ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Chaupai / चोपाई
बंदउँ अवध पुरी अति पावनि । सरजू सरि कलि कलुष नसावनि ॥ प्रनवउँ पुर नर नारि बहोरी । ममता जिन्ह पर प्रभुहि न थोरी ॥
सिय निंदक अघ ओघ नसाए । लोक बिसोक बनाइ बसाए ॥ बंदउँ कौसल्या दिसि प्राची । कीरति जासु सकल जग माची ॥
प्रगटेउ जहँ रघुपति ससि चारू । बिस्व सुखद खल कमल तुसारू ॥ दसरथ राउ सहित सब रानी । सुकृत सुमंगल मूरति मानी ॥
करउँ प्रनाम करम मन बानी । करहु कृपा सुत सेवक जानी ॥ जिन्हहि बिरचि बड़ भयउ बिधाता । महिमा अवधि राम पितु माता ॥
Doha / दोहा
सो. बंदउँ अवध भुआल सत्य प्रेम जेहि राम पद । बिछुरत दीनदयाल प्रिय तनु तृन इव परिहरेउ ॥ १६ ॥
Chaupai / चोपाई
प्रनवउँ परिजन सहित बिदेहू । जाहि राम पद गूढ़ सनेहू ॥ जोग भोग महँ राखेउ गोई । राम बिलोकत प्रगटेउ सोई ॥
प्रनवउँ प्रथम भरत के चरना । जासु नेम ब्रत जाइ न बरना ॥ राम चरन पंकज मन जासू । लुबुध मधुप इव तजइ न पासू ॥
बंदउँ लछिमन पद जलजाता । सीतल सुभग भगत सुख दाता ॥ रघुपति कीरति बिमल पताका । दंड समान भयउ जस जाका ॥
सेष सहस्रसीस जग कारन । जो अवतरेउ भूमि भय टारन ॥ सदा सो सानुकूल रह मो पर । कृपासिंधु सौमित्रि गुनाकर ॥
रिपुसूदन पद कमल नमामी । सूर सुसील भरत अनुगामी ॥ महावीर बिनवउँ हनुमाना । राम जासु जस आप बखाना ॥
Sortha/ सोरठा
सो. प्रनवउँ पवनकुमार खल बन पावक ग्यानधन । जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर ॥ १७ ॥
Chaupai / चोपाई
कपिपति रीछ निसाचर राजा । अंगदादि जे कीस समाजा ॥ बंदउँ सब के चरन सुहाए । अधम सरीर राम जिन्ह पाए ॥
रघुपति चरन उपासक जेते । खग मृग सुर नर असुर समेते ॥ बंदउँ पद सरोज सब केरे । जे बिनु काम राम के चेरे ॥
सुक सनकादि भगत मुनि नारद । जे मुनिबर बिग्यान बिसारद ॥ प्रनवउँ सबहिं धरनि धरि सीसा । करहु कृपा जन जानि मुनीसा ॥
जनकसुता जग जननि जानकी । अतिसय प्रिय करुना निधान की ॥ ताके जुग पद कमल मनावउँ । जासु कृपाँ निरमल मति पावउँ ॥
पुनि मन बचन कर्म रघुनायक । चरन कमल बंदउँ सब लायक ॥ राजिवनयन धरें धनु सायक । भगत बिपति भंजन सुख दायक ॥
Doha / दोहा
दो. गिरा अरथ जल बीचि सम कहिअत भिन्न न भिन्न । बदउँ सीता राम पद जिन्हहि परम प्रिय खिन्न ॥ १८ ॥
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