ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Chaupai / चोपाई
मोरि सुधारिहि सो सब भाँती । जासु कृपा नहिं कृपाँ अघाती ॥ राम सुस्वामि कुसेवकु मोसो । निज दिसि दैखि दयानिधि पोसो ॥
लोकहुँ बेद सुसाहिब रीतीं । बिनय सुनत पहिचानत प्रीती ॥ गनी गरीब ग्रामनर नागर । पंडित मूढ़ मलीन उजागर ॥
सुकबि कुकबि निज मति अनुहारी । नृपहि सराहत सब नर नारी ॥ साधु सुजान सुसील नृपाला । ईस अंस भव परम कृपाला ॥
सुनि सनमानहिं सबहि सुबानी । भनिति भगति नति गति पहिचानी ॥ यह प्राकृत महिपाल सुभाऊ । जान सिरोमनि कोसलराऊ ॥
रीझत राम सनेह निसोतें । को जग मंद मलिनमति मोतें ॥
Doha / दोहा
दो. सठ सेवक की प्रीति रुचि रखिहहिं राम कृपालु । उपल किए जलजान जेहिं सचिव सुमति कपि भालु ॥ २८(क) ॥
हौहु कहावत सबु कहत राम सहत उपहास । साहिब सीतानाथ सो सेवक तुलसीदास ॥ २८(ख) ॥
Chaupai / चोपाई
अति बड़ि मोरि ढिठाई खोरी । सुनि अघ नरकहुँ नाक सकोरी ॥ समुझि सहम मोहि अपडर अपनें । सो सुधि राम कीन्हि नहिं सपनें ॥
सुनि अवलोकि सुचित चख चाही । भगति मोरि मति स्वामि सराही ॥ कहत नसाइ होइ हियँ नीकी । रीझत राम जानि जन जी की ॥
रहति न प्रभु चित चूक किए की । करत सुरति सय बार हिए की ॥ जेहिं अघ बधेउ ब्याध जिमि बाली । फिरि सुकंठ सोइ कीन्ह कुचाली ॥
सोइ करतूति बिभीषन केरी । सपनेहुँ सो न राम हियँ हेरी ॥ ते भरतहि भेंटत सनमाने । राजसभाँ रघुबीर बखाने ॥
Doha / दोहा
दो. प्रभु तरु तर कपि डार पर ते किए आपु समान ॥ तुलसी कहूँ न राम से साहिब सीलनिधान ॥ २९(क) ॥
राम निकाईं रावरी है सबही को नीक । जों यह साँची है सदा तौ नीको तुलसीक ॥ २९(ख) ॥
एहि बिधि निज गुन दोष कहि सबहि बहुरि सिरु नाइ । बरनउँ रघुबर बिसद जसु सुनि कलि कलुष नसाइ ॥ २९(ग) ॥
Chaupai / चोपाई
जागबलिक जो कथा सुहाई । भरद्वाज मुनिबरहि सुनाई ॥ कहिहउँ सोइ संबाद बखानी । सुनहुँ सकल सज्जन सुखु मानी ॥
संभु कीन्ह यह चरित सुहावा । बहुरि कृपा करि उमहि सुनावा ॥ सोइ सिव कागभुसुंडिहि दीन्हा । राम भगत अधिकारी चीन्हा ॥
तेहि सन जागबलिक पुनि पावा । तिन्ह पुनि भरद्वाज प्रति गावा ॥ ते श्रोता बकता समसीला । सवँदरसी जानहिं हरिलीला ॥
जानहिं तीनि काल निज ग्याना । करतल गत आमलक समाना ॥ औरउ जे हरिभगत सुजाना । कहहिं सुनहिं समुझहिं बिधि नाना ॥
Doha / दोहा
दो. मै पुनि निज गुर सन सुनी कथा सो सूकरखेत । समुझी नहि तसि बालपन तब अति रहेउँ अचेत ॥ ३०(क) ॥
श्रोता बकता ग्याननिधि कथा राम कै गूढ़ । किमि समुझौं मै जीव जड़ कलि मल ग्रसित बिमूढ़ ॥ ३०(ख)
Chaupai / चोपाई
तदपि कही गुर बारहिं बारा । समुझि परी कछु मति अनुसारा ॥ भाषाबद्ध करबि मैं सोई । मोरें मन प्रबोध जेहिं होई ॥
जस कछु बुधि बिबेक बल मेरें । तस कहिहउँ हियँ हरि के प्रेरें ॥ निज संदेह मोह भ्रम हरनी । करउँ कथा भव सरिता तरनी ॥
