Ram Charita Manas

Ayodhya-Kanda

Conversation between Shri Rama and Bharat,Shri Rama gives his Paduka(Slippers) to Bharat and Bharat bids Farewell.

ॐ श्री परमात्मने नमः


This overlay will guide you through the buttons:

संस्कृत्म
A English

ॐ श्री गणेशाय नमः

Chaupai / चोपाई

भोर न्हाइ सबु जुरा समाजू। भरत भूमिसुर तेरहुति राजू ॥ भल दिन आजु जानि मन माहीं। रामु कृपाल कहत सकुचाहीं ॥

Chapter : 48 Number : 327

गुर नृप भरत सभा अवलोकी। सकुचि राम फिरि अवनि बिलोकी ॥ सील सराहि सभा सब सोची। कहुँ न राम सम स्वामि सँकोची ॥

Chapter : 48 Number : 327

भरत सुजान राम रुख देखी। उठि सप्रेम धरि धीर बिसेषी ॥ करि दंडवत कहत कर जोरी। राखीं नाथ सकल रुचि मोरी ॥

Chapter : 48 Number : 327

मोहि लगि सहेउ सबहिं संतापू। बहुत भाँति दुखु पावा आपू ॥ अब गोसाइँ मोहि देउ रजाई। सेवौं अवध अवधि भरि जाई ॥

Chapter : 48 Number : 327

Doha / दोहा

दो. जेहिं उपाय पुनि पाय जनु देखै दीनदयाल। सो सिख देइअ अवधि लगि कोसलपाल कृपाल ॥ ३१३ ॥

Chapter : 48 Number : 328

Chaupai / चोपाई

पुरजन परिजन प्रजा गोसाई। सब सुचि सरस सनेहँ सगाई ॥ राउर बदि भल भव दुख दाहू। प्रभु बिनु बादि परम पद लाहू ॥

Chapter : 48 Number : 328

स्वामि सुजानु जानि सब ही की। रुचि लालसा रहनि जन जी की ॥ प्रनतपालु पालिहि सब काहू। देउ दुहू दिसि ओर निबाहू ॥

Chapter : 48 Number : 328

अस मोहि सब बिधि भूरि भरोसो। किएँ बिचारु न सोचु खरो सो ॥ आरति मोर नाथ कर छोहू। दुहुँ मिलि कीन्ह ढीठु हठि मोहू ॥

Chapter : 48 Number : 328

यह बड़ दोषु दूरि करि स्वामी। तजि सकोच सिखइअ अनुगामी ॥ भरत बिनय सुनि सबहिं प्रसंसी। खीर नीर बिबरन गति हंसी ॥

Chapter : 48 Number : 328

Doha / दोहा

दो. दीनबंधु सुनि बंधु के बचन दीन छलहीन। देस काल अवसर सरिस बोले रामु प्रबीन ॥ ३१४ ॥

Chapter : 48 Number : 329

Chaupai / चोपाई

तात तुम्हारि मोरि परिजन की। चिंता गुरहि नृपहि घर बन की ॥ माथे पर गुर मुनि मिथिलेसू। हमहि तुम्हहि सपनेहुँ न कलेसू ॥

Chapter : 48 Number : 329

मोर तुम्हार परम पुरुषारथु। स्वारथु सुजसु धरमु परमारथु ॥ पितु आयसु पालिहिं दुहु भाई। लोक बेद भल भूप भलाई ॥

Chapter : 48 Number : 329

गुर पितु मातु स्वामि सिख पालें। चलेहुँ कुमग पग परहिं न खालें ॥ अस बिचारि सब सोच बिहाई। पालहु अवध अवधि भरि जाई ॥

Chapter : 48 Number : 329

देसु कोसु परिजन परिवारू। गुर पद रजहिं लाग छरुभारू ॥ तुम्ह मुनि मातु सचिव सिख मानी। पालेहु पुहुमि प्रजा रजधानी ॥

