ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Doha / दोहा
दो. नामु मंथरा मंदमति चेरी कैकेइ केरि। अजस पेटारी ताहि करि गई गिरा मति फेरि ॥ १२ ॥
Chaupai / चोपाई
दीख मंथरा नगरु बनावा। मंजुल मंगल बाज बधावा ॥ पूछेसि लोगन्ह काह उछाहू। राम तिलकु सुनि भा उर दाहू ॥
करइ बिचारु कुबुद्धि कुजाती। होइ अकाजु कवनि बिधि राती ॥ देखि लागि मधु कुटिल किराती। जिमि गवँ तकइ लेउँ केहि भाँती ॥
भरत मातु पहिं गइ बिलखानी। का अनमनि हसि कह हँसि रानी ॥ ऊतरु देइ न लेइ उसासू। नारि चरित करि ढारइ आँसू ॥
हँसि कह रानि गालु बड़ तोरें। दीन्ह लखन सिख अस मन मोरें ॥ तबहुँ न बोल चेरि बड़ि पापिनि। छाड़इ स्वास कारि जनु साँपिनि ॥
Doha / दोहा
दो. सभय रानि कह कहसि किन कुसल रामु महिपालु। लखनु भरतु रिपुदमनु सुनि भा कुबरी उर सालु ॥ १३ ॥
Chaupai / चोपाई
कत सिख देइ हमहि कोउ माई। गालु करब केहि कर बलु पाई ॥ रामहि छाड़ि कुसल केहि आजू। जेहि जनेसु देइ जुबराजू ॥
भयउ कौसिलहि बिधि अति दाहिन। देखत गरब रहत उर नाहिन ॥ देखेहु कस न जाइ सब सोभा। जो अवलोकि मोर मनु छोभा ॥
पूतु बिदेस न सोचु तुम्हारें। जानति हहु बस नाहु हमारें ॥ नीद बहुत प्रिय सेज तुराई। लखहु न भूप कपट चतुराई ॥
सुनि प्रिय बचन मलिन मनु जानी। झुकी रानि अब रहु अरगानी ॥ पुनि अस कबहुँ कहसि घरफोरी। तब धरि जीभ कढ़ावउँ तोरी ॥
Doha / दोहा
दो. काने खोरे कूबरे कुटिल कुचाली जानि। तिय बिसेषि पुनि चेरि कहि भरतमातु मुसुकानि ॥ १४ ॥
Chaupai / चोपाई
प्रियबादिनि सिख दीन्हिउँ तोही। सपनेहुँ तो पर कोपु न मोही ॥ सुदिनु सुमंगल दायकु सोई। तोर कहा फुर जेहि दिन होई ॥
जेठ स्वामि सेवक लघु भाई। यह दिनकर कुल रीति सुहाई ॥ राम तिलकु जौं साँचेहुँ काली। देउँ मागु मन भावत आली ॥
कौसल्या सम सब महतारी। रामहि सहज सुभायँ पिआरी ॥ मो पर करहिं सनेहु बिसेषी। मैं करि प्रीति परीछा देखी ॥
जौं बिधि जनमु देइ करि छोहू। होहुँ राम सिय पूत पुतोहू ॥ प्रान तें अधिक रामु प्रिय मोरें। तिन्ह कें तिलक छोभु कस तोरें ॥
Doha / दोहा
दो. भरत सपथ तोहि सत्य कहु परिहरि कपट दुराउ। हरष समय बिसमउ करसि कारन मोहि सुनाउ ॥ १५ ॥
Chaupai / चोपाई
एकहिं बार आस सब पूजी। अब कछु कहब जीभ करि दूजी ॥ फोरै जोगु कपारु अभागा। भलेउ कहत दुख रउरेहि लागा ॥
कहहिं झूठि फुरि बात बनाई। ते प्रिय तुम्हहि करुइ मैं माई ॥ हमहुँ कहबि अब ठकुरसोहाती। नाहिं त मौन रहब दिनु राती ॥
करि कुरूप बिधि परबस कीन्हा। बवा सो लुनिअ लहिअ जो दीन्हा ॥ कोउ नृप होउ हमहि का हानी। चेरि छाड़ि अब होब कि रानी ॥
जारै जोगु सुभाउ हमारा। अनभल देखि न जाइ तुम्हारा ॥ तातें कछुक बात अनुसारी। छमिअ देबि बड़ि चूक हमारी ॥
Doha / दोहा
दो. गूढ़ कपट प्रिय बचन सुनि तीय अधरबुधि रानि। सुरमाया बस बैरिनिहि सुह्द जानि पतिआनि ॥ १६ ॥
Chaupai / चोपाई
सादर पुनि पुनि पूँछति ओही। सबरी गान मृगी जनु मोही ॥ तसि मति फिरी अहइ जसि भाबी। रहसी चेरि घात जनु फाबी ॥
तुम्ह पूँछहु मैं कहत डेराऊँ। धरेउ मोर घरफोरी नाऊँ ॥ सजि प्रतीति बहुबिधि गढ़ि छोली। अवध साढ़साती तब बोली ॥
प्रिय सिय रामु कहा तुम्ह रानी। रामहि तुम्ह प्रिय सो फुरि बानी ॥ रहा प्रथम अब ते दिन बीते। समउ फिरें रिपु होहिं पिंरीते ॥
भानु कमल कुल पोषनिहारा। बिनु जल जारि करइ सोइ छारा ॥ जरि तुम्हारि चह सवति उखारी। रूँधहु करि उपाउ बर बारी ॥
