ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Chaupai / चोपाई
लखन राम सियँ सुनि सुर बानी। अति सुखु लहेउ न जाइ बखानी ॥ इहाँ भरतु सब सहित सहाए। मंदाकिनीं पुनीत नहाए ॥
सरित समीप राखि सब लोगा। मागि मातु गुर सचिव नियोगा ॥ चले भरतु जहँ सिय रघुराई। साथ निषादनाथु लघु भाई ॥
समुझि मातु करतब सकुचाहीं। करत कुतरक कोटि मन माहीं ॥ रामु लखनु सिय सुनि मम नाऊँ। उठि जनि अनत जाहिं तजि ठाऊँ ॥
Doha / दोहा
दो. मातु मते महुँ मानि मोहि जो कछु करहिं सो थोर। अघ अवगुन छमि आदरहिं समुझि आपनी ओर ॥ २३३ ॥
Chaupai / चोपाई
जौं परिहरहिं मलिन मनु जानी। जौ सनमानहिं सेवकु मानी ॥ मोरें सरन रामहि की पनही। राम सुस्वामि दोसु सब जनही ॥
जग जस भाजन चातक मीना। नेम पेम निज निपुन नबीना ॥ अस मन गुनत चले मग जाता। सकुच सनेहँ सिथिल सब गाता ॥
फेरत मनहुँ मातु कृत खोरी। चलत भगति बल धीरज धोरी ॥ जब समुझत रघुनाथ सुभाऊ। तब पथ परत उताइल पाऊ ॥
भरत दसा तेहि अवसर कैसी। जल प्रबाहँ जल अलि गति जैसी ॥ देखि भरत कर सोचु सनेहू। भा निषाद तेहि समयँ बिदेहू ॥
Doha / दोहा
दो. लगे होन मंगल सगुन सुनि गुनि कहत निषादु। मिटिहि सोचु होइहि हरषु पुनि परिनाम बिषादु ॥ २३४ ॥
Chaupai / चोपाई
सेवक बचन सत्य सब जाने। आश्रम निकट जाइ निअराने ॥ भरत दीख बन सैल समाजू। मुदित छुधित जनु पाइ सुनाजू ॥
ईति भीति जनु प्रजा दुखारी। त्रिबिध ताप पीड़ित ग्रह मारी ॥ जाइ सुराज सुदेस सुखारी। होहिं भरत गति तेहि अनुहारी ॥
राम बास बन संपति भ्राजा। सुखी प्रजा जनु पाइ सुराजा ॥ सचिव बिरागु बिबेकु नरेसू। बिपिन सुहावन पावन देसू ॥
भट जम नियम सैल रजधानी। सांति सुमति सुचि सुंदर रानी ॥ सकल अंग संपन्न सुराऊ। राम चरन आश्रित चित चाऊ ॥
Doha / दोहा
दो. जीति मोह महिपालु दल सहित बिबेक भुआलु। करत अकंटक राजु पुरँ सुख संपदा सुकालु ॥ २३५ ॥
Chaupai / चोपाई
बन प्रदेस मुनि बास घनेरे। जनु पुर नगर गाउँ गन खेरे ॥ बिपुल बिचित्र बिहग मृग नाना। प्रजा समाजु न जाइ बखाना ॥
खगहा करि हरि बाघ बराहा। देखि महिष बृष साजु सराहा ॥ बयरु बिहाइ चरहिं एक संगा। जहँ तहँ मनहुँ सेन चतुरंगा ॥
झरना झरहिं मत्त गज गाजहिं। मनहुँ निसान बिबिधि बिधि बाजहिं ॥ चक चकोर चातक सुक पिक गन। कूजत मंजु मराल मुदित मन ॥
अलिगन गावत नाचत मोरा। जनु सुराज मंगल चहु ओरा ॥ बेलि बिटप तृन सफल सफूला। सब समाजु मुद मंगल मूला ॥
Doha / दोहा
दो. राम सैल सोभा निरखि भरत हृदयँ अति पेमु। तापस तप फलु पाइ जिमि सुखी सिरानें नेमु ॥ २३६ ॥
Chaupai / चोपाई
तब केवट ऊँचें चढ़ि धाई। कहेउ भरत सन भुजा उठाई ॥ नाथ देखिअहिं बिटप बिसाला। पाकरि जंबु रसाल तमाला ॥