बुध बिश्राम सकल जन रंजनि । रामकथा कलि कलुष बिभंजनि ॥ रामकथा कलि पंनग भरनी । पुनि बिबेक पावक कहुँ अरनी ॥
रामकथा कलि कामद गाई । सुजन सजीवनि मूरि सुहाई ॥ सोइ बसुधातल सुधा तरंगिनि । भय भंजनि भ्रम भेक भुअंगिनि ॥
असुर सेन सम नरक निकंदिनि । साधु बिबुध कुल हित गिरिनंदिनि ॥ संत समाज पयोधि रमा सी । बिस्व भार भर अचल छमा सी ॥
जम गन मुहँ मसि जग जमुना सी । जीवन मुकुति हेतु जनु कासी ॥ रामहि प्रिय पावनि तुलसी सी । तुलसिदास हित हियँ हुलसी सी ॥
सिवप्रय मेकल सैल सुता सी । सकल सिद्धि सुख संपति रासी ॥ सदगुन सुरगन अंब अदिति सी । रघुबर भगति प्रेम परमिति सी ॥
Doha / दोहा
दो. राम कथा मंदाकिनी चित्रकूट चित चारु । तुलसी सुभग सनेह बन सिय रघुबीर बिहारु ॥ ३१ ॥
Chaupai / चोपाई
राम चरित चिंतामनि चारू । संत सुमति तिय सुभग सिंगारू ॥ जग मंगल गुन ग्राम राम के । दानि मुकुति धन धरम धाम के ॥
सदगुर ग्यान बिराग जोग के । बिबुध बैद भव भीम रोग के ॥ जननि जनक सिय राम प्रेम के । बीज सकल ब्रत धरम नेम के ॥
समन पाप संताप सोक के । प्रिय पालक परलोक लोक के ॥ सचिव सुभट भूपति बिचार के । कुंभज लोभ उदधि अपार के ॥
काम कोह कलिमल करिगन के । केहरि सावक जन मन बन के ॥ अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद घन दारिद दवारि के ॥
मंत्र महामनि बिषय ब्याल के । मेटत कठिन कुअंक भाल के ॥ हरन मोह तम दिनकर कर से । सेवक सालि पाल जलधर से ॥
अभिमत दानि देवतरु बर से । सेवत सुलभ सुखद हरि हर से ॥ सुकबि सरद नभ मन उडगन से । रामभगत जन जीवन धन से ॥
सकल सुकृत फल भूरि भोग से । जग हित निरुपधि साधु लोग से ॥ सेवक मन मानस मराल से । पावक गंग तंरग माल से ॥
Doha / दोहा
दो. कुपथ कुतरक कुचालि कलि कपट दंभ पाषंड । दहन राम गुन ग्राम जिमि इंधन अनल प्रचंड ॥ ३२(क) ॥
रामचरित राकेस कर सरिस सुखद सब काहु । सज्जन कुमुद चकोर चित हित बिसेषि बड़ लाहु ॥ ३२(ख) ॥
Chaupai / चोपाई
कीन्हि प्रस्न जेहि भाँति भवानी । जेहि बिधि संकर कहा बखानी ॥ सो सब हेतु कहब मैं गाई । कथाप्रबंध बिचित्र बनाई ॥
जेहि यह कथा सुनी नहिं होई । जनि आचरजु करैं सुनि सोई ॥ कथा अलौकिक सुनहिं जे ग्यानी । नहिं आचरजु करहिं अस जानी ॥
रामकथा कै मिति जग नाहीं । असि प्रतीति तिन्ह के मन माहीं ॥ नाना भाँति राम अवतारा । रामायन सत कोटि अपारा ॥
कलपभेद हरिचरित सुहाए । भाँति अनेक मुनीसन्ह गाए ॥ करिअ न संसय अस उर आनी । सुनिअ कथा सारद रति मानी ॥
Doha / दोहा
दो. राम अनंत अनंत गुन अमित कथा बिस्तार । सुनि आचरजु न मानिहहिं जिन्ह कें बिमल बिचार ॥ ३३ ॥
Chaupai / चोपाई
एहि बिधि सब संसय करि दूरी । सिर धरि गुर पद पंकज धूरी ॥ पुनि सबही बिनवउँ कर जोरी । करत कथा जेहिं लाग न खोरी ॥
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