Doha / दोहा
दो. तुम्हहि न सोचु सोहाग बल निज बस जानहु राउ। मन मलीन मुह मीठ नृप राउर सरल सुभाउ ॥ १७ ॥
Chaupai / चोपाई
चतुर गँभीर राम महतारी। बीचु पाइ निज बात सँवारी ॥ पठए भरतु भूप ननिअउरें। राम मातु मत जानव रउरें ॥
सेवहिं सकल सवति मोहि नीकें। गरबित भरत मातु बल पी कें ॥ सालु तुम्हार कौसिलहि माई। कपट चतुर नहिं होइ जनाई ॥
राजहि तुम्ह पर प्रेमु बिसेषी। सवति सुभाउ सकइ नहिं देखी ॥ रची प्रंपचु भूपहि अपनाई। राम तिलक हित लगन धराई ॥
यह कुल उचित राम कहुँ टीका। सबहि सोहाइ मोहि सुठि नीका ॥ आगिलि बात समुझि डरु मोही। देउ दैउ फिरि सो फलु ओही ॥
Doha / दोहा
दो. रचि पचि कोटिक कुटिलपन कीन्हेसि कपट प्रबोधु ॥ कहिसि कथा सत सवति कै जेहि बिधि बाढ़ बिरोधु ॥ १८ ॥
Chaupai / चोपाई
भावी बस प्रतीति उर आई। पूँछ रानि पुनि सपथ देवाई ॥ का पूछहुँ तुम्ह अबहुँ न जाना। निज हित अनहित पसु पहिचाना ॥
भयउ पाखु दिन सजत समाजू। तुम्ह पाई सुधि मोहि सन आजू ॥ खाइअ पहिरिअ राज तुम्हारें। सत्य कहें नहिं दोषु हमारें ॥
जौं असत्य कछु कहब बनाई। तौ बिधि देइहि हमहि सजाई ॥ रामहि तिलक कालि जौं भयऊ।þ तुम्ह कहुँ बिपति बीजु बिधि बयऊ ॥
रेख खँचाइ कहउँ बलु भाषी। भामिनि भइहु दूध कइ माखी ॥ जौं सुत सहित करहु सेवकाई। तौ घर रहहु न आन उपाई ॥
Doha / दोहा
दो. कद्रूँ बिनतहि दीन्ह दुखु तुम्हहि कौसिलाँ देब। भरतु बंदिगृह सेइहहिं लखनु राम के नेब ॥ १९ ॥
Chaupai / चोपाई
कैकयसुता सुनत कटु बानी। कहि न सकइ कछु सहमि सुखानी ॥ तन पसेउ कदली जिमि काँपी। कुबरीं दसन जीभ तब चाँपी ॥
कहि कहि कोटिक कपट कहानी। धीरजु धरहु प्रबोधिसि रानी ॥ फिरा करमु प्रिय लागि कुचाली। बकिहि सराहइ मानि मराली ॥
सुनु मंथरा बात फुरि तोरी। दहिनि आँखि नित फरकइ मोरी ॥ दिन प्रति देखउँ राति कुसपने। कहउँ न तोहि मोह बस अपने ॥
काह करौ सखि सूध सुभाऊ। दाहिन बाम न जानउँ काऊ ॥
Doha / दोहा
दो. अपने चलत न आजु लगि अनभल काहुक कीन्ह। केहिं अघ एकहि बार मोहि दैअँ दुसह दुखु दीन्ह ॥ २० ॥
Chaupai / चोपाई
नैहर जनमु भरब बरु जाइ। जिअत न करबि सवति सेवकाई ॥ अरि बस दैउ जिआवत जाही। मरनु नीक तेहि जीवन चाही ॥
दीन बचन कह बहुबिधि रानी। सुनि कुबरीं तियमाया ठानी ॥ अस कस कहहु मानि मन ऊना। सुखु सोहागु तुम्ह कहुँ दिन दूना ॥
जेहिं राउर अति अनभल ताका। सोइ पाइहि यहु फलु परिपाका ॥ जब तें कुमत सुना मैं स्वामिनि। भूख न बासर नींद न जामिनि ॥
पूँछेउ गुनिन्ह रेख तिन्ह खाँची। भरत भुआल होहिं यह साँची ॥ भामिनि करहु त कहौं उपाऊ। है तुम्हरीं सेवा बस राऊ ॥
Doha / दोहा
दो. परउँ कूप तुअ बचन पर सकउँ पूत पति त्यागि। कहसि मोर दुखु देखि बड़ कस न करब हित लागि ॥ २१ ॥
Chaupai / चोपाई
कुबरीं करि कबुली कैकेई। कपट छुरी उर पाहन टेई ॥ लखइ न रानि निकट दुखु कैंसे। चरइ हरित तिन बलिपसु जैसें ॥
सुनत बात मृदु अंत कठोरी। देति मनहुँ मधु माहुर घोरी ॥ कहइ चेरि सुधि अहइ कि नाही। स्वामिनि कहिहु कथा मोहि पाहीं ॥
दुइ बरदान भूप सन थाती। मागहु आजु जुड़ावहु छाती ॥ सुतहि राजु रामहि बनवासू। देहु लेहु सब सवति हुलासु ॥
भूपति राम सपथ जब करई। तब मागेहु जेहिं बचनु न टरई ॥ होइ अकाजु आजु निसि बीतें। बचनु मोर प्रिय मानेहु जी तें ॥
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