी तूँ जननी भई बिधि सन कछु न बसाइ ॥ १६१ ॥

Chapter : 26 Number : 169

Chaupai / चोपाई

जब तैं कुमति कुमत जियँ ठयऊ। खंड खंड होइ ह्रदउ न गयऊ ॥ बर मागत मन भइ नहिं पीरा। गरि न जीह मुहँ परेउ न कीरा ॥

Chapter : 26 Number : 169

भूपँ प्रतीत तोरि किमि कीन्ही। मरन काल बिधि मति हरि लीन्ही ॥ बिधिहुँ न नारि हृदय गति जानी। सकल कपट अघ अवगुन खानी ॥

Chapter : 26 Number : 169

सरल सुसील धरम रत राऊ। सो किमि जानै तीय सुभाऊ ॥ अस को जीव जंतु जग माहीं। जेहि रघुनाथ प्रानप्रिय नाहीं ॥

Chapter : 26 Number : 169

भे अति अहित रामु तेउ तोही। को तू अहसि सत्य कहु मोही ॥ जो हसि सो हसि मुहँ मसि लाई। आँखि ओट उठि बैठहिं जाई ॥

Chapter : 26 Number : 169

Doha / दोहा

दो. राम बिरोधी हृदय तें प्रगट कीन्ह बिधि मोहि। मो समान को पातकी बादि कहउँ कछु तोहि ॥ १६२ ॥

Chapter : 26 Number : 170

Chaupai / चोपाई

सुनि सत्रुघुन मातु कुटिलाई। जरहिं गात रिस कछु न बसाई ॥ तेहि अवसर कुबरी तहँ आई। बसन बिभूषन बिबिध बनाई ॥

Chapter : 26 Number : 170

लखि रिस भरेउ लखन लघु भाई। बरत अनल घृत आहुति पाई ॥ हुमगि लात तकि कूबर मारा। परि मुह भर महि करत पुकारा ॥

Chapter : 26 Number : 170

कूबर टूटेउ फूट कपारू। दलित दसन मुख रुधिर प्रचारू ॥ आह दइअ मैं काह नसावा। करत नीक फलु अनइस पावा ॥

Chapter : 26 Number : 170

सुनि रिपुहन लखि नख सिख खोटी। लगे घसीटन धरि धरि झोंटी ॥ भरत दयानिधि दीन्हि छड़ाई। कौसल्या पहिं गे दोउ भाई ॥

Chapter : 26 Number : 170

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