ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Doha / दोहा
दो. मलिन बसन बिबरन बिकल कृस सरीर दुख भार। कनक कलप बर बेलि बन मानहुँ हनी तुसार ॥ १६३ ॥
Chaupai / चोपाई
भरतहि देखि मातु उठि धाई। मुरुछित अवनि परी झइँ आई ॥ देखत भरतु बिकल भए भारी। परे चरन तन दसा बिसारी ॥
मातु तात कहँ देहि देखाई। कहँ सिय रामु लखनु दोउ भाई ॥ कैकइ कत जनमी जग माझा। जौं जनमि त भइ काहे न बाँझा ॥
कुल कलंकु जेहिं जनमेउ मोही। अपजस भाजन प्रियजन द्रोही ॥ को तिभुवन मोहि सरिस अभागी। गति असि तोरि मातु जेहि लागी ॥
पितु सुरपुर बन रघुबर केतू। मैं केवल सब अनरथ हेतु ॥ धिग मोहि भयउँ बेनु बन आगी। दुसह दाह दुख दूषन भागी ॥
Doha / दोहा
दो. मातु भरत के बचन मृदु सुनि सुनि उठी सँभारि ॥ लिए उठाइ लगाइ उर लोचन मोचति बारि ॥ १६४ ॥
Chaupai / चोपाई
सरल सुभाय मायँ हियँ लाए। अति हित मनहुँ राम फिरि आए ॥ भेंटेउ बहुरि लखन लघु भाई। सोकु सनेहु न हृदयँ समाई ॥
देखि सुभाउ कहत सबु कोई। राम मातु अस काहे न होई ॥ माताँ भरतु गोद बैठारे। आँसु पौंछि मृदु बचन उचारे ॥
अजहुँ बच्छ बलि धीरज धरहू। कुसमउ समुझि सोक परिहरहू ॥ जनि मानहु हियँ हानि गलानी। काल करम गति अघटित जानि ॥
काहुहि दोसु देहु जनि ताता। भा मोहि सब बिधि बाम बिधाता ॥ जो एतेहुँ दुख मोहि जिआवा। अजहुँ को जानइ का तेहि भावा ॥
Doha / दोहा
दो. पितु आयस भूषन बसन तात तजे रघुबीर। बिसमउ हरषु न हृदयँ कछु पहिरे बलकल चीर। १६५ ॥
Chaupai / चोपाई
मुख प्रसन्न मन रंग न रोषू। सब कर सब बिधि करि परितोषू ॥ चले बिपिन सुनि सिय सँग लागी। रहइ न राम चरन अनुरागी ॥
सुनतहिं लखनु चले उठि साथा। रहहिं न जतन किए रघुनाथा ॥ तब रघुपति सबही सिरु नाई। चले संग सिय अरु लघु भाई ॥
रामु लखनु सिय बनहि सिधाए। गइउँ न संग न प्रान पठाए ॥ यहु सबु भा इन्ह आँखिन्ह आगें। तउ न तजा तनु जीव अभागें ॥
मोहि न लाज निज नेहु निहारी। राम सरिस सुत मैं महतारी ॥ जिऐ मरै भल भूपति जाना। मोर हृदय सत कुलिस समाना ॥
Doha / दोहा
दो. कौसल्या के बचन सुनि भरत सहित रनिवास। ब्याकुल बिलपत राजगृह मानहुँ सोक नेवासु ॥ १६६ ॥
Chaupai / चोपाई
बिलपहिं बिकल भरत दोउ भाई। कौसल्याँ लिए हृदयँ लगाई ॥ भाँति अनेक भरतु समुझाए। कहि बिबेकमय बचन सुनाए ॥
भरतहुँ मातु सकल समुझाईं। कहि पुरान श्रुति कथा सुहाईं ॥ छल बिहीन सुचि सरल सुबानी। बोले भरत जोरि जुग पानी ॥
जे अघ मातु पिता सुत मारें। गाइ गोठ महिसुर पुर जारें ॥ जे अघ तिय बालक बध कीन्हें। मीत महीपति माहुर दीन्हें ॥
जे पातक उपपातक अहहीं। करम बचन मन भव कबि कहहीं ॥ ते पातक मोहि होहुँ बिधाता। जौं यहु होइ मोर मत माता ॥
Doha / दोहा
दो. जे परिहरि हरि हर चरन भजहिं भूतगन घोर। तेहि कइ गति मोहि देउ बिधि जौं जननी मत मोर ॥ १६७ ॥
Chaupai / चोपाई
बेचहिं बेदु धरमु दुहि लेहीं। पिसुन पराय पाप कहि देहीं ॥ कपटी कुटिल कलहप्रिय क्रोधी। बेद बिदूषक बिस्व बिरोधी ॥
लोभी लंपट लोलुपचारा। जे ताकहिं परधनु परदारा ॥ पावौं मैं तिन्ह के गति घोरा। जौं जननी यहु संमत मोरा ॥
जे नहिं साधुसंग अनुरागे। परमारथ पथ बिमुख अभागे ॥ जे न भजहिं हरि नरतनु पाई। जिन्हहि न हरि हर सुजसु सोहाई ॥
तजि श्रुतिपंथु बाम पथ चलहीं। बंचक बिरचि बेष जगु छलहीं ॥ तिन्ह कै गति मोहि संकर देऊ। जननी जौं यहु जानौं भेऊ ॥
Doha / दोहा
दो. मातु भरत के बचन सुनि साँचे सरल सुभायँ। कहति राम प्रिय तात तुम्ह सदा बचन मन कायँ ॥ १६८ ॥
Chaupai / चोपाई
राम प्रानहु तें प्रान तुम्हारे। तुम्ह रघुपतिहि प्रानहु तें प्यारे ॥ बिधु बिष चवै स्त्रवै हिमु आगी। होइ बारिचर बारि बिरागी ॥
भएँ ग्यानु बरु मिटै न मोहू। तुम्ह रामहि प्रतिकूल न होहू ॥ मत तुम्हार यहु जो जग कहहीं। सो सपनेहुँ सुख सुगति न लहहीं ॥
अस कहि मातु भरतु हियँ लाए। थन पय स्त्रवहिं नयन जल छाए ॥ करत बिलाप बहुत यहि भाँती। बैठेहिं बीति गइ सब राती ॥
बामदेउ बसिष्ठ तब आए। सचिव महाजन सकल बोलाए ॥ मुनि बहु भाँति भरत उपदेसे। कहि परमारथ बचन सुदेसे ॥
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