ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Chaupai / चोपाई
हाट बाट नहिं जाइ निहारी। जनु पुर दहँ दिसि लागि दवारी ॥ आवत सुत सुनि कैकयनंदिनि। हरषी रबिकुल जलरुह चंदिनि ॥
सजि आरती मुदित उठि धाई। द्वारेहिं भेंटि भवन लेइ आई ॥ भरत दुखित परिवारु निहारा। मानहुँ तुहिन बनज बनु मारा ॥
कैकेई हरषित एहि भाँति। मनहुँ मुदित दव लाइ किराती ॥ सुतहि ससोच देखि मनु मारें। पूँछति नैहर कुसल हमारें ॥
सकल कुसल कहि भरत सुनाई। पूँछी निज कुल कुसल भलाई ॥ कहु कहँ तात कहाँ सब माता। कहँ सिय राम लखन प्रिय भ्राता ॥
Doha / दोहा
दो. सुनि सुत बचन सनेहमय कपट नीर भरि नैन। भरत श्रवन मन सूल सम पापिनि बोली बैन ॥ १५९ ॥
Chaupai / चोपाई
तात बात मैं सकल सँवारी। भै मंथरा सहाय बिचारी ॥ कछुक काज बिधि बीच बिगारेउ। भूपति सुरपति पुर पगु धारेउ ॥
सुनत भरतु भए बिबस बिषादा। जनु सहमेउ करि केहरि नादा ॥ तात तात हा तात पुकारी। परे भूमितल ब्याकुल भारी ॥
चलत न देखन पायउँ तोही। तात न रामहि सौंपेहु मोही ॥ बहुरि धीर धरि उठे सँभारी। कहु पितु मरन हेतु महतारी ॥
सुनि सुत बचन कहति कैकेई। मरमु पाँछि जनु माहुर देई ॥ आदिहु तें सब आपनि करनी। कुटिल कठोर मुदित मन बरनी ॥
Doha / दोहा
दो. भरतहि बिसरेउ पितु मरन सुनत राम बन गौनु। हेतु अपनपउ जानि जियँ थकित रहे धरि मौनु ॥ १६० ॥
Chaupai / चोपाई
बिकल बिलोकि सुतहि समुझावति। मनहुँ जरे पर लोनु लगावति ॥ तात राउ नहिं सोचे जोगू। बिढ़इ सुकृत जसु कीन्हेउ भोगू ॥
जीवत सकल जनम फल पाए। अंत अमरपति सदन सिधाए ॥ अस अनुमानि सोच परिहरहू। सहित समाज राज पुर करहू ॥
सुनि सुठि सहमेउ राजकुमारू। पाकें छत जनु लाग अँगारू ॥ धीरज धरि भरि लेहिं उसासा। पापनि सबहि भाँति कुल नासा ॥
जौं पै कुरुचि रही अति तोही। जनमत काहे न मारे मोही ॥ पेड़ काटि तैं पालउ सींचा। मीन जिअन निति बारि उलीचा ॥
Doha / दोहा
दो. हंसबंसु दसरथु जनकु राम लखन से भाइ। जननी तूँ जननी भई बिधि सन कछु न बसाइ ॥ १६१ ॥
Chaupai / चोपाई
जब तैं कुमति कुमत जियँ ठयऊ। खंड खंड होइ ह्रदउ न गयऊ ॥ बर मागत मन भइ नहिं पीरा। गरि न जीह मुहँ परेउ न कीरा ॥
भूपँ प्रतीत तोरि किमि कीन्ही। मरन काल बिधि मति हरि लीन्ही ॥ बिधिहुँ न नारि हृदय गति जानी। सकल कपट अघ अवगुन खानी ॥
सरल सुसील धरम रत राऊ। सो किमि जानै तीय सुभाऊ ॥ अस को जीव जंतु जग माहीं। जेहि रघुनाथ प्रानप्रिय नाहीं ॥
भे अति अहित रामु तेउ तोही। को तू अहसि सत्य कहु मोही ॥ जो हसि सो हसि मुहँ मसि लाई। आँखि ओट उठि बैठहिं जाई ॥
Doha / दोहा
दो. राम बिरोधी हृदय तें प्रगट कीन्ह बिधि मोहि। मो समान को पातकी बादि कहउँ कछु तोहि ॥ १६२ ॥
Chaupai / चोपाई
सुनि सत्रुघुन मातु कुटिलाई। जरहिं गात रिस कछु न बसाई ॥ तेहि अवसर कुबरी तहँ आई। बसन बिभूषन बिबिध बनाई ॥
लखि रिस भरेउ लखन लघु भाई। बरत अनल घृत आहुति पाई ॥ हुमगि लात तकि कूबर मारा। परि मुह भर महि करत पुकारा ॥
कूबर टूटेउ फूट कपारू। दलित दसन मुख रुधिर प्रचारू ॥ आह दइअ मैं काह नसावा। करत नीक फलु अनइस पावा ॥
सुनि रिपुहन लखि नख सिख खोटी। लगे घसीटन धरि धरि झोंटी ॥ भरत दयानिधि दीन्हि छड़ाई। कौसल्या पहिं गे दोउ भाई ॥
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