ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Doha / दोहा
दो. गइ मुरुछा रामहि सुमिरि नृप फिरि करवट लीन्ह। सचिव राम आगमन कहि बिनय समय सम कीन्ह ॥ ४३ ॥
Chaupai / चोपाई
अवनिप अकनि रामु पगु धारे। धरि धीरजु तब नयन उघारे ॥ सचिवँ सँभारि राउ बैठारे। चरन परत नृप रामु निहारे ॥
लिए सनेह बिकल उर लाई। गै मनि मनहुँ फनिक फिरि पाई ॥ रामहि चितइ रहेउ नरनाहू। चला बिलोचन बारि प्रबाहू ॥
सोक बिबस कछु कहै न पारा। हृदयँ लगावत बारहिं बारा ॥ बिधिहि मनाव राउ मन माहीं। जेहिं रघुनाथ न कानन जाहीं ॥
सुमिरि महेसहि कहइ निहोरी। बिनती सुनहु सदासिव मोरी ॥ आसुतोष तुम्ह अवढर दानी। आरति हरहु दीन जनु जानी ॥
Doha / दोहा
दो. तुम्ह प्रेरक सब के हृदयँ सो मति रामहि देहु। बचनु मोर तजि रहहि घर परिहरि सीलु सनेहु ॥ ४४ ॥
Chaupai / चोपाई
अजसु होउ जग सुजसु नसाऊ। नरक परौ बरु सुरपुरु जाऊ ॥ सब दुख दुसह सहावहु मोही। लोचन ओट रामु जनि होंही ॥
अस मन गुनइ राउ नहिं बोला। पीपर पात सरिस मनु डोला ॥ रघुपति पितहि प्रेमबस जानी। पुनि कछु कहिहि मातु अनुमानी ॥
देस काल अवसर अनुसारी। बोले बचन बिनीत बिचारी ॥ तात कहउँ कछु करउँ ढिठाई। अनुचितु छमब जानि लरिकाई ॥
अति लघु बात लागि दुखु पावा। काहुँ न मोहि कहि प्रथम जनावा ॥ देखि गोसाइँहि पूँछिउँ माता। सुनि प्रसंगु भए सीतल गाता ॥
Doha / दोहा
दो. मंगल समय सनेह बस सोच परिहरिअ तात। आयसु देइअ हरषि हियँ कहि पुलके प्रभु गात ॥ ४५ ॥
Chaupai / चोपाई
धन्य जनमु जगतीतल तासू। पितहि प्रमोदु चरित सुनि जासू ॥ चारि पदारथ करतल ताकें। प्रिय पितु मातु प्रान सम जाकें ॥
आयसु पालि जनम फलु पाई। ऐहउँ बेगिहिं होउ रजाई ॥ बिदा मातु सन आवउँ मागी। चलिहउँ बनहि बहुरि पग लागी ॥
अस कहि राम गवनु तब कीन्हा। भूप सोक बसु उतरु न दीन्हा ॥ नगर ब्यापि गइ बात सुतीछी। छुअत चढ़ी जनु सब तन बीछी ॥
सुनि भए बिकल सकल नर नारी। बेलि बिटप जिमि देखि दवारी ॥ जो जहँ सुनइ धुनइ सिरु सोई। बड़ बिषादु नहिं धीरजु होई ॥
Doha / दोहा
दो. मुख सुखाहिं लोचन स्त्रवहि सोकु न हृदयँ समाइ। मनहुँ करुन रस कटकई उतरी अवध बजाइ ॥ ४६ ॥
Chaupai / चोपाई
मिलेहि माझ बिधि बात बेगारी। जहँ तहँ देहिं कैकेइहि गारी ॥ एहि पापिनिहि बूझि का परेऊ। छाइ भवन पर पावकु धरेऊ ॥
निज कर नयन काढ़ि चह दीखा। डारि सुधा बिषु चाहत चीखा ॥ कुटिल कठोर कुबुद्धि अभागी। भइ रघुबंस बेनु बन आगी ॥
पालव बैठि पेड़ु एहिं काटा। सुख महुँ सोक ठाटु धरि ठाटा ॥ सदा रामु एहि प्रान समाना। कारन कवन कुटिलपनु ठाना ॥
सत्य कहहिं कबि नारि सुभाऊ। सब बिधि अगहु अगाध दुराऊ ॥ निज प्रतिबिंबु बरुकु गहि जाई। जानि न जाइ नारि गति भाई ॥
Doha / दोहा
