ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Doha / दोहा
दो. करत दंडवत देखि तेहि भरत लीन्ह उर लाइ। मनहुँ लखन सन भेंट भइ प्रेम न हृदयँ समाइ ॥ १९३ ॥
Chaupai / चोपाई
भेंटत भरतु ताहि अति प्रीती। लोग सिहाहिं प्रेम कै रीती ॥ धन्य धन्य धुनि मंगल मूला। सुर सराहि तेहि बरिसहिं फूला ॥
लोक बेद सब भाँतिहिं नीचा। जासु छाँह छुइ लेइअ सींचा ॥ तेहि भरि अंक राम लघु भ्राता। मिलत पुलक परिपूरित गाता ॥
राम राम कहि जे जमुहाहीं। तिन्हहि न पाप पुंज समुहाहीं ॥ यह तौ राम लाइ उर लीन्हा। कुल समेत जगु पावन कीन्हा ॥
करमनास जलु सुरसरि परई। तेहि को कहहु सीस नहिं धरई ॥ उलटा नामु जपत जगु जाना। बालमीकि भए ब्रह्म समाना ॥
Doha / दोहा
दो. स्वपच सबर खस जमन जड़ पावँर कोल किरात। रामु कहत पावन परम होत भुवन बिख्यात ॥ १९४ ॥
Chaupai / चोपाई
नहिं अचिरजु जुग जुग चलि आई। केहि न दीन्हि रघुबीर बड़ाई ॥ राम नाम महिमा सुर कहहीं। सुनि सुनि अवधलोग सुखु लहहीं ॥
रामसखहि मिलि भरत सप्रेमा। पूँछी कुसल सुमंगल खेमा ॥ देखि भरत कर सील सनेहू। भा निषाद तेहि समय बिदेहू ॥
सकुच सनेहु मोदु मन बाढ़ा। भरतहि चितवत एकटक ठाढ़ा ॥ धरि धीरजु पद बंदि बहोरी। बिनय सप्रेम करत कर जोरी ॥
कुसल मूल पद पंकज पेखी। मैं तिहुँ काल कुसल निज लेखी ॥ अब प्रभु परम अनुग्रह तोरें। सहित कोटि कुल मंगल मोरें ॥
Doha / दोहा
दो. समुझि मोरि करतूति कुलु प्रभु महिमा जियँ जोइ। जो न भजइ रघुबीर पद जग बिधि बंचित सोइ ॥ १९५ ॥
Chaupai / चोपाई
कपटी कायर कुमति कुजाती। लोक बेद बाहेर सब भाँती ॥ राम कीन्ह आपन जबही तें। भयउँ भुवन भूषन तबही तें ॥
देखि प्रीति सुनि बिनय सुहाई। मिलेउ बहोरि भरत लघु भाई ॥ कहि निषाद निज नाम सुबानीं। सादर सकल जोहारीं रानीं ॥
जानि लखन सम देहिं असीसा। जिअहु सुखी सय लाख बरीसा ॥ निरखि निषादु नगर नर नारी। भए सुखी जनु लखनु निहारी ॥
कहहिं लहेउ एहिं जीवन लाहू। भेंटेउ रामभद्र भरि बाहू ॥ सुनि निषादु निज भाग बड़ाई। प्रमुदित मन लइ चलेउ लेवाई ॥
Doha / दोहा
दो. सनकारे सेवक सकल चले स्वामि रुख पाइ। घर तरु तर सर बाग बन बास बनाएन्हि जाइ ॥ १९६ ॥
Chaupai / चोपाई
सृंगबेरपुर भरत दीख जब। भे सनेहँ सब अंग सिथिल तब ॥ सोहत दिएँ निषादहि लागू। जनु तनु धरें बिनय अनुरागू ॥
एहि बिधि भरत सेनु सबु संगा। दीखि जाइ जग पावनि गंगा ॥ रामघाट कहँ कीन्ह प्रनामू। भा मनु मगनु मिले जनु रामू ॥
करहिं प्रनाम नगर नर नारी। मुदित ब्रह्ममय बारि निहारी ॥ करि मज्जनु मागहिं कर जोरी। रामचंद्र पद प्रीति न थोरी ॥
भरत कहेउ सुरसरि तव रेनू। सकल सुखद सेवक सुरधेनू ॥ जोरि पानि बर मागउँ एहू। सीय राम पद सहज सनेहू ॥
Doha / दोहा
दो. एहि बिधि मज्जनु भरतु करि गुर अनुसासन पाइ। मातु नहानीं जानि सब डेरा चले लवाइ ॥ १९७ ॥
Chaupai / चोपाई
जहँ तहँ लोगन्ह डेरा कीन्हा। भरत सोधु सबही कर लीन्हा ॥ सुर सेवा करि आयसु पाई। राम मातु पहिं गे दोउ भाई ॥
चरन चाँपि कहि कहि मृदु बानी। जननीं सकल भरत सनमानी ॥ भाइहि सौंपि मातु सेवकाई। आपु निषादहि लीन्ह बोलाई ॥
चले सखा कर सों कर जोरें। सिथिल सरीर सनेह न थोरें ॥ पूँछत सखहि सो ठाउँ देखाऊ। नेकु नयन मन जरनि जुड़ाऊ ॥
जहँ सिय रामु लखनु निसि सोए। कहत भरे जल लोचन कोए ॥ भरत बचन सुनि भयउ बिषादू। तुरत तहाँ लइ गयउ निषादू ॥
Doha / दोहा
दो. जहँ सिंसुपा पुनीत तर रघुबर किय बिश्रामु। अति सनेहँ सादर भरत कीन्हेउ दंड प्रनामु ॥ १९८ ॥
Chaupai / चोपाई
