ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Chaupai / चोपाई
एहि बिधि भरत चले मग जाहीं। दसा देखि मुनि सिद्ध सिहाहीं ॥ जबहिं रामु कहि लेहिं उसासा। उमगत पेमु मनहँ चहु पासा ॥
द्रवहिं बचन सुनि कुलिस पषाना। पुरजन पेमु न जाइ बखाना ॥ बीच बास करि जमुनहिं आए। निरखि नीरु लोचन जल छाए ॥
Doha / दोहा
दो. रघुबर बरन बिलोकि बर बारि समेत समाज। होत मगन बारिधि बिरह चढ़े बिबेक जहाज ॥ २२० ॥
Chaupai / चोपाई
जमुन तीर तेहि दिन करि बासू। भयउ समय सम सबहि सुपासू ॥ रातहिं घाट घाट की तरनी। आईं अगनित जाहिं न बरनी ॥
प्रात पार भए एकहि खेंवाँ। तोषे रामसखा की सेवाँ ॥ चले नहाइ नदिहि सिर नाई। साथ निषादनाथ दोउ भाई ॥
आगें मुनिबर बाहन आछें। राजसमाज जाइ सबु पाछें ॥ तेहिं पाछें दोउ बंधु पयादें। भूषन बसन बेष सुठि सादें ॥
सेवक सुह्रद सचिवसुत साथा। सुमिरत लखनु सीय रघुनाथा ॥ जहँ जहँ राम बास बिश्रामा। तहँ तहँ करहिं सप्रेम प्रनामा ॥
Doha / दोहा
दो. मगबासी नर नारि सुनि धाम काम तजि धाइ। देखि सरूप सनेह सब मुदित जनम फलु पाइ ॥ २२१ ॥
Chaupai / चोपाई
कहहिं सपेम एक एक पाहीं। रामु लखनु सखि होहिं कि नाहीं ॥ बय बपु बरन रूप सोइ आली। सीलु सनेहु सरिस सम चाली ॥
बेषु न सो सखि सीय न संगा। आगें अनी चली चतुरंगा ॥ नहिं प्रसन्न मुख मानस खेदा। सखि संदेहु होइ एहिं भेदा ॥
तासु तरक तियगन मन मानी। कहहिं सकल तेहि सम न सयानी ॥ तेहि सराहि बानी फुरि पूजी। बोली मधुर बचन तिय दूजी ॥
कहि सपेम सब कथाप्रसंगू। जेहि बिधि राम राज रस भंगू ॥ भरतहि बहुरि सराहन लागी। सील सनेह सुभाय सुभागी ॥
Doha / दोहा
दो. चलत पयादें खात फल पिता दीन्ह तजि राजु। जात मनावन रघुबरहि भरत सरिस को आजु ॥ २२२ ॥
Chaupai / चोपाई
भायप भगति भरत आचरनू। कहत सुनत दुख दूषन हरनू ॥ जो कछु कहब थोर सखि सोई। राम बंधु अस काहे न होई ॥
हम सब सानुज भरतहि देखें। भइन्ह धन्य जुबती जन लेखें ॥ सुनि गुन देखि दसा पछिताहीं। कैकइ जननि जोगु सुतु नाहीं ॥
कोउ कह दूषनु रानिहि नाहिन। बिधि सबु कीन्ह हमहि जो दाहिन ॥ कहँ हम लोक बेद बिधि हीनी। लघु तिय कुल करतूति मलीनी ॥
बसहिं कुदेस कुगाँव कुबामा। कहँ यह दरसु पुन्य परिनामा ॥ अस अनंदु अचिरिजु प्रति ग्रामा। जनु मरुभूमि कलपतरु जामा ॥
Doha / दोहा
दो. भरत दरसु देखत खुलेउ मग लोगन्ह कर भागु। जनु सिंघलबासिन्ह भयउ बिधि बस सुलभ प्रयागु ॥ २२३ ॥
Chaupai / चोपाई
निज गुन सहित राम गुन गाथा। सुनत जाहिं सुमिरत रघुनाथा ॥ तीरथ मुनि आश्रम सुरधामा। निरखि निमज्जहिं करहिं प्रनामा ॥
मनहीं मन मागहिं बरु एहू। सीय राम पद पदुम सनेहू ॥ मिलहिं किरात कोल बनबासी। बैखानस बटु जती उदासी ॥
करि प्रनामु पूँछहिं जेहिं तेही। केहि बन लखनु रामु बैदेही ॥ ते प्रभु समाचार सब कहहीं। भरतहि देखि जनम फलु लहहीं ॥
जे जन कहहिं कुसल हम देखे। ते प्रिय राम लखन सम लेखे ॥ एहि बिधि बूझत सबहि सुबानी। सुनत राम बनबास कहानी ॥
Doha / दोहा
दो. तेहि बासर बसि प्रातहीं चले सुमिरि रघुनाथ। राम दरस की लालसा भरत सरिस सब साथ ॥ २२४ ॥
Chaupai / चोपाई
मंगल सगुन होहिं सब काहू। फरकहिं सुखद बिलोचन बाहू ॥ भरतहि सहित समाज उछाहू। मिलिहहिं रामु मिटहि दुख दाहू ॥
करत मनोरथ जस जियँ जाके। जाहिं सनेह सुराँ सब छाके ॥ सिथिल अंग पग मग डगि डोलहिं। बिहबल बचन पेम बस बोलहिं ॥
रामसखाँ तेहि समय देखावा। सैल सिरोमनि सहज सुहावा ॥ जासु समीप सरित पय तीरा। सीय समेत बसहिं दोउ बीरा ॥
देखि करहिं सब दंड प्रनामा। कहि जय जानकि जीवन रामा ॥ प्रेम मगन अस राज समाजू। जनु फिरि अवध चले रघुराजू ॥
Doha / दोहा
दो. भरत प्रेमु तेहि समय जस तस कहि सकइ न सेषु। कबिहिं अगम जिमि ब्रह्मसुखु अह मम मलिन जनेषु ॥ २२५।
Chaupai / चोपाई
सकल सनेह सिथिल रघुबर कें। गए कोस दुइ दिनकर ढरकें ॥ जलु थलु देखि बसे निसि बीतें। कीन्ह गवन रघुनाथ पिरीतें ॥
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