ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Doha / दोहा
दो. रामु सँकोची प्रेम बस भरत सपेम पयोधि। बनी बात बेगरन चहति करिअ जतनु छलु सोधि ॥ २१७ ॥
Chaupai / चोपाई
बचन सुनत सुरगुरु मुसकाने। सहस्रनयन बिनु लोचन जाने ॥ मायापति सेवक सन माया। करइ त उलटि परइ सुरराया ॥
तब किछु कीन्ह राम रुख जानी। अब कुचालि करि होइहि हानी ॥ सुनु सुरेस रघुनाथ सुभाऊ। निज अपराध रिसाहिं न काऊ ॥
जो अपराधु भगत कर करई। राम रोष पावक सो जरई ॥ लोकहुँ बेद बिदित इतिहासा। यह महिमा जानहिं दुरबासा ॥
भरत सरिस को राम सनेही। जगु जप राम रामु जप जेही ॥
Doha / दोहा
दो. मनहुँ न आनिअ अमरपति रघुबर भगत अकाजु। अजसु लोक परलोक दुख दिन दिन सोक समाजु ॥ २१८ ॥
Chaupai / चोपाई
सुनु सुरेस उपदेसु हमारा। रामहि सेवकु परम पिआरा ॥ मानत सुखु सेवक सेवकाई। सेवक बैर बैरु अधिकाई ॥
जद्यपि सम नहिं राग न रोषू। गहहिं न पाप पूनु गुन दोषू ॥ करम प्रधान बिस्व करि राखा। जो जस करइ सो तस फलु चाखा ॥
तदपि करहिं सम बिषम बिहारा। भगत अभगत हृदय अनुसारा ॥ अगुन अलेप अमान एकरस। रामु सगुन भए भगत पेम बस ॥
राम सदा सेवक रुचि राखी। बेद पुरान साधु सुर साखी ॥ अस जियँ जानि तजहु कुटिलाई। करहु भरत पद प्रीति सुहाई ॥
Doha / दोहा
दो. राम भगत परहित निरत पर दुख दुखी दयाल। भगत सिरोमनि भरत तें जनि डरपहु सुरपाल ॥ २१९ ॥
Chaupai / चोपाई
सत्यसंध प्रभु सुर हितकारी। भरत राम आयस अनुसारी ॥ स्वारथ बिबस बिकल तुम्ह होहू। भरत दोसु नहिं राउर मोहू ॥
सुनि सुरबर सुरगुर बर बानी। भा प्रमोदु मन मिटी गलानी ॥ बरषि प्रसून हरषि सुरराऊ। लगे सराहन भरत सुभाऊ ॥
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