Ram Charita Manas

Ayodhya-Kanda

Conversation between Dasharatha-Kaikei and Dasharatha mourning, Sumantra going to the palace and returning from there. Sumantra sending Shri Rama to the palace.

ॐ श्री परमात्मने नमः


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संस्कृत्म
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ॐ श्री गणेशाय नमः

Chanda / छन्द

छं. केहि हेतु रानि रिसानि परसत पानि पतिहि नेवारई। मानहुँ सरोष भुअंग भामिनि बिषम भाँति निहारई ॥ दोउ बासना रसना दसन बर मरम ठाहरु देखई। तुलसी नृपति भवतब्यता बस काम कौतुक लेखई ॥

Chapter : 5 Number : 27

Sortha / सोरठा

सो. बार बार कह राउ सुमुखि सुलोचिनि पिकबचनि। कारन मोहि सुनाउ गजगामिनि निज कोप कर ॥ २५ ॥

Chapter : 5 Number : 28

Chaupai / चोपाई

अनहित तोर प्रिया केइँ कीन्हा। केहि दुइ सिर केहि जमु चह लीन्हा ॥ कहु केहि रंकहि करौ नरेसू। कहु केहि नृपहि निकासौं देसू ॥

Chapter : 5 Number : 28

सकउँ तोर अरि अमरउ मारी। काह कीट बपुरे नर नारी ॥ जानसि मोर सुभाउ बरोरू। मनु तव आनन चंद चकोरू ॥

Chapter : 5 Number : 28

प्रिया प्रान सुत सरबसु मोरें। परिजन प्रजा सकल बस तोरें ॥ जौं कछु कहौ कपटु करि तोही। भामिनि राम सपथ सत मोही ॥

Chapter : 5 Number : 28

बिहसि मागु मनभावति बाता। भूषन सजहि मनोहर गाता ॥ घरी कुघरी समुझि जियँ देखू। बेगि प्रिया परिहरहि कुबेषू ॥

Chapter : 5 Number : 28

Doha / दोहा

दो. यह सुनि मन गुनि सपथ बड़ि बिहसि उठी मतिमंद। भूषन सजति बिलोकि मृगु मनहुँ किरातिनि फंद ॥ २६ ॥

Chapter : 5 Number : 29

Chaupai / चोपाई

पुनि कह राउ सुह्रद जियँ जानी। प्रेम पुलकि मृदु मंजुल बानी ॥ भामिनि भयउ तोर मनभावा। घर घर नगर अनंद बधावा ॥

Chapter : 5 Number : 29

रामहि देउँ कालि जुबराजू। सजहि सुलोचनि मंगल साजू ॥ दलकि उठेउ सुनि ह्रदउ कठोरू। जनु छुइ गयउ पाक बरतोरू ॥

Chapter : 5 Number : 29

ऐसिउ पीर बिहसि तेहि गोई। चोर नारि जिमि प्रगटि न रोई ॥ लखहिं न भूप कपट चतुराई। कोटि कुटिल मनि गुरू पढ़ाई ॥

Chapter : 5 Number : 29

जद्यपि नीति निपुन नरनाहू। नारिचरित जलनिधि अवगाहू ॥ कपट सनेहु बढ़ाइ बहोरी। बोली बिहसि नयन मुहु मोरी ॥

Chapter : 5 Number : 29

Doha / दोहा

दो. मागु मागु पै कहहु पिय कबहुँ न देहु न लेहु। देन कहेहु बरदान दुइ तेउ पावत संदेहु ॥ २७ ॥

Chapter : 5 Number : 30

Chaupai / चोपाई

जानेउँ मरमु राउ हँसि कहई। तुम्हहि कोहाब परम प्रिय अहई ॥ थाति राखि न मागिहु काऊ। बिसरि गयउ मोहि भोर सुभाऊ ॥

Chapter : 5 Number : 30

झूठेहुँ हमहि दोषु जनि देहू। दुइ कै चारि मागि मकु लेहू ॥ रघुकुल रीति सदा चलि आई। प्रान जाहुँ बरु बचनु न जाई ॥

Chapter : 5 Number : 30

नहिं असत्य सम पातक पुंजा। गिरि सम होहिं कि कोटिक गुंजा ॥ सत्यमूल सब सुकृत सुहाए। बेद पुरान बिदित मनु गाए ॥

Chapter : 5 Number : 30

तेहि पर राम सपथ करि आई। सुकृत सनेह अवधि रघुराई ॥ बात दृढ़ाइ कुमति हँसि बोली। कुमत कुबिहग कुलह जनु खोली ॥

Chapter : 5 Number : 30

Doha / दोहा

दो. भूप मनोरथ सुभग बनु सुख सुबिहंग समाजु। भिल्लनि जिमि छाड़न चहति बचनु भयंकरु बाजु ॥ २८ ॥

