ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Chaupai / चोपाई
मातु समीप कहत सकुचाहीं। बोले समउ समुझि मन माहीं ॥ राजकुमारि सिखावन सुनहू। आन भाँति जियँ जनि कछु गुनहू ॥
आपन मोर नीक जौं चहहू। बचनु हमार मानि गृह रहहू ॥ आयसु मोर सासु सेवकाई। सब बिधि भामिनि भवन भलाई ॥
एहि ते अधिक धरमु नहिं दूजा। सादर सासु ससुर पद पूजा ॥ जब जब मातु करिहि सुधि मोरी। होइहि प्रेम बिकल मति भोरी ॥
तब तब तुम्ह कहि कथा पुरानी। सुंदरि समुझाएहु मृदु बानी ॥ कहउँ सुभायँ सपथ सत मोही। सुमुखि मातु हित राखउँ तोही ॥
Doha / दोहा
दो. गुर श्रुति संमत धरम फलु पाइअ बिनहिं कलेस। हठ बस सब संकट सहे गालव नहुष नरेस ॥ ६१ ॥
Chaupai / चोपाई
मैं पुनि करि प्रवान पितु बानी। बेगि फिरब सुनु सुमुखि सयानी ॥ दिवस जात नहिं लागिहि बारा। सुंदरि सिखवनु सुनहु हमारा ॥
जौ हठ करहु प्रेम बस बामा। तौ तुम्ह दुखु पाउब परिनामा ॥ काननु कठिन भयंकरु भारी। घोर घामु हिम बारि बयारी ॥
कुस कंटक मग काँकर नाना। चलब पयादेहिं बिनु पदत्राना ॥ चरन कमल मुदु मंजु तुम्हारे। मारग अगम भूमिधर भारे ॥
कंदर खोह नदीं नद नारे। अगम अगाध न जाहिं निहारे ॥ भालु बाघ बृक केहरि नागा। करहिं नाद सुनि धीरजु भागा ॥
Doha / दोहा
दो. भूमि सयन बलकल बसन असनु कंद फल मूल। ते कि सदा सब दिन मिलिहिं सबुइ समय अनुकूल ॥ ६२ ॥
Chaupai / चोपाई
नर अहार रजनीचर चरहीं। कपट बेष बिधि कोटिक करहीं ॥ लागइ अति पहार कर पानी। बिपिन बिपति नहिं जाइ बखानी ॥
ब्याल कराल बिहग बन घोरा। निसिचर निकर नारि नर चोरा ॥ डरपहिं धीर गहन सुधि आएँ। मृगलोचनि तुम्ह भीरु सुभाएँ ॥
हंसगवनि तुम्ह नहिं बन जोगू। सुनि अपजसु मोहि देइहि लोगू ॥ मानस सलिल सुधाँ प्रतिपाली। जिअइ कि लवन पयोधि मराली ॥
नव रसाल बन बिहरनसीला। सोह कि कोकिल बिपिन करीला ॥ रहहु भवन अस हृदयँ बिचारी। चंदबदनि दुखु कानन भारी ॥
Doha / दोहा
दो. सहज सुह्द गुर स्वामि सिख जो न करइ सिर मानि ॥ सो पछिताइ अघाइ उर अवसि होइ हित हानि ॥ ६३ ॥
Chaupai / चोपाई
सुनि मृदु बचन मनोहर पिय के। लोचन ललित भरे जल सिय के ॥ सीतल सिख दाहक भइ कैंसें। चकइहि सरद चंद निसि जैंसें ॥
उतरु न आव बिकल बैदेही। तजन चहत सुचि स्वामि सनेही ॥ बरबस रोकि बिलोचन बारी। धरि धीरजु उर अवनिकुमारी ॥
लागि सासु पग कह कर जोरी। छमबि देबि बड़ि अबिनय मोरी ॥ दीन्हि प्रानपति मोहि सिख सोई। जेहि बिधि मोर परम हित होई ॥
मैं पुनि समुझि दीखि मन माहीं। पिय बियोग सम दुखु जग नाहीं ॥