Chapter : 48 Number : 329

Doha / दोहा

दो. मुखिआ मुखु सो चाहिऐ खान पान कहुँ एक। पालइ पोषइ सकल अँग तुलसी सहित बिबेक ॥ ३१५ ॥

Chapter : 48 Number : 330

Chaupai / चोपाई

राजधरम सरबसु एतनोई। जिमि मन माहँ मनोरथ गोई ॥ बंधु प्रबोधु कीन्ह बहु भाँती। बिनु अधार मन तोषु न साँती ॥

Chapter : 48 Number : 330

भरत सील गुर सचिव समाजू। सकुच सनेह बिबस रघुराजू ॥ प्रभु करि कृपा पाँवरीं दीन्हीं। सादर भरत सीस धरि लीन्हीं ॥

Chapter : 48 Number : 330

चरनपीठ करुनानिधान के। जनु जुग जामिक प्रजा प्रान के ॥ संपुट भरत सनेह रतन के। आखर जुग जुन जीव जतन के ॥

Chapter : 48 Number : 330

कुल कपाट कर कुसल करम के। बिमल नयन सेवा सुधरम के ॥ भरत मुदित अवलंब लहे तें। अस सुख जस सिय रामु रहे तें ॥

Chapter : 48 Number : 330

Doha / दोहा

दो. मागेउ बिदा प्रनामु करि राम लिए उर लाइ। लोग उचाटे अमरपति कुटिल कुअवसरु पाइ ॥ ३१६ ॥

Chapter : 48 Number : 331

Chaupai / चोपाई

सो कुचालि सब कहँ भइ नीकी। अवधि आस सम जीवनि जी की ॥ नतरु लखन सिय सम बियोगा। हहरि मरत सब लोग कुरोगा ॥

Chapter : 48 Number : 331

रामकृपाँ अवरेब सुधारी। बिबुध धारि भइ गुनद गोहारी ॥ भेंटत भुज भरि भाइ भरत सो। राम प्रेम रसु कहि न परत सो ॥

Chapter : 48 Number : 331

तन मन बचन उमग अनुरागा। धीर धुरंधर धीरजु त्यागा ॥ बारिज लोचन मोचत बारी। देखि दसा सुर सभा दुखारी ॥

Chapter : 48 Number : 331

मुनिगन गुर धुर धीर जनक से। ग्यान अनल मन कसें कनक से ॥ जे बिरंचि निरलेप उपाए। पदुम पत्र जिमि जग जल जाए ॥

Chapter : 48 Number : 331

Doha / दोहा

दो. तेउ बिलोकि रघुबर भरत प्रीति अनूप अपार। भए मगन मन तन बचन सहित बिराग बिचार ॥ ३१७ ॥

Chapter : 48 Number : 332

Chaupai / चोपाई

जहाँ जनक गुर मति भोरी। प्राकृत प्रीति कहत बड़ि खोरी ॥ बरनत रघुबर भरत बियोगू। सुनि कठोर कबि जानिहि लोगू ॥

Chapter : 48 Number : 332

सो सकोच रसु अकथ सुबानी। समउ सनेहु सुमिरि सकुचानी ॥ भेंटि भरत रघुबर समुझाए। पुनि रिपुदवनु हरषि हियँ लाए ॥

Chapter : 48 Number : 332

सेवक सचिव भरत रुख पाई। निज निज काज लगे सब जाई ॥ सुनि दारुन दुखु दुहूँ समाजा। लगे चलन के साजन साजा ॥

Chapter : 48 Number : 332

प्रभु पद पदुम बंदि दोउ भाई। चले सीस धरि राम रजाई ॥ मुनि तापस बनदेव निहोरी। सब सनमानि बहोरि बहोरी ॥

Chapter : 48 Number : 332

Doha / दोहा

दो. लखनहि भेंटि प्रनामु करि सिर धरि सिय पद धूरि। चले सप्रेम असीस सुनि सकल सुमंगल मूरि ॥ ३१८ ॥

