ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Chaupai / चोपाई
भोर न्हाइ सबु जुरा समाजू। भरत भूमिसुर तेरहुति राजू ॥ भल दिन आजु जानि मन माहीं। रामु कृपाल कहत सकुचाहीं ॥
गुर नृप भरत सभा अवलोकी। सकुचि राम फिरि अवनि बिलोकी ॥ सील सराहि सभा सब सोची। कहुँ न राम सम स्वामि सँकोची ॥
भरत सुजान राम रुख देखी। उठि सप्रेम धरि धीर बिसेषी ॥ करि दंडवत कहत कर जोरी। राखीं नाथ सकल रुचि मोरी ॥
मोहि लगि सहेउ सबहिं संतापू। बहुत भाँति दुखु पावा आपू ॥ अब गोसाइँ मोहि देउ रजाई। सेवौं अवध अवधि भरि जाई ॥
Doha / दोहा
दो. जेहिं उपाय पुनि पाय जनु देखै दीनदयाल। सो सिख देइअ अवधि लगि कोसलपाल कृपाल ॥ ३१३ ॥
Chaupai / चोपाई
पुरजन परिजन प्रजा गोसाई। सब सुचि सरस सनेहँ सगाई ॥ राउर बदि भल भव दुख दाहू। प्रभु बिनु बादि परम पद लाहू ॥
स्वामि सुजानु जानि सब ही की। रुचि लालसा रहनि जन जी की ॥ प्रनतपालु पालिहि सब काहू। देउ दुहू दिसि ओर निबाहू ॥
अस मोहि सब बिधि भूरि भरोसो। किएँ बिचारु न सोचु खरो सो ॥ आरति मोर नाथ कर छोहू। दुहुँ मिलि कीन्ह ढीठु हठि मोहू ॥
यह बड़ दोषु दूरि करि स्वामी। तजि सकोच सिखइअ अनुगामी ॥ भरत बिनय सुनि सबहिं प्रसंसी। खीर नीर बिबरन गति हंसी ॥
Doha / दोहा
दो. दीनबंधु सुनि बंधु के बचन दीन छलहीन। देस काल अवसर सरिस बोले रामु प्रबीन ॥ ३१४ ॥
Chaupai / चोपाई
तात तुम्हारि मोरि परिजन की। चिंता गुरहि नृपहि घर बन की ॥ माथे पर गुर मुनि मिथिलेसू। हमहि तुम्हहि सपनेहुँ न कलेसू ॥
मोर तुम्हार परम पुरुषारथु। स्वारथु सुजसु धरमु परमारथु ॥ पितु आयसु पालिहिं दुहु भाई। लोक बेद भल भूप भलाई ॥
गुर पितु मातु स्वामि सिख पालें। चलेहुँ कुमग पग परहिं न खालें ॥ अस बिचारि सब सोच बिहाई। पालहु अवध अवधि भरि जाई ॥
देसु कोसु परिजन परिवारू। गुर पद रजहिं लाग छरुभारू ॥ तुम्ह मुनि मातु सचिव सिख मानी। पालेहु पुहुमि प्रजा रजधानी ॥
Doha / दोहा
दो. मुखिआ मुखु सो चाहिऐ खान पान कहुँ एक। पालइ पोषइ सकल अँग तुलसी सहित बिबेक ॥ ३१५ ॥
Chaupai / चोपाई
राजधरम सरबसु एतनोई। जिमि मन माहँ मनोरथ गोई ॥ बंधु प्रबोधु कीन्ह बहु भाँती। बिनु अधार मन तोषु न साँती ॥
भरत सील गुर सचिव समाजू। सकुच सनेह बिबस रघुराजू ॥ प्रभु करि कृपा पाँवरीं दीन्हीं। सादर भरत सीस धरि लीन्हीं ॥
चरनपीठ करुनानिधान के। जनु जुग जामिक प्रजा प्रान के ॥ संपुट भरत सनेह रतन के। आखर जुग जुन जीव जतन के ॥
कुल कपाट कर कुसल करम के। बिमल नयन सेवा सुधरम के ॥ भरत मुदित अवलंब लहे तें। अस सुख जस सिय रामु रहे तें ॥
Doha / दोहा
दो. मागेउ बिदा प्रनामु करि राम लिए उर लाइ। लोग उचाटे अमरपति कुटिल कुअवसरु पाइ ॥ ३१६ ॥
Chaupai / चोपाई
सो कुचालि सब कहँ भइ नीकी। अवधि आस सम जीवनि जी की ॥ नतरु लखन सिय सम बियोगा। हहरि मरत सब लोग कुरोगा ॥
रामकृपाँ अवरेब सुधारी। बिबुध धारि भइ गुनद गोहारी ॥ भेंटत भुज भरि भाइ भरत सो। राम प्रेम रसु कहि न परत सो ॥
