ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Chaupai / चोपाई
उहाँ रामु रजनी अवसेषा। जागे सीयँ सपन अस देखा ॥ सहित समाज भरत जनु आए। नाथ बियोग ताप तन ताए ॥
सकल मलिन मन दीन दुखारी। देखीं सासु आन अनुहारी ॥ सुनि सिय सपन भरे जल लोचन। भए सोचबस सोच बिमोचन ॥
लखन सपन यह नीक न होई। कठिन कुचाह सुनाइहि कोई ॥ अस कहि बंधु समेत नहाने। पूजि पुरारि साधु सनमाने ॥
Chanda / छन्द
छं. सनमानि सुर मुनि बंदि बैठे उत्तर दिसि देखत भए। नभ धूरि खग मृग भूरि भागे बिकल प्रभु आश्रम गए ॥ तुलसी उठे अवलोकि कारनु काह चित सचकित रहे। सब समाचार किरात कोलन्हि आइ तेहि अवसर कहे ॥
Doha / दोहा
दो. सुनत सुमंगल बैन मन प्रमोद तन पुलक भर। सरद सरोरुह नैन तुलसी भरे सनेह जल ॥ २२६ ॥
Chaupai / चोपाई
बहुरि सोचबस भे सियरवनू। कारन कवन भरत आगवनू ॥ एक आइ अस कहा बहोरी। सेन संग चतुरंग न थोरी ॥
सो सुनि रामहि भा अति सोचू। इत पितु बच इत बंधु सकोचू ॥ भरत सुभाउ समुझि मन माहीं। प्रभु चित हित थिति पावत नाही ॥
समाधान तब भा यह जाने। भरतु कहे महुँ साधु सयाने ॥ लखन लखेउ प्रभु हृदयँ खभारू। कहत समय सम नीति बिचारू ॥
बिनु पूँछ कछु कहउँ गोसाईं। सेवकु समयँ न ढीठ ढिठाई ॥ तुम्ह सर्बग्य सिरोमनि स्वामी। आपनि समुझि कहउँ अनुगामी ॥
Doha / दोहा
दो. नाथ सुह्रद सुठि सरल चित सील सनेह निधान ॥ सब पर प्रीति प्रतीति जियँ जानिअ आपु समान ॥ २२७ ॥
Chaupai / चोपाई
बिषई जीव पाइ प्रभुताई। मूढ़ मोह बस होहिं जनाई ॥ भरतु नीति रत साधु सुजाना। प्रभु पद प्रेम सकल जगु जाना ॥
तेऊ आजु राम पदु पाई। चले धरम मरजाद मेटाई ॥ कुटिल कुबंध कुअवसरु ताकी। जानि राम बनवास एकाकी ॥
करि कुमंत्रु मन साजि समाजू। आए करै अकंटक राजू ॥ कोटि प्रकार कलपि कुटलाई। आए दल बटोरि दोउ भाई ॥
जौं जियँ होति न कपट कुचाली। केहि सोहाति रथ बाजि गजाली ॥ भरतहि दोसु देइ को जाएँ। जग बौराइ राज पदु पाएँ ॥
Doha / दोहा
दो. ससि गुर तिय गामी नघुषु चढ़ेउ भूमिसुर जान। लोक बेद तें बिमुख भा अधम न बेन समान ॥ २२८ ॥
Chaupai / चोपाई
सहसबाहु सुरनाथु त्रिसंकू। केहि न राजमद दीन्ह कलंकू ॥ भरत कीन्ह यह उचित उपाऊ। रिपु रिन रंच न राखब काऊ ॥
एक कीन्हि नहिं भरत भलाई। निदरे रामु जानि असहाई ॥ समुझि परिहि सोउ आजु बिसेषी। समर सरोष राम मुखु पेखी ॥
एतना कहत नीति रस भूला। रन रस बिटपु पुलक मिस फूला ॥ प्रभु पद बंदि सीस रज राखी। बोले सत्य सहज बलु भाषी ॥
अनुचित नाथ न मानब मोरा। भरत हमहि उपचार न थोरा ॥ कहँ लगि सहिअ रहिअ मनु मारें। नाथ साथ धनु हाथ हमारें ॥
Doha / दोहा
दो. छत्रि जाति रघुकुल जनमु राम अनुग जगु जान। लातहुँ मारें चढ़ति सिर नीच को धूरि समान ॥ २२९ ॥
Chaupai / चोपाई
उठि कर जोरि रजायसु मागा। मनहुँ बीर रस सोवत जागा ॥ बाँधि जटा सिर कसि कटि भाथा। साजि सरासनु सायकु हाथा ॥
आजु राम सेवक जसु लेऊँ। भरतहि समर सिखावन देऊँ ॥ राम निरादर कर फलु पाई। सोवहुँ समर सेज दोउ भाई ॥
आइ बना भल सकल समाजू। प्रगट करउँ रिस पाछिल आजू ॥ जिमि करि निकर दलइ मृगराजू। लेइ लपेटि लवा जिमि बाजू ॥
तैसेहिं भरतहि सेन समेता। सानुज निदरि निपातउँ खेता ॥ जौं सहाय कर संकरु आई। तौ मारउँ रन राम दोहाई ॥
Doha / दोहा
दो. अति सरोष माखे लखनु लखि सुनि सपथ प्रवान। सभय लोक सब लोकपति चाहत भभरि भगान ॥ २३० ॥
Chaupai / चोपाई
जगु भय मगन गगन भइ बानी। लखन बाहुबलु बिपुल बखानी ॥ तात प्रताप प्रभाउ तुम्हारा। को कहि सकइ को जाननिहारा ॥
अनुचित उचित काजु किछु होऊ। समुझि करिअ भल कह सबु कोऊ ॥ सहसा करि पाछैं पछिताहीं। कहहिं बेद बुध ते बुध नाहीं ॥
Sign In