Chapter : 5 Number : 31

Chaupai / चोपाई

सुनहु प्रानप्रिय भावत जी का। देहु एक बर भरतहि टीका ॥ मागउँ दूसर बर कर जोरी। पुरवहु नाथ मनोरथ मोरी ॥

Chapter : 5 Number : 31

तापस बेष बिसेषि उदासी। चौदह बरिस रामु बनबासी ॥ सुनि मृदु बचन भूप हियँ सोकू। ससि कर छुअत बिकल जिमि कोकू ॥

Chapter : 5 Number : 31

गयउ सहमि नहिं कछु कहि आवा। जनु सचान बन झपटेउ लावा ॥ बिबरन भयउ निपट नरपालू। दामिनि हनेउ मनहुँ तरु तालू ॥

Chapter : 5 Number : 31

माथे हाथ मूदि दोउ लोचन। तनु धरि सोचु लाग जनु सोचन ॥ मोर मनोरथु सुरतरु फूला। फरत करिनि जिमि हतेउ समूला ॥

Chapter : 5 Number : 31

अवध उजारि कीन्हि कैकेईं। दीन्हसि अचल बिपति कै नेईं ॥

Chapter : 5 Number : 31

Doha / दोहा

दो. कवनें अवसर का भयउ गयउँ नारि बिस्वास। जोग सिद्धि फल समय जिमि जतिहि अबिद्या नास ॥ २९ ॥

Chapter : 5 Number : 32

Chaupai / चोपाई

एहि बिधि राउ मनहिं मन झाँखा। देखि कुभाँति कुमति मन माखा ॥ भरतु कि राउर पूत न होहीं। आनेहु मोल बेसाहि कि मोही ॥

Chapter : 5 Number : 32

जो सुनि सरु अस लाग तुम्हारें। काहे न बोलहु बचनु सँभारे ॥ देहु उतरु अनु करहु कि नाहीं। सत्यसंध तुम्ह रघुकुल माहीं ॥

Chapter : 5 Number : 32

देन कहेहु अब जनि बरु देहू। तजहुँ सत्य जग अपजसु लेहू ॥ सत्य सराहि कहेहु बरु देना। जानेहु लेइहि मागि चबेना ॥

Chapter : 5 Number : 32

सिबि दधीचि बलि जो कछु भाषा। तनु धनु तजेउ बचन पनु राखा ॥ अति कटु बचन कहति कैकेई। मानहुँ लोन जरे पर देई ॥

Chapter : 5 Number : 32

Doha / दोहा

दो. धरम धुरंधर धीर धरि नयन उघारे रायँ। सिरु धुनि लीन्हि उसास असि मारेसि मोहि कुठायँ ॥ ३० ॥

Chapter : 5 Number : 33

Chaupai / चोपाई

आगें दीखि जरत रिस भारी। मनहुँ रोष तरवारि उघारी ॥ मूठि कुबुद्धि धार निठुराई। धरी कूबरीं सान बनाई ॥

Chapter : 5 Number : 33

लखी महीप कराल कठोरा। सत्य कि जीवनु लेइहि मोरा ॥ बोले राउ कठिन करि छाती। बानी सबिनय तासु सोहाती ॥

Chapter : 5 Number : 33

प्रिया बचन कस कहसि कुभाँती। भीर प्रतीति प्रीति करि हाँती ॥ मोरें भरतु रामु दुइ आँखी। सत्य कहउँ करि संकरू साखी ॥

Chapter : 5 Number : 33

अवसि दूतु मैं पठइब प्राता। ऐहहिं बेगि सुनत दोउ भ्राता ॥ सुदिन सोधि सबु साजु सजाई। देउँ भरत कहुँ राजु बजाई ॥

Chapter : 5 Number : 33

Doha / दोहा

दो. लोभु न रामहि राजु कर बहुत भरत पर प्रीति। मैं बड़ छोट बिचारि जियँ करत रहेउँ नृपनीति ॥ ३१ ॥

Chapter : 5 Number : 34

Chaupai / चोपाई

राम सपथ सत कहूँ सुभाऊ। राममातु कछु कहेउ न काऊ ॥ मैं सबु कीन्ह तोहि बिनु पूँछें। तेहि तें परेउ मनोरथु छूछें ॥

Chapter : 5 Number : 34

रिस परिहरू अब मंगल साजू। कछु दिन गएँ भरत जुबराजू ॥ एकहि बात मोहि दुखु लागा। बर दूसर असमंजस मागा ॥

Chapter : 5 Number : 34

अजहुँ हृदय जरत तेहि आँचा। रिस परिहास कि साँचेहुँ साँचा ॥ कहु तजि रोषु राम अपराधू। सबु कोउ कहइ रामु सुठि साधू ॥