तन मन बचन उमग अनुरागा। धीर धुरंधर धीरजु त्यागा ॥ बारिज लोचन मोचत बारी। देखि दसा सुर सभा दुखारी ॥
मुनिगन गुर धुर धीर जनक से। ग्यान अनल मन कसें कनक से ॥ जे बिरंचि निरलेप उपाए। पदुम पत्र जिमि जग जल जाए ॥
Doha / दोहा
दो. तेउ बिलोकि रघुबर भरत प्रीति अनूप अपार। भए मगन मन तन बचन सहित बिराग बिचार ॥ ३१७ ॥
Chaupai / चोपाई
जहाँ जनक गुर मति भोरी। प्राकृत प्रीति कहत बड़ि खोरी ॥ बरनत रघुबर भरत बियोगू। सुनि कठोर कबि जानिहि लोगू ॥
सो सकोच रसु अकथ सुबानी। समउ सनेहु सुमिरि सकुचानी ॥ भेंटि भरत रघुबर समुझाए। पुनि रिपुदवनु हरषि हियँ लाए ॥
सेवक सचिव भरत रुख पाई। निज निज काज लगे सब जाई ॥ सुनि दारुन दुखु दुहूँ समाजा। लगे चलन के साजन साजा ॥
प्रभु पद पदुम बंदि दोउ भाई। चले सीस धरि राम रजाई ॥ मुनि तापस बनदेव निहोरी। सब सनमानि बहोरि बहोरी ॥
Doha / दोहा
दो. लखनहि भेंटि प्रनामु करि सिर धरि सिय पद धूरि। चले सप्रेम असीस सुनि सकल सुमंगल मूरि ॥ ३१८ ॥
Chaupai / चोपाई
सानुज राम नृपहि सिर नाई। कीन्हि बहुत बिधि बिनय बड़ाई ॥ देव दया बस बड़ दुखु पायउ। सहित समाज काननहिं आयउ ॥
पुर पगु धारिअ देइ असीसा। कीन्ह धीर धरि गवनु महीसा ॥ मुनि महिदेव साधु सनमाने। बिदा किए हरि हर सम जाने ॥
सासु समीप गए दोउ भाई। फिरे बंदि पग आसिष पाई ॥ कौसिक बामदेव जाबाली। पुरजन परिजन सचिव सुचाली ॥
जथा जोगु करि बिनय प्रनामा। बिदा किए सब सानुज रामा ॥ नारि पुरुष लघु मध्य बड़ेरे। सब सनमानि कृपानिधि फेरे ॥
Doha / दोहा
दो. भरत मातु पद बंदि प्रभु सुचि सनेहँ मिलि भेंटि। बिदा कीन्ह सजि पालकी सकुच सोच सब मेटि ॥ ३१९ ॥
Chaupai / चोपाई
परिजन मातु पितहि मिलि सीता। फिरी प्रानप्रिय प्रेम पुनीता ॥ करि प्रनामु भेंटी सब सासू। प्रीति कहत कबि हियँ न हुलासू ॥
सुनि सिख अभिमत आसिष पाई। रही सीय दुहु प्रीति समाई ॥ रघुपति पटु पालकीं मगाईं। करि प्रबोधु सब मातु चढ़ाई ॥
बार बार हिलि मिलि दुहु भाई। सम सनेहँ जननी पहुँचाई ॥ साजि बाजि गज बाहन नाना। भरत भूप दल कीन्ह पयाना ॥
हृदयँ रामु सिय लखन समेता। चले जाहिं सब लोग अचेता ॥ बसह बाजि गज पसु हियँ हारें। चले जाहिं परबस मन मारें ॥
Doha / दोहा
दो. गुर गुरतिय पद बंदि प्रभु सीता लखन समेत। फिरे हरष बिसमय सहित आए परन निकेत ॥ ३२० ॥
Chaupai / चोपाई
बिदा कीन्ह सनमानि निषादू। चलेउ हृदयँ बड़ बिरह बिषादू ॥ कोल किरात भिल्ल बनचारी। फेरे फिरे जोहारि जोहारी ॥
प्रभु सिय लखन बैठि बट छाहीं। प्रिय परिजन बियोग बिलखाहीं ॥ भरत सनेह सुभाउ सुबानी। प्रिया अनुज सन कहत बखानी ॥
प्रीति प्रतीति बचन मन करनी। श्रीमुख राम प्रेम बस बरनी ॥ तेहि अवसर खग मृग जल मीना। चित्रकूट चर अचर मलीना ॥
बिबुध बिलोकि दसा रघुबर की। बरषि सुमन कहि गति घर घर की ॥ प्रभु प्रनामु करि दीन्ह भरोसो। चले मुदित मन डर न खरो सो ॥
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