Ram Charita Manas

Ayodhya-Kanda

King Bharat-Nishad meeting and dialogue. People of ayodhya show great service and love towards them.

ॐ श्री परमात्मने नमः


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ॐ श्री गणेशाय नमः

Doha / दोहा

दो. करत दंडवत देखि तेहि भरत लीन्ह उर लाइ। मनहुँ लखन सन भेंट भइ प्रेम न हृदयँ समाइ ॥ १९३ ॥

Chapter : 31 Number : 203

Chaupai / चोपाई

भेंटत भरतु ताहि अति प्रीती। लोग सिहाहिं प्रेम कै रीती ॥ धन्य धन्य धुनि मंगल मूला। सुर सराहि तेहि बरिसहिं फूला ॥

Chapter : 31 Number : 203

लोक बेद सब भाँतिहिं नीचा। जासु छाँह छुइ लेइअ सींचा ॥ तेहि भरि अंक राम लघु भ्राता। मिलत पुलक परिपूरित गाता ॥

Chapter : 31 Number : 203

राम राम कहि जे जमुहाहीं। तिन्हहि न पाप पुंज समुहाहीं ॥ यह तौ राम लाइ उर लीन्हा। कुल समेत जगु पावन कीन्हा ॥

Chapter : 31 Number : 203

करमनास जलु सुरसरि परई। तेहि को कहहु सीस नहिं धरई ॥ उलटा नामु जपत जगु जाना। बालमीकि भए ब्रह्म समाना ॥

Chapter : 31 Number : 203

Doha / दोहा

दो. स्वपच सबर खस जमन जड़ पावँर कोल किरात। रामु कहत पावन परम होत भुवन बिख्यात ॥ १९४ ॥

Chapter : 31 Number : 204

Chaupai / चोपाई

नहिं अचिरजु जुग जुग चलि आई। केहि न दीन्हि रघुबीर बड़ाई ॥ राम नाम महिमा सुर कहहीं। सुनि सुनि अवधलोग सुखु लहहीं ॥

Chapter : 31 Number : 204

रामसखहि मिलि भरत सप्रेमा। पूँछी कुसल सुमंगल खेमा ॥ देखि भरत कर सील सनेहू। भा निषाद तेहि समय बिदेहू ॥

Chapter : 31 Number : 204

सकुच सनेहु मोदु मन बाढ़ा। भरतहि चितवत एकटक ठाढ़ा ॥ धरि धीरजु पद बंदि बहोरी। बिनय सप्रेम करत कर जोरी ॥

Chapter : 31 Number : 204

कुसल मूल पद पंकज पेखी। मैं तिहुँ काल कुसल निज लेखी ॥ अब प्रभु परम अनुग्रह तोरें। सहित कोटि कुल मंगल मोरें ॥

Chapter : 31 Number : 204

Doha / दोहा

दो. समुझि मोरि करतूति कुलु प्रभु महिमा जियँ जोइ। जो न भजइ रघुबीर पद जग बिधि बंचित सोइ ॥ १९५ ॥

Chapter : 31 Number : 205

Chaupai / चोपाई

कपटी कायर कुमति कुजाती। लोक बेद बाहेर सब भाँती ॥ राम कीन्ह आपन जबही तें। भयउँ भुवन भूषन तबही तें ॥

Chapter : 31 Number : 205

देखि प्रीति सुनि बिनय सुहाई। मिलेउ बहोरि भरत लघु भाई ॥ कहि निषाद निज नाम सुबानीं। सादर सकल जोहारीं रानीं ॥

Chapter : 31 Number : 205

जानि लखन सम देहिं असीसा। जिअहु सुखी सय लाख बरीसा ॥ निरखि निषादु नगर नर नारी। भए सुखी जनु लखनु निहारी ॥

Chapter : 31 Number : 205

कहहिं लहेउ एहिं जीवन लाहू। भेंटेउ रामभद्र भरि बाहू ॥ सुनि निषादु निज भाग बड़ाई। प्रमुदित मन लइ चलेउ लेवाई ॥

Chapter : 31 Number : 205

Doha / दोहा

दो. सनकारे सेवक सकल चले स्वामि रुख पाइ। घर तरु तर सर बाग बन बास बनाएन्हि जाइ ॥ १९६ ॥

Chapter : 31 Number : 206

Chaupai / चोपाई

सृंगबेरपुर भरत दीख जब। भे सनेहँ सब अंग सिथिल तब ॥ सोहत दिएँ निषादहि लागू। जनु तनु धरें बिनय अनुरागू ॥

