ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Chanda / छन्द
छं. केहि हेतु रानि रिसानि परसत पानि पतिहि नेवारई। मानहुँ सरोष भुअंग भामिनि बिषम भाँति निहारई ॥ दोउ बासना रसना दसन बर मरम ठाहरु देखई। तुलसी नृपति भवतब्यता बस काम कौतुक लेखई ॥
Sortha / सोरठा
सो. बार बार कह राउ सुमुखि सुलोचिनि पिकबचनि। कारन मोहि सुनाउ गजगामिनि निज कोप कर ॥ २५ ॥
Chaupai / चोपाई
अनहित तोर प्रिया केइँ कीन्हा। केहि दुइ सिर केहि जमु चह लीन्हा ॥ कहु केहि रंकहि करौ नरेसू। कहु केहि नृपहि निकासौं देसू ॥
सकउँ तोर अरि अमरउ मारी। काह कीट बपुरे नर नारी ॥ जानसि मोर सुभाउ बरोरू। मनु तव आनन चंद चकोरू ॥
प्रिया प्रान सुत सरबसु मोरें। परिजन प्रजा सकल बस तोरें ॥ जौं कछु कहौ कपटु करि तोही। भामिनि राम सपथ सत मोही ॥
बिहसि मागु मनभावति बाता। भूषन सजहि मनोहर गाता ॥ घरी कुघरी समुझि जियँ देखू। बेगि प्रिया परिहरहि कुबेषू ॥
Doha / दोहा
दो. यह सुनि मन गुनि सपथ बड़ि बिहसि उठी मतिमंद। भूषन सजति बिलोकि मृगु मनहुँ किरातिनि फंद ॥ २६ ॥
Chaupai / चोपाई
पुनि कह राउ सुह्रद जियँ जानी। प्रेम पुलकि मृदु मंजुल बानी ॥ भामिनि भयउ तोर मनभावा। घर घर नगर अनंद बधावा ॥
रामहि देउँ कालि जुबराजू। सजहि सुलोचनि मंगल साजू ॥ दलकि उठेउ सुनि ह्रदउ कठोरू। जनु छुइ गयउ पाक बरतोरू ॥
ऐसिउ पीर बिहसि तेहि गोई। चोर नारि जिमि प्रगटि न रोई ॥ लखहिं न भूप कपट चतुराई। कोटि कुटिल मनि गुरू पढ़ाई ॥
जद्यपि नीति निपुन नरनाहू। नारिचरित जलनिधि अवगाहू ॥ कपट सनेहु बढ़ाइ बहोरी। बोली बिहसि नयन मुहु मोरी ॥
Doha / दोहा
दो. मागु मागु पै कहहु पिय कबहुँ न देहु न लेहु। देन कहेहु बरदान दुइ तेउ पावत संदेहु ॥ २७ ॥
Chaupai / चोपाई
जानेउँ मरमु राउ हँसि कहई। तुम्हहि कोहाब परम प्रिय अहई ॥ थाति राखि न मागिहु काऊ। बिसरि गयउ मोहि भोर सुभाऊ ॥
झूठेहुँ हमहि दोषु जनि देहू। दुइ कै चारि मागि मकु लेहू ॥ रघुकुल रीति सदा चलि आई। प्रान जाहुँ बरु बचनु न जाई ॥
नहिं असत्य सम पातक पुंजा। गिरि सम होहिं कि कोटिक गुंजा ॥ सत्यमूल सब सुकृत सुहाए। बेद पुरान बिदित मनु गाए ॥
तेहि पर राम सपथ करि आई। सुकृत सनेह अवधि रघुराई ॥ बात दृढ़ाइ कुमति हँसि बोली। कुमत कुबिहग कुलह जनु खोली ॥
Doha / दोहा
दो. भूप मनोरथ सुभग बनु सुख सुबिहंग समाजु। भिल्लनि जिमि छाड़न चहति बचनु भयंकरु बाजु ॥ २८ ॥
Chaupai / चोपाई