कुस साँथरीíनिहारि सुहाई। कीन्ह प्रनामु प्रदच्छिन जाई ॥ चरन रेख रज आँखिन्ह लाई। बनइ न कहत प्रीति अधिकाई ॥
कनक बिंदु दुइ चारिक देखे। राखे सीस सीय सम लेखे ॥ सजल बिलोचन हृदयँ गलानी। कहत सखा सन बचन सुबानी ॥
श्रीहत सीय बिरहँ दुतिहीना। जथा अवध नर नारि बिलीना ॥ पिता जनक देउँ पटतर केही। करतल भोगु जोगु जग जेही ॥
ससुर भानुकुल भानु भुआलू। जेहि सिहात अमरावतिपालू ॥ प्राननाथु रघुनाथ गोसाई। जो बड़ होत सो राम बड़ाई ॥
Doha / दोहा
दो. पति देवता सुतीय मनि सीय साँथरी देखि। बिहरत ह्रदउ न हहरि हर पबि तें कठिन बिसेषि ॥ १९९ ॥
Chaupai / चोपाई
लालन जोगु लखन लघु लोने। भे न भाइ अस अहहिं न होने ॥ पुरजन प्रिय पितु मातु दुलारे। सिय रघुबरहि प्रानपिआरे ॥
मृदु मूरति सुकुमार सुभाऊ। तात बाउ तन लाग न काऊ ॥ ते बन सहहिं बिपति सब भाँती। निदरे कोटि कुलिस एहिं छाती ॥
राम जनमि जगु कीन्ह उजागर। रूप सील सुख सब गुन सागर ॥ पुरजन परिजन गुर पितु माता। राम सुभाउ सबहि सुखदाता ॥
बैरिउ राम बड़ाई करहीं। बोलनि मिलनि बिनय मन हरहीं ॥ सारद कोटि कोटि सत सेषा। करि न सकहिं प्रभु गुन गन लेखा ॥
Doha / दोहा
दो. सुखस्वरुप रघुबंसमनि मंगल मोद निधान। ते सोवत कुस डासि महि बिधि गति अति बलवान ॥ २०० ॥
Chaupai / चोपाई
राम सुना दुखु कान न काऊ। जीवनतरु जिमि जोगवइ राऊ ॥ पलक नयन फनि मनि जेहि भाँती। जोगवहिं जननि सकल दिन राती ॥
ते अब फिरत बिपिन पदचारी। कंद मूल फल फूल अहारी ॥ धिग कैकेई अमंगल मूला। भइसि प्रान प्रियतम प्रतिकूला ॥
मैं धिग धिग अघ उदधि अभागी। सबु उतपातु भयउ जेहि लागी ॥ कुल कलंकु करि सृजेउ बिधाताँ। साइँदोह मोहि कीन्ह कुमाताँ ॥
सुनि सप्रेम समुझाव निषादू। नाथ करिअ कत बादि बिषादू ॥ राम तुम्हहि प्रिय तुम्ह प्रिय रामहि। यह निरजोसु दोसु बिधि बामहि ॥
Chanda / छन्द
छं. बिधि बाम की करनी कठिन जेंहिं मातु कीन्ही बावरी। तेहि राति पुनि पुनि करहिं प्रभु सादर सरहना रावरी ॥ तुलसी न तुम्ह सो राम प्रीतमु कहतु हौं सौहें किएँ। परिनाम मंगल जानि अपने आनिए धीरजु हिएँ ॥
Sortha / सोरठा
सो. अंतरजामी रामु सकुच सप्रेम कृपायतन। चलिअ करिअ बिश्रामु यह बिचारि दृढ़ आनि मन ॥ २०१ ॥
Chaupai / चोपाई
सखा बचन सुनि उर धरि धीरा। बास चले सुमिरत रघुबीरा ॥ यह सुधि पाइ नगर नर नारी। चले बिलोकन आरत भारी ॥
परदखिना करि करहिं प्रनामा। देहिं कैकइहि खोरि निकामा ॥ भरी भरि बारि बिलोचन लेंहीं। बाम बिधाताहि दूषन देहीं ॥
एक सराहहिं भरत सनेहू। कोउ कह नृपति निबाहेउ नेहू ॥ निंदहिं आपु सराहि निषादहि। को कहि सकइ बिमोह बिषादहि ॥
एहि बिधि राति लोगु सबु जागा। भा भिनुसार गुदारा लागा ॥ गुरहि सुनावँ चढ़ाइ सुहाईं। नईं नाव सब मातु चढ़ाईं ॥
दंड चारि महँ भा सबु पारा। उतरि भरत तब सबहि सँभारा ॥
Doha / दोहा
दो. प्रातक्रिया करि मातु पद बंदि गुरहि सिरु नाइ। आगें किए निषाद गन दीन्हेउ कटकु चलाइ ॥ २०२ ॥
Chaupai / चोपाई
कियउ निषादनाथु अगुआईं। मातु पालकीं सकल चलाईं ॥ साथ बोलाइ भाइ लघु दीन्हा। बिप्रन्ह सहित गवनु गुर कीन्हा ॥
आपु सुरसरिहि कीन्ह प्रनामू। सुमिरे लखन सहित सिय रामू ॥ गवने भरत पयोदेहिं पाए। कोतल संग जाहिं डोरिआए ॥
कहहिं सुसेवक बारहिं बारा। होइअ नाथ अस्व असवारा ॥ रामु पयोदेहि पायँ सिधाए। हम कहँ रथ गज बाजि बनाए ॥
सिर भर जाउँ उचित अस मोरा। सब तें सेवक धरमु कठोरा ॥ देखि भरत गति सुनि मृदु बानी। सब सेवक गन गरहिं गलानी ॥
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