ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Doha / दोहा
दो. प्रेम मगन तेहि समय सब सुनि आवत मिथिलेसु। सहित सभा संभ्रम उठेउ रबिकुल कमल दिनेसु ॥ २७४ ॥
Chaupai / चोपाई
भाइ सचिव गुर पुरजन साथा। आगें गवनु कीन्ह रघुनाथा ॥ गिरिबरु दीख जनकपति जबहीं। करि प्रनाम रथ त्यागेउ तबहीं ॥
राम दरस लालसा उछाहू। पथ श्रम लेसु कलेसु न काहू ॥ मन तहँ जहँ रघुबर बैदेही। बिनु मन तन दुख सुख सुधि केही ॥
आवत जनकु चले एहि भाँती। सहित समाज प्रेम मति माती ॥ आए निकट देखि अनुरागे। सादर मिलन परसपर लागे ॥
लगे जनक मुनिजन पद बंदन। रिषिन्ह प्रनामु कीन्ह रघुनंदन ॥ भाइन्ह सहित रामु मिलि राजहि। चले लवाइ समेत समाजहि ॥
Doha / दोहा
दो. आश्रम सागर सांत रस पूरन पावन पाथु। सेन मनहुँ करुना सरित लिएँ जाहिं रघुनाथु ॥ २७५ ॥
Chaupai / चोपाई
बोरति ग्यान बिराग करारे। बचन ससोक मिलत नद नारे ॥ सोच उसास समीर तंरगा। धीरज तट तरुबर कर भंगा ॥
बिषम बिषाद तोरावति धारा। भय भ्रम भवँर अबर्त अपारा ॥ केवट बुध बिद्या बड़ि नावा। सकहिं न खेइ ऐक नहिं आवा ॥
बनचर कोल किरात बिचारे। थके बिलोकि पथिक हियँ हारे ॥ आश्रम उदधि मिली जब जाई। मनहुँ उठेउ अंबुधि अकुलाई ॥
सोक बिकल दोउ राज समाजा। रहा न ग्यानु न धीरजु लाजा ॥ भूप रूप गुन सील सराही। रोवहिं सोक सिंधु अवगाही ॥
Chanda / छन्द
छं. अवगाहि सोक समुद्र सोचहिं नारि नर ब्याकुल महा। दै दोष सकल सरोष बोलहिं बाम बिधि कीन्हो कहा ॥ सुर सिद्ध तापस जोगिजन मुनि देखि दसा बिदेह की। तुलसी न समरथु कोउ जो तरि सकै सरित सनेह की ॥
Sortha / सोरठा
सो. किए अमित उपदेस जहँ तहँ लोगन्ह मुनिबरन्ह। धीरजु धरिअ नरेस कहेउ बसिष्ठ बिदेह सन ॥ २७६ ॥
Chaupai / चोपाई
जासु ग्यानु रबि भव निसि नासा। बचन किरन मुनि कमल बिकासा ॥ तेहि कि मोह ममता निअराई। यह सिय राम सनेह बड़ाई ॥
बिषई साधक सिद्ध सयाने। त्रिबिध जीव जग बेद बखाने ॥ राम सनेह सरस मन जासू। साधु सभाँ बड़ आदर तासू ॥
सोह न राम पेम बिनु ग्यानू। करनधार बिनु जिमि जलजानू ॥ मुनि बहुबिधि बिदेहु समुझाए। रामघाट सब लोग नहाए ॥
सकल सोक संकुल नर नारी। सो बासरु बीतेउ बिनु बारी ॥ पसु खग मृगन्ह न कीन्ह अहारू। प्रिय परिजन कर कौन बिचारू ॥
Doha / दोहा
दो. दोउ समाज निमिराजु रघुराजु नहाने प्रात। बैठे सब बट बिटप तर मन मलीन कृस गात ॥ २७७ ॥
Chaupai / चोपाई
जे महिसुर दसरथ पुर बासी। जे मिथिलापति नगर निवासी ॥ हंस बंस गुर जनक पुरोधा। जिन्ह जग मगु परमारथु सोधा ॥
लगे कहन उपदेस अनेका। सहित धरम नय बिरति बिबेका ॥ कौसिक कहि कहि कथा पुरानीं। समुझाई सब सभा सुबानीं ॥
तब रघुनाथ कोसिकहि कहेऊ। नाथ कालि जल बिनु सबु रहेऊ ॥ मुनि कह उचित कहत रघुराई। गयउ बीति दिन पहर अढ़ाई ॥
रिषि रुख लखि कह तेरहुतिराजू। इहाँ उचित नहिं असन अनाजू ॥ कहा भूप भल सबहि सोहाना। पाइ रजायसु चले नहाना ॥
Doha / दोहा
दो. तेहि अवसर फल फूल दल मूल अनेक प्रकार। लइ आए बनचर बिपुल भरि भरि काँवरि भार ॥ २७८ ॥
Chaupai / चोपाई
कामद मे गिरि राम प्रसादा। अवलोकत अपहरत बिषादा ॥ सर सरिता बन भूमि बिभागा। जनु उमगत आनँद अनुरागा ॥
बेलि बिटप सब सफल सफूला। बोलत खग मृग अलि अनुकूला ॥ तेहि अवसर बन अधिक उछाहू। त्रिबिध समीर सुखद सब काहू ॥
जाइ न बरनि मनोहरताई। जनु महि करति जनक पहुनाई ॥ तब सब लोग नहाइ नहाई। राम जनक मुनि आयसु पाई ॥
देखि देखि तरुबर अनुरागे। जहँ तहँ पुरजन उतरन लागे ॥ दल फल मूल कंद बिधि नाना। पावन सुंदर सुधा समाना ॥
Doha / दोहा
दो. सादर सब कहँ रामगुर पठए भरि भरि भार। पूजि पितर सुर अतिथि गुर लगे करन फरहार ॥ २७९ ॥
Chaupai / चोपाई
एहि बिधि बासर बीते चारी। रामु निरखि नर नारि सुखारी ॥ दुहु समाज असि रुचि मन माहीं। बिनु सिय राम फिरब भल नाहीं ॥
सीता राम संग बनबासू। कोटि अमरपुर सरिस सुपासू ॥ परिहरि लखन रामु बैदेही। जेहि घरु भाव बाम बिधि तेही ॥
दाहिन दइउ होइ जब सबही। राम समीप बसिअ बन तबही ॥ मंदाकिनि मज्जनु तिहु काला। राम दरसु मुद मंगल माला ॥
अटनु राम गिरि बन तापस थल। असनु अमिअ सम कंद मूल फल ॥ सुख समेत संबत दुइ साता। पल सम होहिं न जनिअहिं जाता ॥
Sign In