सुनहु प्रानप्रिय भावत जी का। देहु एक बर भरतहि टीका ॥ मागउँ दूसर बर कर जोरी। पुरवहु नाथ मनोरथ मोरी ॥
तापस बेष बिसेषि उदासी। चौदह बरिस रामु बनबासी ॥ सुनि मृदु बचन भूप हियँ सोकू। ससि कर छुअत बिकल जिमि कोकू ॥
गयउ सहमि नहिं कछु कहि आवा। जनु सचान बन झपटेउ लावा ॥ बिबरन भयउ निपट नरपालू। दामिनि हनेउ मनहुँ तरु तालू ॥
माथे हाथ मूदि दोउ लोचन। तनु धरि सोचु लाग जनु सोचन ॥ मोर मनोरथु सुरतरु फूला। फरत करिनि जिमि हतेउ समूला ॥
अवध उजारि कीन्हि कैकेईं। दीन्हसि अचल बिपति कै नेईं ॥
Doha / दोहा
दो. कवनें अवसर का भयउ गयउँ नारि बिस्वास। जोग सिद्धि फल समय जिमि जतिहि अबिद्या नास ॥ २९ ॥
Chaupai / चोपाई
एहि बिधि राउ मनहिं मन झाँखा। देखि कुभाँति कुमति मन माखा ॥ भरतु कि राउर पूत न होहीं। आनेहु मोल बेसाहि कि मोही ॥
जो सुनि सरु अस लाग तुम्हारें। काहे न बोलहु बचनु सँभारे ॥ देहु उतरु अनु करहु कि नाहीं। सत्यसंध तुम्ह रघुकुल माहीं ॥
देन कहेहु अब जनि बरु देहू। तजहुँ सत्य जग अपजसु लेहू ॥ सत्य सराहि कहेहु बरु देना। जानेहु लेइहि मागि चबेना ॥
सिबि दधीचि बलि जो कछु भाषा। तनु धनु तजेउ बचन पनु राखा ॥ अति कटु बचन कहति कैकेई। मानहुँ लोन जरे पर देई ॥
Doha / दोहा
दो. धरम धुरंधर धीर धरि नयन उघारे रायँ। सिरु धुनि लीन्हि उसास असि मारेसि मोहि कुठायँ ॥ ३० ॥
Chaupai / चोपाई
आगें दीखि जरत रिस भारी। मनहुँ रोष तरवारि उघारी ॥ मूठि कुबुद्धि धार निठुराई। धरी कूबरीं सान बनाई ॥
लखी महीप कराल कठोरा। सत्य कि जीवनु लेइहि मोरा ॥ बोले राउ कठिन करि छाती। बानी सबिनय तासु सोहाती ॥
प्रिया बचन कस कहसि कुभाँती। भीर प्रतीति प्रीति करि हाँती ॥ मोरें भरतु रामु दुइ आँखी। सत्य कहउँ करि संकरू साखी ॥
अवसि दूतु मैं पठइब प्राता। ऐहहिं बेगि सुनत दोउ भ्राता ॥ सुदिन सोधि सबु साजु सजाई। देउँ भरत कहुँ राजु बजाई ॥
Doha / दोहा
दो. लोभु न रामहि राजु कर बहुत भरत पर प्रीति। मैं बड़ छोट बिचारि जियँ करत रहेउँ नृपनीति ॥ ३१ ॥
Chaupai / चोपाई
राम सपथ सत कहूँ सुभाऊ। राममातु कछु कहेउ न काऊ ॥ मैं सबु कीन्ह तोहि बिनु पूँछें। तेहि तें परेउ मनोरथु छूछें ॥
रिस परिहरू अब मंगल साजू। कछु दिन गएँ भरत जुबराजू ॥ एकहि बात मोहि दुखु लागा। बर दूसर असमंजस मागा ॥
अजहुँ हृदय जरत तेहि आँचा। रिस परिहास कि साँचेहुँ साँचा ॥ कहु तजि रोषु राम अपराधू। सबु कोउ कहइ रामु सुठि साधू ॥
तुहूँ सराहसि करसि सनेहू। अब सुनि मोहि भयउ संदेहू ॥ जासु सुभाउ अरिहि अनुकूला। सो किमि करिहि मातु प्रतिकूला ॥