Doha / दोहा
दो. प्राननाथ करुनायतन सुंदर सुखद सुजान। तुम्ह बिनु रघुकुल कुमुद बिधु सुरपुर नरक समान ॥ ६४ ॥
Chaupai / चोपाई
मातु पिता भगिनी प्रिय भाई। प्रिय परिवारु सुह्रद समुदाई ॥ सासु ससुर गुर सजन सहाई। सुत सुंदर सुसील सुखदाई ॥
जहँ लगि नाथ नेह अरु नाते। पिय बिनु तियहि तरनिहु ते ताते ॥ तनु धनु धामु धरनि पुर राजू। पति बिहीन सबु सोक समाजू ॥
भोग रोगसम भूषन भारू। जम जातना सरिस संसारू ॥ प्राननाथ तुम्ह बिनु जग माहीं। मो कहुँ सुखद कतहुँ कछु नाहीं ॥
जिय बिनु देह नदी बिनु बारी। तैसिअ नाथ पुरुष बिनु नारी ॥ नाथ सकल सुख साथ तुम्हारें। सरद बिमल बिधु बदनु निहारें ॥
Doha / दोहा
दो. खग मृग परिजन नगरु बनु बलकल बिमल दुकूल। नाथ साथ सुरसदन सम परनसाल सुख मूल ॥ ६५ ॥
Chaupai / चोपाई
बनदेवीं बनदेव उदारा। करिहहिं सासु ससुर सम सारा ॥ कुस किसलय साथरी सुहाई। प्रभु सँग मंजु मनोज तुराई ॥
कंद मूल फल अमिअ अहारू। अवध सौध सत सरिस पहारू ॥ छिनु छिनु प्रभु पद कमल बिलोकि। रहिहउँ मुदित दिवस जिमि कोकी ॥
बन दुख नाथ कहे बहुतेरे। भय बिषाद परिताप घनेरे ॥ प्रभु बियोग लवलेस समाना। सब मिलि होहिं न कृपानिधाना ॥
अस जियँ जानि सुजान सिरोमनि। लेइअ संग मोहि छाड़िअ जनि ॥ बिनती बहुत करौं का स्वामी। करुनामय उर अंतरजामी ॥
Doha / दोहा
दो. राखिअ अवध जो अवधि लगि रहत न जनिअहिं प्रान। दीनबंधु संदर सुखद सील सनेह निधान ॥ ६६ ॥
Chaupai / चोपाई
मोहि मग चलत न होइहि हारी। छिनु छिनु चरन सरोज निहारी ॥ सबहि भाँति पिय सेवा करिहौं। मारग जनित सकल श्रम हरिहौं ॥
पाय पखारी बैठि तरु छाहीं। करिहउँ बाउ मुदित मन माहीं ॥ श्रम कन सहित स्याम तनु देखें। कहँ दुख समउ प्रानपति पेखें ॥
सम महि तृन तरुपल्लव डासी। पाग पलोटिहि सब निसि दासी ॥ बारबार मृदु मूरति जोही। लागहि तात बयारि न मोही।
को प्रभु सँग मोहि चितवनिहारा। सिंघबधुहि जिमि ससक सिआरा ॥ मैं सुकुमारि नाथ बन जोगू। तुम्हहि उचित तप मो कहुँ भोगू ॥
Doha / दोहा
दो. ऐसेउ बचन कठोर सुनि जौं न ह्रदउ बिलगान। तौ प्रभु बिषम बियोग दुख सहिहहिं पावँर प्रान ॥ ६७ ॥
Chaupai / चोपाई
अस कहि सीय बिकल भइ भारी। बचन बियोगु न सकी सँभारी ॥ देखि दसा रघुपति जियँ जाना। हठि राखें नहिं राखिहि प्राना ॥
कहेउ कृपाल भानुकुलनाथा। परिहरि सोचु चलहु बन साथा ॥ नहिं बिषाद कर अवसरु आजू। बेगि करहु बन गवन समाजू ॥
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