Chapter : 5 Number : 34

तुहूँ सराहसि करसि सनेहू। अब सुनि मोहि भयउ संदेहू ॥ जासु सुभाउ अरिहि अनुकूला। सो किमि करिहि मातु प्रतिकूला ॥

Chapter : 5 Number : 34

Doha / दोहा

दो. प्रिया हास रिस परिहरहि मागु बिचारि बिबेकु। जेहिं देखाँ अब नयन भरि भरत राज अभिषेकु ॥ ३२ ॥

Chapter : 5 Number : 35

Chaupai / चोपाई

जिऐ मीन बरू बारि बिहीना। मनि बिनु फनिकु जिऐ दुख दीना ॥ कहउँ सुभाउ न छलु मन माहीं। जीवनु मोर राम बिनु नाहीं ॥

Chapter : 5 Number : 35

समुझि देखु जियँ प्रिया प्रबीना। जीवनु राम दरस आधीना ॥ सुनि म्रदु बचन कुमति अति जरई। मनहुँ अनल आहुति घृत परई ॥

Chapter : 5 Number : 35

कहइ करहु किन कोटि उपाया। इहाँ न लागिहि राउरि माया ॥ देहु कि लेहु अजसु करि नाहीं। मोहि न बहुत प्रपंच सोहाहीं।

Chapter : 5 Number : 35

रामु साधु तुम्ह साधु सयाने। राममातु भलि सब पहिचाने ॥ जस कौसिलाँ मोर भल ताका। तस फलु उन्हहि देउँ करि साका ॥

Chapter : 5 Number : 35

Doha / दोहा

दो. होत प्रात मुनिबेष धरि जौं न रामु बन जाहिं। मोर मरनु राउर अजस नृप समुझिअ मन माहिं ॥ ३३ ॥

Chapter : 5 Number : 36

Chaupai / चोपाई

अस कहि कुटिल भई उठि ठाढ़ी। मानहुँ रोष तरंगिनि बाढ़ी ॥ पाप पहार प्रगट भइ सोई। भरी क्रोध जल जाइ न जोई ॥

Chapter : 5 Number : 36

दोउ बर कूल कठिन हठ धारा। भवँर कूबरी बचन प्रचारा ॥ ढाहत भूपरूप तरु मूला। चली बिपति बारिधि अनुकूला ॥

Chapter : 5 Number : 36

लखी नरेस बात फुरि साँची। तिय मिस मीचु सीस पर नाची ॥ गहि पद बिनय कीन्ह बैठारी। जनि दिनकर कुल होसि कुठारी ॥

Chapter : 5 Number : 36

मागु माथ अबहीं देउँ तोही। राम बिरहँ जनि मारसि मोही ॥ राखु राम कहुँ जेहि तेहि भाँती। नाहिं त जरिहि जनम भरि छाती ॥

Chapter : 5 Number : 36

Doha / दोहा

दो. देखी ब्याधि असाध नृपु परेउ धरनि धुनि माथ। कहत परम आरत बचन राम राम रघुनाथ ॥ ३४ ॥

Chapter : 5 Number : 37

Chaupai / चोपाई

ब्याकुल राउ सिथिल सब गाता। करिनि कलपतरु मनहुँ निपाता ॥ कंठु सूख मुख आव न बानी। जनु पाठीनु दीन बिनु पानी ॥

Chapter : 5 Number : 37

पुनि कह कटु कठोर कैकेई। मनहुँ घाय महुँ माहुर देई ॥ जौं अंतहुँ अस करतबु रहेऊ। मागु मागु तुम्ह केहिं बल कहेऊ ॥

Chapter : 5 Number : 37

दुइ कि होइ एक समय भुआला। हँसब ठठाइ फुलाउब गाला ॥ दानि कहाउब अरु कृपनाई। होइ कि खेम कुसल रौताई ॥

Chapter : 5 Number : 37

छाड़हु बचनु कि धीरजु धरहू। जनि अबला जिमि करुना करहू ॥ तनु तिय तनय धामु धनु धरनी। सत्यसंध कहुँ तृन सम बरनी ॥

Chapter : 5 Number : 37

Doha / दोहा

दो. मरम बचन सुनि राउ कह कहु कछु दोषु न तोर। लागेउ तोहि पिसाच जिमि कालु कहावत मोर ॥ ३५ ॥ û

Chapter : 5 Number : 38

Chaupai / चोपाई

चहत न भरत भूपतहि भोरें। बिधि बस कुमति बसी जिय तोरें ॥ सो सबु मोर पाप परिनामू। भयउ कुठाहर जेहिं बिधि बामू ॥

Chapter : 5 Number : 38

सुबस बसिहि फिरि अवध सुहाई। सब गुन धाम राम प्रभुताई ॥ करिहहिं भाइ सकल सेवकाई। होइहि तिहुँ पुर राम बड़ाई ॥