Chapter : 48 Number : 333

Chaupai / चोपाई

सानुज राम नृपहि सिर नाई। कीन्हि बहुत बिधि बिनय बड़ाई ॥ देव दया बस बड़ दुखु पायउ। सहित समाज काननहिं आयउ ॥

Chapter : 48 Number : 333

पुर पगु धारिअ देइ असीसा। कीन्ह धीर धरि गवनु महीसा ॥ मुनि महिदेव साधु सनमाने। बिदा किए हरि हर सम जाने ॥

Chapter : 48 Number : 333

सासु समीप गए दोउ भाई। फिरे बंदि पग आसिष पाई ॥ कौसिक बामदेव जाबाली। पुरजन परिजन सचिव सुचाली ॥

Chapter : 48 Number : 333

जथा जोगु करि बिनय प्रनामा। बिदा किए सब सानुज रामा ॥ नारि पुरुष लघु मध्य बड़ेरे। सब सनमानि कृपानिधि फेरे ॥

Chapter : 48 Number : 333

Doha / दोहा

दो. भरत मातु पद बंदि प्रभु सुचि सनेहँ मिलि भेंटि। बिदा कीन्ह सजि पालकी सकुच सोच सब मेटि ॥ ३१९ ॥

Chapter : 48 Number : 334

Chaupai / चोपाई

परिजन मातु पितहि मिलि सीता। फिरी प्रानप्रिय प्रेम पुनीता ॥ करि प्रनामु भेंटी सब सासू। प्रीति कहत कबि हियँ न हुलासू ॥

Chapter : 48 Number : 334

सुनि सिख अभिमत आसिष पाई। रही सीय दुहु प्रीति समाई ॥ रघुपति पटु पालकीं मगाईं। करि प्रबोधु सब मातु चढ़ाई ॥

Chapter : 48 Number : 334

बार बार हिलि मिलि दुहु भाई। सम सनेहँ जननी पहुँचाई ॥ साजि बाजि गज बाहन नाना। भरत भूप दल कीन्ह पयाना ॥

Chapter : 48 Number : 334

हृदयँ रामु सिय लखन समेता। चले जाहिं सब लोग अचेता ॥ बसह बाजि गज पसु हियँ हारें। चले जाहिं परबस मन मारें ॥

Chapter : 48 Number : 334

Doha / दोहा

दो. गुर गुरतिय पद बंदि प्रभु सीता लखन समेत। फिरे हरष बिसमय सहित आए परन निकेत ॥ ३२० ॥

Chapter : 48 Number : 335

Chaupai / चोपाई

बिदा कीन्ह सनमानि निषादू। चलेउ हृदयँ बड़ बिरह बिषादू ॥ कोल किरात भिल्ल बनचारी। फेरे फिरे जोहारि जोहारी ॥

Chapter : 48 Number : 335

प्रभु सिय लखन बैठि बट छाहीं। प्रिय परिजन बियोग बिलखाहीं ॥ भरत सनेह सुभाउ सुबानी। प्रिया अनुज सन कहत बखानी ॥

Chapter : 48 Number : 335

प्रीति प्रतीति बचन मन करनी। श्रीमुख राम प्रेम बस बरनी ॥ तेहि अवसर खग मृग जल मीना। चित्रकूट चर अचर मलीना ॥

Chapter : 48 Number : 335

बिबुध बिलोकि दसा रघुबर की। बरषि सुमन कहि गति घर घर की ॥ प्रभु प्रनामु करि दीन्ह भरोसो। चले मुदित मन डर न खरो सो ॥

Chapter : 48 Number : 335

Add to Playlist

Practice Later

No Playlist Found

Create a Verse Post


namo namaḥ!

भाषा चुने (Choose Language)

Gyaandweep Gyaandweep

namo namaḥ!

Sign Up to practice more than 60 Vedic Scriptures and 100 of chants, one verse at a time.

Login to track your learning and teaching progress.


Sign In