जिन्ह तरुबरन्ह मध्य बटु सोहा। मंजु बिसाल देखि मनु मोहा ॥ नील सघन पल्ल्व फल लाला। अबिरल छाहँ सुखद सब काला ॥
मानहुँ तिमिर अरुनमय रासी। बिरची बिधि सँकेलि सुषमा सी ॥ ए तरु सरित समीप गोसाँई। रघुबर परनकुटी जहँ छाई ॥
तुलसी तरुबर बिबिध सुहाए। कहुँ कहुँ सियँ कहुँ लखन लगाए ॥ बट छायाँ बेदिका बनाई। सियँ निज पानि सरोज सुहाई ॥
Doha / दोहा
दो. जहाँ बैठि मुनिगन सहित नित सिय रामु सुजान। सुनहिं कथा इतिहास सब आगम निगम पुरान ॥ २३७ ॥
Chaupai / चोपाई
सखा बचन सुनि बिटप निहारी। उमगे भरत बिलोचन बारी ॥ करत प्रनाम चले दोउ भाई। कहत प्रीति सारद सकुचाई ॥
हरषहिं निरखि राम पद अंका। मानहुँ पारसु पायउ रंका ॥ रज सिर धरि हियँ नयनन्हि लावहिं। रघुबर मिलन सरिस सुख पावहिं ॥
देखि भरत गति अकथ अतीवा। प्रेम मगन मृग खग जड़ जीवा ॥ सखहि सनेह बिबस मग भूला। कहि सुपंथ सुर बरषहिं फूला ॥
निरखि सिद्ध साधक अनुरागे। सहज सनेहु सराहन लागे ॥ होत न भूतल भाउ भरत को। अचर सचर चर अचर करत को ॥
Doha / दोहा
दो. पेम अमिअ मंदरु बिरहु भरतु पयोधि गँभीर। मथि प्रगटेउ सुर साधु हित कृपासिंधु रघुबीर ॥ २३८ ॥
Chaupai / चोपाई
सखा समेत मनोहर जोटा। लखेउ न लखन सघन बन ओटा ॥ भरत दीख प्रभु आश्रमु पावन। सकल सुमंगल सदनु सुहावन ॥
करत प्रबेस मिटे दुख दावा। जनु जोगीं परमारथु पावा ॥ देखे भरत लखन प्रभु आगे। पूँछे बचन कहत अनुरागे ॥
सीस जटा कटि मुनि पट बाँधें। तून कसें कर सरु धनु काँधें ॥ बेदी पर मुनि साधु समाजू। सीय सहित राजत रघुराजू ॥
बलकल बसन जटिल तनु स्यामा। जनु मुनि बेष कीन्ह रति कामा ॥ कर कमलनि धनु सायकु फेरत। जिय की जरनि हरत हँसि हेरत ॥
Doha / दोहा
दो. लसत मंजु मुनि मंडली मध्य सीय रघुचंदु। ग्यान सभाँ जनु तनु धरे भगति सच्चिदानंदु ॥ २३९ ॥
Chaupai / चोपाई
सानुज सखा समेत मगन मन। बिसरे हरष सोक सुख दुख गन ॥ पाहि नाथ कहि पाहि गोसाई। भूतल परे लकुट की नाई ॥
बचन सपेम लखन पहिचाने। करत प्रनामु भरत जियँ जाने ॥ बंधु सनेह सरस एहि ओरा। उत साहिब सेवा बस जोरा ॥
मिलि न जाइ नहिं गुदरत बनई। सुकबि लखन मन की गति भनई ॥ रहे राखि सेवा पर भारू। चढ़ी चंग जनु खैंच खेलारू ॥
कहत सप्रेम नाइ महि माथा। भरत प्रनाम करत रघुनाथा ॥ उठे रामु सुनि पेम अधीरा। कहुँ पट कहुँ निषंग धनु तीरा ॥
Doha / दोहा
दो. बरबस लिए उठाइ उर लाए कृपानिधान। भरत राम की मिलनि लखि बिसरे सबहि अपान ॥ २४० ॥
Chaupai / चोपाई
मिलनि प्रीति किमि जाइ बखानी। कबिकुल अगम करम मन बानी ॥ परम पेम पूरन दोउ भाई। मन बुधि चित अहमिति बिसराई ॥
कहहु सुपेम प्रगट को करई। केहि छाया कबि मति अनुसरई ॥ कबिहि अरथ आखर बलु साँचा। अनुहरि ताल गतिहि नटु नाचा ॥
अगम सनेह भरत रघुबर को। जहँ न जाइ मनु बिधि हरि हर को ॥ सो मैं कुमति कहौं केहि भाँती। बाज सुराग कि गाँडर ताँती ॥