Chapter : 31 Number : 206

एहि बिधि भरत सेनु सबु संगा। दीखि जाइ जग पावनि गंगा ॥ रामघाट कहँ कीन्ह प्रनामू। भा मनु मगनु मिले जनु रामू ॥

Chapter : 31 Number : 206

करहिं प्रनाम नगर नर नारी। मुदित ब्रह्ममय बारि निहारी ॥ करि मज्जनु मागहिं कर जोरी। रामचंद्र पद प्रीति न थोरी ॥

Chapter : 31 Number : 206

भरत कहेउ सुरसरि तव रेनू। सकल सुखद सेवक सुरधेनू ॥ जोरि पानि बर मागउँ एहू। सीय राम पद सहज सनेहू ॥

Chapter : 31 Number : 206

Doha / दोहा

दो. एहि बिधि मज्जनु भरतु करि गुर अनुसासन पाइ। मातु नहानीं जानि सब डेरा चले लवाइ ॥ १९७ ॥

Chapter : 31 Number : 207

Chaupai / चोपाई

जहँ तहँ लोगन्ह डेरा कीन्हा। भरत सोधु सबही कर लीन्हा ॥ सुर सेवा करि आयसु पाई। राम मातु पहिं गे दोउ भाई ॥

Chapter : 31 Number : 207

चरन चाँपि कहि कहि मृदु बानी। जननीं सकल भरत सनमानी ॥ भाइहि सौंपि मातु सेवकाई। आपु निषादहि लीन्ह बोलाई ॥

Chapter : 31 Number : 207

चले सखा कर सों कर जोरें। सिथिल सरीर सनेह न थोरें ॥ पूँछत सखहि सो ठाउँ देखाऊ। नेकु नयन मन जरनि जुड़ाऊ ॥

Chapter : 31 Number : 207

जहँ सिय रामु लखनु निसि सोए। कहत भरे जल लोचन कोए ॥ भरत बचन सुनि भयउ बिषादू। तुरत तहाँ लइ गयउ निषादू ॥

Chapter : 31 Number : 207

Doha / दोहा

दो. जहँ सिंसुपा पुनीत तर रघुबर किय बिश्रामु। अति सनेहँ सादर भरत कीन्हेउ दंड प्रनामु ॥ १९८ ॥

Chapter : 31 Number : 208

Chaupai / चोपाई

कुस साँथरीíनिहारि सुहाई। कीन्ह प्रनामु प्रदच्छिन जाई ॥ चरन रेख रज आँखिन्ह लाई। बनइ न कहत प्रीति अधिकाई ॥

Chapter : 31 Number : 208

कनक बिंदु दुइ चारिक देखे। राखे सीस सीय सम लेखे ॥ सजल बिलोचन हृदयँ गलानी। कहत सखा सन बचन सुबानी ॥

Chapter : 31 Number : 208

श्रीहत सीय बिरहँ दुतिहीना। जथा अवध नर नारि बिलीना ॥ पिता जनक देउँ पटतर केही। करतल भोगु जोगु जग जेही ॥

Chapter : 31 Number : 208

ससुर भानुकुल भानु भुआलू। जेहि सिहात अमरावतिपालू ॥ प्राननाथु रघुनाथ गोसाई। जो बड़ होत सो राम बड़ाई ॥

Chapter : 31 Number : 208

Doha / दोहा

दो. पति देवता सुतीय मनि सीय साँथरी देखि। बिहरत ह्रदउ न हहरि हर पबि तें कठिन बिसेषि ॥ १९९ ॥

Chapter : 31 Number : 209

Chaupai / चोपाई

लालन जोगु लखन लघु लोने। भे न भाइ अस अहहिं न होने ॥ पुरजन प्रिय पितु मातु दुलारे। सिय रघुबरहि प्रानपिआरे ॥

Chapter : 31 Number : 209

मृदु मूरति सुकुमार सुभाऊ। तात बाउ तन लाग न काऊ ॥ ते बन सहहिं बिपति सब भाँती। निदरे कोटि कुलिस एहिं छाती ॥

Chapter : 31 Number : 209

राम जनमि जगु कीन्ह उजागर। रूप सील सुख सब गुन सागर ॥ पुरजन परिजन गुर पितु माता। राम सुभाउ सबहि सुखदाता ॥

Chapter : 31 Number : 209

बैरिउ राम बड़ाई करहीं। बोलनि मिलनि बिनय मन हरहीं ॥ सारद कोटि कोटि सत सेषा। करि न सकहिं प्रभु गुन गन लेखा ॥