दो. काह न पावकु जारि सक का न समुद्र समाइ। का न करै अबला प्रबल केहि जग कालु न खाइ ॥ ४७ ॥
Chaupai / चोपाई
का सुनाइ बिधि काह सुनावा। का देखाइ चह काह देखावा ॥ एक कहहिं भल भूप न कीन्हा। बरु बिचारि नहिं कुमतिहि दीन्हा ॥
जो हठि भयउ सकल दुख भाजनु। अबला बिबस ग्यानु गुनु गा जनु ॥ एक धरम परमिति पहिचाने। नृपहि दोसु नहिं देहिं सयाने ॥
सिबि दधीचि हरिचंद कहानी। एक एक सन कहहिं बखानी ॥ एक भरत कर संमत कहहीं। एक उदास भायँ सुनि रहहीं ॥
कान मूदि कर रद गहि जीहा। एक कहहिं यह बात अलीहा ॥ सुकृत जाहिं अस कहत तुम्हारे। रामु भरत कहुँ प्रानपिआरे ॥
Doha / दोहा
दो. चंदु चवै बरु अनल कन सुधा होइ बिषतूल। सपनेहुँ कबहुँ न करहिं किछु भरतु राम प्रतिकूल ॥ ४८ ॥
Chaupai / चोपाई
एक बिधातहिं दूषनु देंहीं। सुधा देखाइ दीन्ह बिषु जेहीं ॥ खरभरु नगर सोचु सब काहू। दुसह दाहु उर मिटा उछाहू ॥
बिप्रबधू कुलमान्य जठेरी। जे प्रिय परम कैकेई केरी ॥ लगीं देन सिख सीलु सराही। बचन बानसम लागहिं ताही ॥
भरतु न मोहि प्रिय राम समाना। सदा कहहु यहु सबु जगु जाना ॥ करहु राम पर सहज सनेहू। केहिं अपराध आजु बनु देहू ॥
कबहुँ न कियहु सवति आरेसू। प्रीति प्रतीति जान सबु देसू ॥ कौसल्याँ अब काह बिगारा। तुम्ह जेहि लागि बज्र पुर पारा ॥
Doha / दोहा
दो. सीय कि पिय सँगु परिहरिहि लखनु कि रहिहहिं धाम। राजु कि भूँजब भरत पुर नृपु कि जीहि बिनु राम ॥ ४९ ॥
Chaupai / चोपाई
अस बिचारि उर छाड़हु कोहू। सोक कलंक कोठि जनि होहू ॥ भरतहि अवसि देहु जुबराजू। कानन काह राम कर काजू ॥
नाहिन रामु राज के भूखे। धरम धुरीन बिषय रस रूखे ॥ गुर गृह बसहुँ रामु तजि गेहू। नृप सन अस बरु दूसर लेहू ॥
जौं नहिं लगिहहु कहें हमारे। नहिं लागिहि कछु हाथ तुम्हारे ॥ जौं परिहास कीन्हि कछु होई। तौ कहि प्रगट जनावहु सोई ॥
राम सरिस सुत कानन जोगू। काह कहिहि सुनि तुम्ह कहुँ लोगू ॥ उठहु बेगि सोइ करहु उपाई। जेहि बिधि सोकु कलंकु नसाई ॥
Chanda / छन्द
छं. जेहि भाँति सोकु कलंकु जाइ उपाय करि कुल पालही। हठि फेरु रामहि जात बन जनि बात दूसरि चालही ॥ जिमि भानु बिनु दिनु प्रान बिनु तनु चंद बिनु जिमि जामिनी। तिमि अवध तुलसीदास प्रभु बिनु समुझि धौं जियँ भामिनी ॥
Sortha / सोरठा
सो. सखिन्ह सिखावनु दीन्ह सुनत मधुर परिनाम हित। तेइँ कछु कान न कीन्ह कुटिल प्रबोधी कूबरी ॥ ५० ॥
Chaupai / चोपाई
उतरु न देइ दुसह रिस रूखी। मृगिन्ह चितव जनु बाघिनि भूखी ॥ ब्याधि असाधि जानि तिन्ह त्यागी। चलीं कहत मतिमंद अभागी ॥
राजु करत यह दैअँ बिगोई। कीन्हेसि अस जस करइ न कोई ॥ एहि बिधि बिलपहिं पुर नर नारीं। देहिं कुचालिहि कोटिक गारीं ॥
जरहिं बिषम जर लेहिं उसासा। कवनि राम बिनु जीवन आसा ॥ बिपुल बियोग प्रजा अकुलानी। जनु जलचर गन सूखत पानी ॥
Sign In