मिलनि बिलोकि भरत रघुबर की। सुरगन सभय धकधकी धरकी ॥ समुझाए सुरगुरु जड़ जागे। बरषि प्रसून प्रसंसन लागे ॥
Doha / दोहा
दो. मिलि सपेम रिपुसूदनहि केवटु भेंटेउ राम। भूरि भायँ भेंटे भरत लछिमन करत प्रनाम ॥ २४१ ॥
Chaupai / चोपाई
भेंटेउ लखन ललकि लघु भाई। बहुरि निषादु लीन्ह उर लाई ॥ पुनि मुनिगन दुहुँ भाइन्ह बंदे। अभिमत आसिष पाइ अनंदे ॥
सानुज भरत उमगि अनुरागा। धरि सिर सिय पद पदुम परागा ॥ पुनि पुनि करत प्रनाम उठाए। सिर कर कमल परसि बैठाए ॥
सीयँ असीस दीन्हि मन माहीं। मगन सनेहँ देह सुधि नाहीं ॥ सब बिधि सानुकूल लखि सीता। भे निसोच उर अपडर बीता ॥
कोउ किछु कहइ न कोउ किछु पूँछा। प्रेम भरा मन निज गति छूँछा ॥ तेहि अवसर केवटु धीरजु धरि। जोरि पानि बिनवत प्रनामु करि ॥
Doha / दोहा
दो. नाथ साथ मुनिनाथ के मातु सकल पुर लोग। सेवक सेनप सचिव सब आए बिकल बियोग ॥ २४२ ॥
Chaupai / चोपाई
सीलसिंधु सुनि गुर आगवनू। सिय समीप राखे रिपुदवनू ॥ चले सबेग रामु तेहि काला। धीर धरम धुर दीनदयाला ॥
गुरहि देखि सानुज अनुरागे। दंड प्रनाम करन प्रभु लागे ॥ मुनिबर धाइ लिए उर लाई। प्रेम उमगि भेंटे दोउ भाई ॥
प्रेम पुलकि केवट कहि नामू। कीन्ह दूरि तें दंड प्रनामू ॥ रामसखा रिषि बरबस भेंटा। जनु महि लुठत सनेह समेटा ॥
रघुपति भगति सुमंगल मूला। नभ सराहि सुर बरिसहिं फूला ॥ एहि सम निपट नीच कोउ नाहीं। बड़ बसिष्ठ सम को जग माहीं ॥
Doha / दोहा
दो. जेहि लखि लखनहु तें अधिक मिले मुदित मुनिराउ। सो सीतापति भजन को प्रगट प्रताप प्रभाउ ॥ २४३ ॥
Chaupai / चोपाई
आरत लोग राम सबु जाना। करुनाकर सुजान भगवाना ॥ जो जेहि भायँ रहा अभिलाषी। तेहि तेहि कै तसि तसि रुख राखी ॥
सानुज मिलि पल महु सब काहू। कीन्ह दूरि दुखु दारुन दाहू ॥ यह बड़ि बातँ राम कै नाहीं। जिमि घट कोटि एक रबि छाहीं ॥
मिलि केवटिहि उमगि अनुरागा। पुरजन सकल सराहहिं भागा ॥ देखीं राम दुखित महतारीं। जनु सुबेलि अवलीं हिम मारीं ॥
प्रथम राम भेंटी कैकेई। सरल सुभायँ भगति मति भेई ॥ पग परि कीन्ह प्रबोधु बहोरी। काल करम बिधि सिर धरि खोरी ॥
Doha / दोहा
दो. भेटीं रघुबर मातु सब करि प्रबोधु परितोषु ॥ अंब ईस आधीन जगु काहु न देइअ दोषु ॥ २४४ ॥
Chaupai / चोपाई
गुरतिय पद बंदे दुहु भाई। सहित बिप्रतिय जे सँग आई ॥ गंग गौरि सम सब सनमानीं ॥ देहिं असीस मुदित मृदु बानी ॥
गहि पद लगे सुमित्रा अंका। जनु भेटीं संपति अति रंका ॥ पुनि जननि चरननि दोउ भ्राता। परे पेम ब्याकुल सब गाता ॥
अति अनुराग अंब उर लाए। नयन सनेह सलिल अन्हवाए ॥ तेहि अवसर कर हरष बिषादू। किमि कबि कहै मूक जिमि स्वादू ॥
मिलि जननहि सानुज रघुराऊ। गुर सन कहेउ कि धारिअ पाऊ ॥ पुरजन पाइ मुनीस नियोगू। जल थल तकि तकि उतरेउ लोगू ॥
