ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Doha / दोहा
दो. सानुज सीय समेत प्रभु राजत परन कुटीर। भगति ग्यानु बैराग्य जनु सोहत धरें सरीर ॥ ३२१ ॥
Chaupai / चोपाई
मुनि महिसुर गुर भरत भुआलू। राम बिरहँ सबु साजु बिहालू ॥ प्रभु गुन ग्राम गनत मन माहीं। सब चुपचाप चले मग जाहीं ॥
जमुना उतरि पार सबु भयऊ। सो बासरु बिनु भोजन गयऊ ॥ उतरि देवसरि दूसर बासू। रामसखाँ सब कीन्ह सुपासू ॥
सई उतरि गोमतीं नहाए। चौथें दिवस अवधपुर आए।जनकु रहे पुर बासर चारी। राज काज सब साज सँभारी ॥
सौंपि सचिव गुर भरतहि राजू। तेरहुति चले साजि सबु साजू ॥ नगर नारि नर गुर सिख मानी। बसे सुखेन राम रजधानी ॥
Doha / दोहा
दो. राम दरस लगि लोग सब करत नेम उपबास। तजि तजि भूषन भोग सुख जिअत अवधि कीं आस ॥ ३२२ ॥
Chaupai / चोपाई
सचिव सुसेवक भरत प्रबोधे। निज निज काज पाइ पाइ सिख ओधे ॥ पुनि सिख दीन्ह बोलि लघु भाई। सौंपी सकल मातु सेवकाई ॥
भूसुर बोलि भरत कर जोरे। करि प्रनाम बय बिनय निहोरे ॥ ऊँच नीच कारजु भल पोचू। आयसु देब न करब सँकोचू ॥
परिजन पुरजन प्रजा बोलाए। समाधानु करि सुबस बसाए ॥ सानुज गे गुर गेहँ बहोरी। करि दंडवत कहत कर जोरी ॥
आयसु होइ त रहौं सनेमा। बोले मुनि तन पुलकि सपेमा ॥ समुझव कहब करब तुम्ह जोई। धरम सारु जग होइहि सोई ॥
Doha / दोहा
दो. सुनि सिख पाइ असीस बड़ि गनक बोलि दिनु साधि। सिंघासन प्रभु पादुका बैठारे निरुपाधि ॥ ३२३ ॥
Chaupai / चोपाई
राम मातु गुर पद सिरु नाई। प्रभु पद पीठ रजायसु पाई ॥ नंदिगावँ करि परन कुटीरा। कीन्ह निवासु धरम धुर धीरा ॥
जटाजूट सिर मुनिपट धारी। महि खनि कुस साँथरी सँवारी ॥ असन बसन बासन ब्रत नेमा। करत कठिन रिषिधरम सप्रेमा ॥
भूषन बसन भोग सुख भूरी। मन तन बचन तजे तिन तूरी ॥ अवध राजु सुर राजु सिहाई। दसरथ धनु सुनि धनदु लजाई ॥
तेहिं पुर बसत भरत बिनु रागा। चंचरीक जिमि चंपक बागा ॥ रमा बिलासु राम अनुरागी। तजत बमन जिमि जन बड़भागी ॥
Doha / दोहा
दो. राम पेम भाजन भरतु बड़े न एहिं करतूति। चातक हंस सराहिअत टेंक बिबेक बिभूति ॥ ३२४ ॥
Chaupai / चोपाई
देह दिनहुँ दिन दूबरि होई। घटइ तेजु बलु मुखछबि सोई ॥ नित नव राम प्रेम पनु पीना। बढ़त धरम दलु मनु न मलीना ॥
जिमि जलु निघटत सरद प्रकासे। बिलसत बेतस बनज बिकासे ॥ सम दम संजम नियम उपासा। नखत भरत हिय बिमल अकासा ॥
ध्रुव बिस्वास अवधि राका सी। स्वामि सुरति सुरबीथि बिकासी ॥ राम पेम बिधु अचल अदोषा। सहित समाज सोह नित चोखा ॥
भरत रहनि समुझनि करतूती। भगति बिरति गुन बिमल बिभूती ॥ बरनत सकल सुकचि सकुचाहीं। सेस गनेस गिरा गमु नाहीं ॥
Doha / दोहा
दो. नित पूजत प्रभु पाँवरी प्रीति न हृदयँ समाति ॥ मागि मागि आयसु करत राज काज बहु भाँति ॥ ३२५ ॥
Chaupai / चोपाई
पुलक गात हियँ सिय रघुबीरू। जीह नामु जप लोचन नीरू ॥ लखन राम सिय कानन बसहीं। भरतु भवन बसि तप तनु कसहीं ॥
दोउ दिसि समुझि कहत सबु लोगू। सब बिधि भरत सराहन जोगू ॥ सुनि ब्रत नेम साधु सकुचाहीं। देखि दसा मुनिराज लजाहीं ॥
परम पुनीत भरत आचरनू। मधुर मंजु मुद मंगल करनू ॥ हरन कठिन कलि कलुष कलेसू। महामोह निसि दलन दिनेसू ॥
पाप पुंज कुंजर मृगराजू। समन सकल संताप समाजू।जन रंजन भंजन भव भारू। राम सनेह सुधाकर सारू ॥
Chanda / छन्द
छं. सिय राम प्रेम पियूष पूरन होत जनमु न भरत को। मुनि मन अगम जम नियम सम दम बिषम ब्रत आचरत को ॥ दुख दाह दारिद दंभ दूषन सुजस मिस अपहरत को। कलिकाल तुलसी से सठन्हि हठि राम सनमुख करत को ॥
Sortha / सोरठा
सो. भरत चरित करि नेमु तुलसी जो सादर सुनहिं। सीय राम पद पेमु अवसि होइ भव रस बिरति ॥ ३२६ ॥
Sign In