Doha / दोहा
दो. प्रिया हास रिस परिहरहि मागु बिचारि बिबेकु। जेहिं देखाँ अब नयन भरि भरत राज अभिषेकु ॥ ३२ ॥
Chaupai / चोपाई
जिऐ मीन बरू बारि बिहीना। मनि बिनु फनिकु जिऐ दुख दीना ॥ कहउँ सुभाउ न छलु मन माहीं। जीवनु मोर राम बिनु नाहीं ॥
समुझि देखु जियँ प्रिया प्रबीना। जीवनु राम दरस आधीना ॥ सुनि म्रदु बचन कुमति अति जरई। मनहुँ अनल आहुति घृत परई ॥
कहइ करहु किन कोटि उपाया। इहाँ न लागिहि राउरि माया ॥ देहु कि लेहु अजसु करि नाहीं। मोहि न बहुत प्रपंच सोहाहीं।
रामु साधु तुम्ह साधु सयाने। राममातु भलि सब पहिचाने ॥ जस कौसिलाँ मोर भल ताका। तस फलु उन्हहि देउँ करि साका ॥
Doha / दोहा
दो. होत प्रात मुनिबेष धरि जौं न रामु बन जाहिं। मोर मरनु राउर अजस नृप समुझिअ मन माहिं ॥ ३३ ॥
Chaupai / चोपाई
अस कहि कुटिल भई उठि ठाढ़ी। मानहुँ रोष तरंगिनि बाढ़ी ॥ पाप पहार प्रगट भइ सोई। भरी क्रोध जल जाइ न जोई ॥
दोउ बर कूल कठिन हठ धारा। भवँर कूबरी बचन प्रचारा ॥ ढाहत भूपरूप तरु मूला। चली बिपति बारिधि अनुकूला ॥
लखी नरेस बात फुरि साँची। तिय मिस मीचु सीस पर नाची ॥ गहि पद बिनय कीन्ह बैठारी। जनि दिनकर कुल होसि कुठारी ॥
मागु माथ अबहीं देउँ तोही। राम बिरहँ जनि मारसि मोही ॥ राखु राम कहुँ जेहि तेहि भाँती। नाहिं त जरिहि जनम भरि छाती ॥
Doha / दोहा
दो. देखी ब्याधि असाध नृपु परेउ धरनि धुनि माथ। कहत परम आरत बचन राम राम रघुनाथ ॥ ३४ ॥
Chaupai / चोपाई
ब्याकुल राउ सिथिल सब गाता। करिनि कलपतरु मनहुँ निपाता ॥ कंठु सूख मुख आव न बानी। जनु पाठीनु दीन बिनु पानी ॥
पुनि कह कटु कठोर कैकेई। मनहुँ घाय महुँ माहुर देई ॥ जौं अंतहुँ अस करतबु रहेऊ। मागु मागु तुम्ह केहिं बल कहेऊ ॥
दुइ कि होइ एक समय भुआला। हँसब ठठाइ फुलाउब गाला ॥ दानि कहाउब अरु कृपनाई। होइ कि खेम कुसल रौताई ॥
छाड़हु बचनु कि धीरजु धरहू। जनि अबला जिमि करुना करहू ॥ तनु तिय तनय धामु धनु धरनी। सत्यसंध कहुँ तृन सम बरनी ॥
Doha / दोहा
दो. मरम बचन सुनि राउ कह कहु कछु दोषु न तोर। लागेउ तोहि पिसाच जिमि कालु कहावत मोर ॥ ३५ ॥ û
Chaupai / चोपाई
चहत न भरत भूपतहि भोरें। बिधि बस कुमति बसी जिय तोरें ॥ सो सबु मोर पाप परिनामू। भयउ कुठाहर जेहिं बिधि बामू ॥
सुबस बसिहि फिरि अवध सुहाई। सब गुन धाम राम प्रभुताई ॥ करिहहिं भाइ सकल सेवकाई। होइहि तिहुँ पुर राम बड़ाई ॥