Doha / दोहा
दो. महिसुर मंत्री मातु गुर गने लोग लिए साथ ॥ पावन आश्रम गवनु किय भरत लखन रघुनाथ ॥ २४५ ॥
Chaupai / चोपाई
सीय आइ मुनिबर पग लागी। उचित असीस लही मन मागी ॥ गुरपतिनिहि मुनितियन्ह समेता। मिली पेमु कहि जाइ न जेता ॥
बंदि बंदि पग सिय सबही के। आसिरबचन लहे प्रिय जी के ॥ सासु सकल जब सीयँ निहारीं। मूदे नयन सहमि सुकुमारीं ॥
परीं बधिक बस मनहुँ मरालीं। काह कीन्ह करतार कुचालीं ॥ तिन्ह सिय निरखि निपट दुखु पावा। सो सबु सहिअ जो दैउ सहावा ॥
जनकसुता तब उर धरि धीरा। नील नलिन लोयन भरि नीरा ॥ मिली सकल सासुन्ह सिय जाई। तेहि अवसर करुना महि छाई ॥
Doha / दोहा
दो. लागि लागि पग सबनि सिय भेंटति अति अनुराग ॥ हृदयँ असीसहिं पेम बस रहिअहु भरी सोहाग ॥ २४६ ॥
Chaupai / चोपाई
बिकल सनेहँ सीय सब रानीं। बैठन सबहि कहेउ गुर ग्यानीं ॥ कहि जग गति मायिक मुनिनाथा। कहे कछुक परमारथ गाथा ॥
नृप कर सुरपुर गवनु सुनावा। सुनि रघुनाथ दुसह दुखु पावा ॥ मरन हेतु निज नेहु बिचारी। भे अति बिकल धीर धुर धारी ॥
कुलिस कठोर सुनत कटु बानी। बिलपत लखन सीय सब रानी ॥ सोक बिकल अति सकल समाजू। मानहुँ राजु अकाजेउ आजू ॥
मुनिबर बहुरि राम समुझाए। सहित समाज सुसरित नहाए ॥ ब्रतु निरंबु तेहि दिन प्रभु कीन्हा। मुनिहु कहें जलु काहुँ न लीन्हा ॥
Doha / दोहा
दो. भोरु भएँ रघुनंदनहि जो मुनि आयसु दीन्ह ॥ श्रद्धा भगति समेत प्रभु सो सबु सादरु कीन्ह ॥ २४७ ॥
Chaupai / चोपाई
करि पितु क्रिया बेद जसि बरनी। भे पुनीत पातक तम तरनी ॥ जासु नाम पावक अघ तूला। सुमिरत सकल सुमंगल मूला ॥
सुद्ध सो भयउ साधु संमत अस। तीरथ आवाहन सुरसरि जस ॥ सुद्ध भएँ दुइ बासर बीते। बोले गुर सन राम पिरीते ॥
नाथ लोग सब निपट दुखारी। कंद मूल फल अंबु अहारी ॥ सानुज भरतु सचिव सब माता। देखि मोहि पल जिमि जुग जाता ॥
सब समेत पुर धारिअ पाऊ। आपु इहाँ अमरावति राऊ ॥ बहुत कहेउँ सब कियउँ ढिठाई। उचित होइ तस करिअ गोसाँई ॥
Doha / दोहा
दो. धर्म सेतु करुनायतन कस न कहहु अस राम। लोग दुखित दिन दुइ दरस देखि लहहुँ बिश्राम ॥ २४८ ॥
Chaupai / चोपाई
राम बचन सुनि सभय समाजू। जनु जलनिधि महुँ बिकल जहाजू ॥ सुनि गुर गिरा सुमंगल मूला। भयउ मनहुँ मारुत अनुकुला ॥
पावन पयँ तिहुँ काल नहाहीं। जो बिलोकि अंघ ओघ नसाहीं ॥ मंगलमूरति लोचन भरि भरि। निरखहिं हरषि दंडवत करि करि ॥
राम सैल बन देखन जाहीं। जहँ सुख सकल सकल दुख नाहीं ॥ झरना झरिहिं सुधासम बारी। त्रिबिध तापहर त्रिबिध बयारी ॥
बिटप बेलि तृन अगनित जाती। फल प्रसून पल्लव बहु भाँती ॥ सुंदर सिला सुखद तरु छाहीं। जाइ बरनि बन छबि केहि पाहीं ॥
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