ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Chaupai / चोपाई
सई तीर बसि चले बिहाने। सृंगबेरपुर सब निअराने ॥ समाचार सब सुने निषादा। हृदयँ बिचार करइ सबिषादा ॥
कारन कवन भरतु बन जाहीं। है कछु कपट भाउ मन माहीं ॥ जौं पै जियँ न होति कुटिलाई। तौ कत लीन्ह संग कटकाई ॥
जानहिं सानुज रामहि मारी। करउँ अकंटक राजु सुखारी ॥ भरत न राजनीति उर आनी। तब कलंकु अब जीवन हानी ॥
सकल सुरासुर जुरहिं जुझारा। रामहि समर न जीतनिहारा ॥ का आचरजु भरतु अस करहीं। नहिं बिष बेलि अमिअ फल फरहीं ॥
Doha / दोहा
दो. अस बिचारि गुहँ ग्याति सन कहेउ सजग सब होहु। हथवाँसहु बोरहु तरनि कीजिअ घाटारोहु ॥ १८९ ॥
Chaupai / चोपाई
होहु सँजोइल रोकहु घाटा। ठाटहु सकल मरै के ठाटा ॥ सनमुख लोह भरत सन लेऊँ। जिअत न सुरसरि उतरन देऊँ ॥
समर मरनु पुनि सुरसरि तीरा। राम काजु छनभंगु सरीरा ॥ भरत भाइ नृपु मै जन नीचू। बड़ें भाग असि पाइअ मीचू ॥
स्वामि काज करिहउँ रन रारी। जस धवलिहउँ भुवन दस चारी ॥ तजउँ प्रान रघुनाथ निहोरें। दुहूँ हाथ मुद मोदक मोरें ॥
साधु समाज न जाकर लेखा। राम भगत महुँ जासु न रेखा ॥ जायँ जिअत जग सो महि भारू। जननी जौबन बिटप कुठारू ॥
Doha / दोहा
दो. बिगत बिषाद निषादपति सबहि बढ़ाइ उछाहु। सुमिरि राम मागेउ तुरत तरकस धनुष सनाहु ॥ १९० ॥
Chaupai / चोपाई
बेगहु भाइहु सजहु सँजोऊ। सुनि रजाइ कदराइ न कोऊ ॥ भलेहिं नाथ सब कहहिं सहरषा। एकहिं एक बढ़ावइ करषा ॥
चले निषाद जोहारि जोहारी। सूर सकल रन रूचइ रारी ॥ सुमिरि राम पद पंकज पनहीं। भाथीं बाँधि चढ़ाइन्हि धनहीं ॥
अँगरी पहिरि कूँड़ि सिर धरहीं। फरसा बाँस सेल सम करहीं ॥ एक कुसल अति ओड़न खाँड़े। कूदहि गगन मनहुँ छिति छाँड़े ॥
निज निज साजु समाजु बनाई। गुह राउतहि जोहारे जाई ॥ देखि सुभट सब लायक जाने। लै लै नाम सकल सनमाने ॥
Doha / दोहा
दो. भाइहु लावहु धोख जनि आजु काज बड़ मोहि। सुनि सरोष बोले सुभट बीर अधीर न होहि ॥ १९१ ॥
Chaupai / चोपाई
राम प्रताप नाथ बल तोरे। करहिं कटकु बिनु भट बिनु घोरे ॥ जीवत पाउ न पाछें धरहीं। रुंड मुंडमय मेदिनि करहीं ॥
दीख निषादनाथ भल टोलू। कहेउ बजाउ जुझाऊ ढोलू ॥ एतना कहत छींक भइ बाँए। कहेउ सगुनिअन्ह खेत सुहाए ॥
बूढ़ु एकु कह सगुन बिचारी। भरतहि मिलिअ न होइहि रारी ॥ रामहि भरतु मनावन जाहीं। सगुन कहइ अस बिग्रहु नाहीं ॥
सुनि गुह कहइ नीक कह बूढ़ा। सहसा करि पछिताहिं बिमूढ़ा ॥ भरत सुभाउ सीलु बिनु बूझें। बड़ि हित हानि जानि बिनु जूझें ॥
Doha / दोहा
दो. गहहु घाट भट समिटि सब लेउँ मरम मिलि जाइ। बूझि मित्र अरि मध्य गति तस तब करिहउँ आइ ॥ १९२ ॥
Chaupai / चोपाई
लखन सनेहु सुभायँ सुहाएँ। बैरु प्रीति नहिं दुरइँ दुराएँ ॥ अस कहि भेंट सँजोवन लागे। कंद मूल फल खग मृग मागे ॥
मीन पीन पाठीन पुराने। भरि भरि भार कहारन्ह आने ॥ मिलन साजु सजि मिलन सिधाए। मंगल मूल सगुन सुभ पाए ॥
देखि दूरि तें कहि निज नामू। कीन्ह मुनीसहि दंड प्रनामू ॥ जानि रामप्रिय दीन्हि असीसा। भरतहि कहेउ बुझाइ मुनीसा ॥
राम सखा सुनि संदनु त्यागा। चले उतरि उमगत अनुरागा ॥ गाउँ जाति गुहँ नाउँ सुनाई। कीन्ह जोहारु माथ महि लाई ॥
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