Chapter : 31 Number : 209

Doha / दोहा

दो. सुखस्वरुप रघुबंसमनि मंगल मोद निधान। ते सोवत कुस डासि महि बिधि गति अति बलवान ॥ २०० ॥

Chapter : 31 Number : 210

Chaupai / चोपाई

राम सुना दुखु कान न काऊ। जीवनतरु जिमि जोगवइ राऊ ॥ पलक नयन फनि मनि जेहि भाँती। जोगवहिं जननि सकल दिन राती ॥

Chapter : 31 Number : 210

ते अब फिरत बिपिन पदचारी। कंद मूल फल फूल अहारी ॥ धिग कैकेई अमंगल मूला। भइसि प्रान प्रियतम प्रतिकूला ॥

Chapter : 31 Number : 210

मैं धिग धिग अघ उदधि अभागी। सबु उतपातु भयउ जेहि लागी ॥ कुल कलंकु करि सृजेउ बिधाताँ। साइँदोह मोहि कीन्ह कुमाताँ ॥

Chapter : 31 Number : 210

सुनि सप्रेम समुझाव निषादू। नाथ करिअ कत बादि बिषादू ॥ राम तुम्हहि प्रिय तुम्ह प्रिय रामहि। यह निरजोसु दोसु बिधि बामहि ॥

Chapter : 31 Number : 210

Chanda / छन्द

छं. बिधि बाम की करनी कठिन जेंहिं मातु कीन्ही बावरी। तेहि राति पुनि पुनि करहिं प्रभु सादर सरहना रावरी ॥ तुलसी न तुम्ह सो राम प्रीतमु कहतु हौं सौहें किएँ। परिनाम मंगल जानि अपने आनिए धीरजु हिएँ ॥

Chapter : 31 Number : 211

Sortha / सोरठा

सो. अंतरजामी रामु सकुच सप्रेम कृपायतन। चलिअ करिअ बिश्रामु यह बिचारि दृढ़ आनि मन ॥ २०१ ॥

Chapter : 31 Number : 212

Chaupai / चोपाई

सखा बचन सुनि उर धरि धीरा। बास चले सुमिरत रघुबीरा ॥ यह सुधि पाइ नगर नर नारी। चले बिलोकन आरत भारी ॥

Chapter : 31 Number : 212

परदखिना करि करहिं प्रनामा। देहिं कैकइहि खोरि निकामा ॥ भरी भरि बारि बिलोचन लेंहीं। बाम बिधाताहि दूषन देहीं ॥

Chapter : 31 Number : 212

एक सराहहिं भरत सनेहू। कोउ कह नृपति निबाहेउ नेहू ॥ निंदहिं आपु सराहि निषादहि। को कहि सकइ बिमोह बिषादहि ॥

Chapter : 31 Number : 212

एहि बिधि राति लोगु सबु जागा। भा भिनुसार गुदारा लागा ॥ गुरहि सुनावँ चढ़ाइ सुहाईं। नईं नाव सब मातु चढ़ाईं ॥

Chapter : 31 Number : 212

दंड चारि महँ भा सबु पारा। उतरि भरत तब सबहि सँभारा ॥

Chapter : 31 Number : 212

Doha / दोहा

दो. प्रातक्रिया करि मातु पद बंदि गुरहि सिरु नाइ। आगें किए निषाद गन दीन्हेउ कटकु चलाइ ॥ २०२ ॥

Chapter : 31 Number : 213

Chaupai / चोपाई

कियउ निषादनाथु अगुआईं। मातु पालकीं सकल चलाईं ॥ साथ बोलाइ भाइ लघु दीन्हा। बिप्रन्ह सहित गवनु गुर कीन्हा ॥

Chapter : 31 Number : 213

आपु सुरसरिहि कीन्ह प्रनामू। सुमिरे लखन सहित सिय रामू ॥ गवने भरत पयोदेहिं पाए। कोतल संग जाहिं डोरिआए ॥

Chapter : 31 Number : 213

कहहिं सुसेवक बारहिं बारा। होइअ नाथ अस्व असवारा ॥ रामु पयोदेहि पायँ सिधाए। हम कहँ रथ गज बाजि बनाए ॥

Chapter : 31 Number : 213

सिर भर जाउँ उचित अस मोरा। सब तें सेवक धरमु कठोरा ॥ देखि भरत गति सुनि मृदु बानी। सब सेवक गन गरहिं गलानी ॥

Chapter : 31 Number : 213

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