ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Chaupai / चोपाई
करुनामय मृदु राम सुभाऊ। प्रथम दीख दुखु सुना न काऊ ॥ तदपि धीर धरि समउ बिचारी। पूँछी मधुर बचन महतारी ॥
मोहि कहु मातु तात दुख कारन। करिअ जतन जेहिं होइ निवारन ॥ सुनहु राम सबु कारन एहू। राजहि तुम पर बहुत सनेहू ॥
देन कहेन्हि मोहि दुइ बरदाना। मागेउँ जो कछु मोहि सोहाना।सो सुनि भयउ भूप उर सोचू। छाड़ि न सकहिं तुम्हार सँकोचू ॥
Doha / दोहा
दो. सुत सनेह इत बचनु उत संकट परेउ नरेसु। सकहु न आयसु धरहु सिर मेटहु कठिन कलेसु ॥ ४० ॥
Chaupai / चोपाई
निधरक बैठि कहइ कटु बानी। सुनत कठिनता अति अकुलानी ॥ जीभ कमान बचन सर नाना। मनहुँ महिप मृदु लच्छ समाना ॥
जनु कठोरपनु धरें सरीरू। सिखइ धनुषबिद्या बर बीरू ॥ सब प्रसंगु रघुपतिहि सुनाई। बैठि मनहुँ तनु धरि निठुराई ॥
मन मुसकाइ भानुकुल भानु। रामु सहज आनंद निधानू ॥ बोले बचन बिगत सब दूषन। मृदु मंजुल जनु बाग बिभूषन ॥
सुनु जननी सोइ सुतु बड़भागी। जो पितु मातु बचन अनुरागी ॥ तनय मातु पितु तोषनिहारा। दुर्लभ जननि सकल संसारा ॥
Doha / दोहा
दो. मुनिगन मिलनु बिसेषि बन सबहि भाँति हित मोर। तेहि महँ पितु आयसु बहुरि संमत जननी तोर ॥ ४१ ॥
Chaupai / चोपाई
भरत प्रानप्रिय पावहिं राजू। बिधि सब बिधि मोहि सनमुख आजु।जों न जाउँ बन ऐसेहु काजा। प्रथम गनिअ मोहि मूढ़ समाजा ॥
सेवहिं अरँडु कलपतरु त्यागी। परिहरि अमृत लेहिं बिषु मागी ॥ तेउ न पाइ अस समउ चुकाहीं। देखु बिचारि मातु मन माहीं ॥
अंब एक दुखु मोहि बिसेषी। निपट बिकल नरनायकु देखी ॥ थोरिहिं बात पितहि दुख भारी। होति प्रतीति न मोहि महतारी ॥
राउ धीर गुन उदधि अगाधू। भा मोहि ते कछु बड़ अपराधू ॥ जातें मोहि न कहत कछु राऊ। मोरि सपथ तोहि कहु सतिभाऊ ॥
Doha / दोहा
दो. सहज सरल रघुबर बचन कुमति कुटिल करि जान। चलइ जोंक जल बक्रगति जद्यपि सलिलु समान ॥ ४२ ॥
Chaupai / चोपाई
रहसी रानि राम रुख पाई। बोली कपट सनेहु जनाई ॥ सपथ तुम्हार भरत कै आना। हेतु न दूसर मै कछु जाना ॥
तुम्ह अपराध जोगु नहिं ताता। जननी जनक बंधु सुखदाता ॥ राम सत्य सबु जो कछु कहहू। तुम्ह पितु मातु बचन रत अहहू ॥
पितहि बुझाइ कहहु बलि सोई। चौथेंपन जेहिं अजसु न होई ॥ तुम्ह सम सुअन सुकृत जेहिं दीन्हे। उचित न तासु निरादरु कीन्हे ॥
लागहिं कुमुख बचन सुभ कैसे। मगहँ गयादिक तीरथ जैसे ॥ रामहि मातु बचन सब भाए। जिमि सुरसरि गत सलिल सुहाए ॥
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