तोर कलंकु मोर पछिताऊ। मुएहुँ न मिटहि न जाइहि काऊ ॥ अब तोहि नीक लाग करु सोई। लोचन ओट बैठु मुहु गोई ॥
जब लगि जिऔं कहउँ कर जोरी। तब लगि जनि कछु कहसि बहोरी ॥ फिरि पछितैहसि अंत अभागी। मारसि गाइ नहारु लागी ॥
Doha / दोहा
दो. परेउ राउ कहि कोटि बिधि काहे करसि निदानु। कपट सयानि न कहति कछु जागति मनहुँ मसानु ॥ ३६ ॥
Chaupai / चोपाई
राम राम रट बिकल भुआलू। जनु बिनु पंख बिहंग बेहालू ॥ हृदयँ मनाव भोरु जनि होई। रामहि जाइ कहै जनि कोई ॥
उदउ करहु जनि रबि रघुकुल गुर। अवध बिलोकि सूल होइहि उर ॥ भूप प्रीति कैकइ कठिनाई। उभय अवधि बिधि रची बनाई ॥
बिलपत नृपहि भयउ भिनुसारा। बीना बेनु संख धुनि द्वारा ॥ पढ़हिं भाट गुन गावहिं गायक। सुनत नृपहि जनु लागहिं सायक ॥
मंगल सकल सोहाहिं न कैसें। सहगामिनिहि बिभूषन जैसें ॥ तेहिं निसि नीद परी नहि काहू। राम दरस लालसा उछाहू ॥
Doha / दोहा
दो. द्वार भीर सेवक सचिव कहहिं उदित रबि देखि। जागेउ अजहुँ न अवधपति कारनु कवनु बिसेषि ॥ ३७ ॥
Chaupai / चोपाई
पछिले पहर भूपु नित जागा। आजु हमहि बड़ अचरजु लागा ॥ जाहु सुमंत्र जगावहु जाई। कीजिअ काजु रजायसु पाई ॥
गए सुमंत्रु तब राउर माही। देखि भयावन जात डेराहीं ॥ धाइ खाइ जनु जाइ न हेरा। मानहुँ बिपति बिषाद बसेरा ॥
पूछें कोउ न ऊतरु देई। गए जेंहिं भवन भूप कैकैई ॥ कहि जयजीव बैठ सिरु नाई। दैखि भूप गति गयउ सुखाई ॥
सोच बिकल बिबरन महि परेऊ। मानहुँ कमल मूलु परिहरेऊ ॥ सचिउ सभीत सकइ नहिं पूँछी। बोली असुभ भरी सुभ छूछी ॥
Doha / दोहा
दो. परी न राजहि नीद निसि हेतु जान जगदीसु। रामु रामु रटि भोरु किय कहइ न मरमु महीसु ॥ ३८ ॥
Chaupai / चोपाई
आनहु रामहि बेगि बोलाई। समाचार तब पूँछेहु आई ॥ चलेउ सुमंत्र राय रूख जानी। लखी कुचालि कीन्हि कछु रानी ॥
सोच बिकल मग परइ न पाऊ। रामहि बोलि कहिहि का राऊ ॥ उर धरि धीरजु गयउ दुआरें। पूछँहिं सकल देखि मनु मारें ॥
समाधानु करि सो सबही का। गयउ जहाँ दिनकर कुल टीका ॥ रामु सुमंत्रहि आवत देखा। आदरु कीन्ह पिता सम लेखा ॥
निरखि बदनु कहि भूप रजाई। रघुकुलदीपहि चलेउ लेवाई ॥ रामु कुभाँति सचिव सँग जाहीं। देखि लोग जहँ तहँ बिलखाहीं ॥
Doha / दोहा
दो. जाइ दीख रघुबंसमनि नरपति निपट कुसाजु ॥ सहमि परेउ लखि सिंघिनिहि मनहुँ बृद्ध गजराजु ॥ ३९ ॥
Chaupai / चोपाई
सूखहिं अधर जरइ सबु अंगू। मनहुँ दीन मनिहीन भुअंगू ॥ सरुष समीप दीखि कैकेई। मानहुँ मीचु घरी गनि लेई ॥
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