Chapter : 5 Number : 38

तोर कलंकु मोर पछिताऊ। मुएहुँ न मिटहि न जाइहि काऊ ॥ अब तोहि नीक लाग करु सोई। लोचन ओट बैठु मुहु गोई ॥

Chapter : 5 Number : 38

जब लगि जिऔं कहउँ कर जोरी। तब लगि जनि कछु कहसि बहोरी ॥ फिरि पछितैहसि अंत अभागी। मारसि गाइ नहारु लागी ॥

Chapter : 5 Number : 38

Doha / दोहा

दो. परेउ राउ कहि कोटि बिधि काहे करसि निदानु। कपट सयानि न कहति कछु जागति मनहुँ मसानु ॥ ३६ ॥

Chapter : 5 Number : 39

Chaupai / चोपाई

राम राम रट बिकल भुआलू। जनु बिनु पंख बिहंग बेहालू ॥ हृदयँ मनाव भोरु जनि होई। रामहि जाइ कहै जनि कोई ॥

Chapter : 5 Number : 39

उदउ करहु जनि रबि रघुकुल गुर। अवध बिलोकि सूल होइहि उर ॥ भूप प्रीति कैकइ कठिनाई। उभय अवधि बिधि रची बनाई ॥

Chapter : 5 Number : 39

बिलपत नृपहि भयउ भिनुसारा। बीना बेनु संख धुनि द्वारा ॥ पढ़हिं भाट गुन गावहिं गायक। सुनत नृपहि जनु लागहिं सायक ॥

Chapter : 5 Number : 39

मंगल सकल सोहाहिं न कैसें। सहगामिनिहि बिभूषन जैसें ॥ तेहिं निसि नीद परी नहि काहू। राम दरस लालसा उछाहू ॥

Chapter : 5 Number : 39

Doha / दोहा

दो. द्वार भीर सेवक सचिव कहहिं उदित रबि देखि। जागेउ अजहुँ न अवधपति कारनु कवनु बिसेषि ॥ ३७ ॥

Chapter : 5 Number : 40

Chaupai / चोपाई

पछिले पहर भूपु नित जागा। आजु हमहि बड़ अचरजु लागा ॥ जाहु सुमंत्र जगावहु जाई। कीजिअ काजु रजायसु पाई ॥

Chapter : 5 Number : 40

गए सुमंत्रु तब राउर माही। देखि भयावन जात डेराहीं ॥ धाइ खाइ जनु जाइ न हेरा। मानहुँ बिपति बिषाद बसेरा ॥

Chapter : 5 Number : 40

पूछें कोउ न ऊतरु देई। गए जेंहिं भवन भूप कैकैई ॥ कहि जयजीव बैठ सिरु नाई। दैखि भूप गति गयउ सुखाई ॥

Chapter : 5 Number : 40

सोच बिकल बिबरन महि परेऊ। मानहुँ कमल मूलु परिहरेऊ ॥ सचिउ सभीत सकइ नहिं पूँछी। बोली असुभ भरी सुभ छूछी ॥

Chapter : 5 Number : 40

Doha / दोहा

दो. परी न राजहि नीद निसि हेतु जान जगदीसु। रामु रामु रटि भोरु किय कहइ न मरमु महीसु ॥ ३८ ॥

Chapter : 5 Number : 41

Chaupai / चोपाई

आनहु रामहि बेगि बोलाई। समाचार तब पूँछेहु आई ॥ चलेउ सुमंत्र राय रूख जानी। लखी कुचालि कीन्हि कछु रानी ॥

Chapter : 5 Number : 41

सोच बिकल मग परइ न पाऊ। रामहि बोलि कहिहि का राऊ ॥ उर धरि धीरजु गयउ दुआरें। पूछँहिं सकल देखि मनु मारें ॥

Chapter : 5 Number : 41

समाधानु करि सो सबही का। गयउ जहाँ दिनकर कुल टीका ॥ रामु सुमंत्रहि आवत देखा। आदरु कीन्ह पिता सम लेखा ॥

Chapter : 5 Number : 41

निरखि बदनु कहि भूप रजाई। रघुकुलदीपहि चलेउ लेवाई ॥ रामु कुभाँति सचिव सँग जाहीं। देखि लोग जहँ तहँ बिलखाहीं ॥

Chapter : 5 Number : 41

Doha / दोहा

दो. जाइ दीख रघुबंसमनि नरपति निपट कुसाजु ॥ सहमि परेउ लखि सिंघिनिहि मनहुँ बृद्ध गजराजु ॥ ३९ ॥

Chapter : 5 Number : 42

Chaupai / चोपाई

सूखहिं अधर जरइ सबु अंगू। मनहुँ दीन मनिहीन भुअंगू ॥ सरुष समीप दीखि कैकेई। मानहुँ मीचु घरी गनि लेई ॥

Chapter : 5 Number : 42

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